Bihar Government: (अमिताभ ओझा, पटना) बिहार में 19 वर्षों के शासनकाल के दौरान नीतीश कुमार ने स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर बदल दी है। पहले बिहार में सिर्फ 6 सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल थे। अब उनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई है। इसके साथ ही कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेज बिहार में संचालित हो रहे हैं। 2005 में जब नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली थी, तब स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल था। अस्पताल खंडहर में तब्दील हो गए थे। मेडिकल की पढ़ाई के लिए छात्रों को दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता था। यह तस्वीर नीतीश कुमार ने बदली। इन दिनों भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रगति यात्रा के दौरान जिलों में जाकर विकास योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों की मांग के संबंध में महत्वपूर्ण घोषणाएं कर रहे हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अररिया एवं खगड़िया में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलने की घोषणा की है। कैबिनेट ने नए मेडिकल कॉलेजों को लेकर राशि की मंजूरी दे दी है। अररिया में सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के निर्माण के लिए 4 अरब 1 करोड़ 78 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई है। यह सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल अररिया के लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
कई अस्पतालों का विस्तार
इसी तरह खगड़िया में मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के लिए 4 अरब 60 करोड़ 56 लाख रुपये की राशि को मंजूरी दी गई है। मेडिकल कॉलेज बनने से खगड़िया के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलेंगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के साथ ही सूबे की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को लेकर आवश्यक कदम उठाने शुरू किए थे। नीतीश कुमार का शुरू से उद्देश्य रहा है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए बिहार के छात्र-छात्राओं को मजबूरी में बाहर नहीं जाना पड़े। सभी जिलों में इंजीनियरिंग एवं मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा सरकार ने की थी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का शुरू से मानना रहा है कि लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उनके जिले में ही उपलब्ध हों, किसी को इलाज कराने के लिए राज्य से बाहर नहीं जाना पड़े। नीतीश सरकार बिहार में नए मेडिकल कॉलेज खोलने के साथ ही पुराने मेडिकल कॉलेजों की क्षमता बढ़ाने को लेकर भी गंभीर है। बिहार के सबसे पुराने अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को 5400 बेड की क्षमता का बनाया जा रहा है। बाकी 5 पुराने मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों का भी विस्तार कर 2500 बेड की क्षमता का बनाया जा रहा है। आईजीआईजीएमएस पटना का विस्तार कर उसे 3000 बेड की क्षमता का बनाया जा रहा है।
एसकेएमसीएच मुजफ्फरपुर को 2500 बेड के अस्पताल के रूप में विकसित किया जा रहा है। एनएमसीएच गया और दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल का भी विस्तार हो रहा है। सदर अस्पतालों को भी हाईटेक बनाया जा रहा है। जिलों में मॉडर्न अस्पताल भी बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही सभी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (एपीएचसी) को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के रूप में विकसित किया जा रहा है। मुजफ्फरपुर में 100 बेड के शिशु गहन चिकित्सा इकाई (पीकू) और 100 बेड के मातृ-शिशु वार्ड का लोकार्पण किया गया है। बिहार देश का पहला राज्य है, जहां 100 बेड की क्षमता वाला पीकू अस्पताल शुरू हुआ है।
शिशु मृत्यु दर में गिरावट
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सत्ता संभालने से पहले बिहार की जनता का सरकारी अस्पतालों से भरोसा उठ गया था। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता था कि 2005 में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर महीने में सिर्फ 39 मरीज ही इलाज के लिए आते थे। अब यह आंकड़ा बढ़कर 11 हजार के पार चला गया है। इससे साबित होता है कि पहले की तुलना में लोगों का भरोसा सरकारी अस्पतालों पर काफी बढ़ा है। स्वास्थ्य सेवाओं में हो रहे सुधार का परिणाम अब दिखने लगा है। बिहार में शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है। सरकार के प्रयासों से अब यह राष्ट्रीय औसत से नीचे आ गया है।
मई 2022 में हुए सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। बिहार ने शिशु मृत्यु दर में अपनी स्थिति में बड़ा बदलाव किया है। राज्य में शिशु मृत्यु दर 2005-06 में जहां प्रति एक हजार जन्म पर 60 थी, अब घटकर 27 रह गई हैं। साल 2015 में प्रति एक हजार जन्म में शिशु की मौत की संख्या 42 थी। इसके बाद इसमें निरंतर कमी आई है। साल 2016 में यह आंकड़ा घटकर 38 पर आया तो 2017 में 35 पर आ पहुंचा। 2018 में 32, 2019 में 29 और वर्ष 2020 में घटकर 27 पर आ गया। वर्ष 2020 में जब बिहार में शिशु मृत्यु का आंकड़ा 27 पर पहुंचा, तब राष्ट्रीय शिशु मृत्यु दर 28 थी। इस तरह बिहार शिशु मृत्यु दर के मामले में राष्ट्रीय औसत से भी नीचे आ गया।
बिहार में मातृ मृत्यु दर में गिरावट
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार की कोशिशों का नतीजा है कि बिहार में मातृ मृत्यु दर में 12 अंकों की गिरावाट आई है। केंद्र सरकार की ओर से 2018-20 की जारी स्पेशल बुलेटिन ऑन मैटरनल मोर्टेलिटी रेशो (एमएमआर) इन इंडिया की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। जहां 2005 में प्रति एक लाख पर मातृ मृत्यु दर 371 थी, जो अब घटकर 118 पर आ गई है। राज्य स्वास्थ्य समिति ने 2030 में मातृ मृत्यु दर को घटाकर 70 करने का टारगेट रखा है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-19 में राज्य की मातृ मृत्यु दर 130 थी। यानी प्रति एक लाख में 130 महिलाओं की मौत गर्भावस्था के दौरान हो रही थी।
वर्ष 2018-20 में यह घटकर 118 पर आ गई। जाहिर है कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद से मातृ मृत्यु दर में निरंतर कमी आई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स की उपस्थिति एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की है, जिसके परिणाम अब सबके सामने हैं। एक समय था जब बिहार में कोई नर्स ट्रेनिंग कॉलेज नहीं था, जिसके कारण बिहार में ट्रेंड नर्सों का अभाव था। इसको देखते सरकार ने नर्सिंग कॉलेज एवं जीएनएम कॉलेज खोलने के फैसला लिए। आज बिहार के कई जिलों में एएनएम और जीएनएम कॉलेज खोले गए हैं। वर्ष 2006 में बिहार में टीकाकरण की दर सिर्फ 18 प्रतिशत थी।
कोरोना के समय अस्पतालों ने किया अच्छा काम
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुशल नेतृत्व में की गई लगातार कोशिशों का नतीजा है कि आज यह दर बढ़कर 86 प्रतिशत हो गई है। अब अगला लक्ष्य बिहार को टीकाकरण के मामले में टॉप-5 राज्यों में लाना है। विभिन्न जिलों में जापानी इंसेफेलाइटिस का टीकाकरण कराया गया है। बिहार से पोलियो का उन्मूलन हो गया। अब कालाजार से मुक्ति को लेकर लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए काम किया जा रहा है। कोरोना वायरस संक्रमण के समय भी बिहार के सरकारी अस्पतालों ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया, लगातार जागरूकता अभियान चलाए गए गया। इसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिला। बिहार में कोरोना वायरस से उतनी मौतें नहीं हुईं, जितनी देश के कई अन्य राज्यों में हुईं। कोरोना वायरस से मृत्यु होने पर आश्रितों को 4 लाख रुपये का अनुग्रह अनुदान बिहार सरकार ने दिया।