हनुमानजी लंका से शनिदेव को लेकर आए थे यहां
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाप्रतापी रावण ने अपने बल से सभी नवग्रहों को लंका में बंदी बना लिया था। शनिदेव को उसने विशेष सुरक्षा कारागार कैद कर रखा था, क्योंकि उसे सबसे अधिक डर शनिदेव की शक्ति से था। बंदी गृह में रहते-रहते शनिदेव की शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी। जब हनुमान जी लंका दहन कर रहे थे, तो उन्हें एक कक्ष में बंदी शनिदेव मिले। कहते हैं, लंका दहन के बाद हनुमानजी शनिदेव को लंका से लेकर आए और मुरैना के ऐंती गांव के पास स्थित पर्वत पर विश्राम करने के लिए छोड़ दिया।यहां तपस्या की मुद्रा में है शनिदेव
ऐंती के शनिदेव देश के अन्य शनि मंदिरों स्थापित शनि प्रतिमा से बिल्कुल अलग हैं। वे यहां आंख बंद किए हुए तपस्या की मुद्रा में हैं। कहते हैं, लंका में काफी लंबे समय तक बंदी रहने के कारण जब वे शक्तिहीन हो गए थे, तब उन्होंने यहीं पर तपस्या कर अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाई थी। इसलिए वे यहां तपस्या में लीन नजर आते हैं।यहां शनिदेव से गले मिलते हैं भक्त
शनि पूजा के बारे में मान्यता है कि उनकी प्रतिमा से नजर मिलाए बिना तेल और प्रसाद अर्पित किया जाता है। लेकिन ऐंती के शनि मंदिर की परंपरा इसके बिल्कुल विपरीत और अद्भुत है। यहां श्रद्धालु शनिदेव की पूजा के बाद बहुत प्रेम और उत्साह से उनसे गले मिलते हैं और अपने समस्याएं भी उनसे साझा करते हैं।जूते-चप्पल मंदिर में ही छोड़ जाते हैं भक्त
इस मंदिर की एक और परंपरा बहुत अद्भुत और चौंकाने वाली है। जब श्रद्धालु यहां शनिदेव का दर्शन कर लेते हैं, तो वे अपने जूते-चप्पल और पहने हुए कपड़े आदि को यहीं मंदिर में छोड़ जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से सभी दुखों और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है और ग्रह दोष सहित सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ये भी पढ़ें: Shani Jayanti 2024: इंदौर का अनोखा शनि मंदिर, जहां शनिदेव का रंग है सिंदूरी, भगवान कृष्ण की तरह होता 16 श्रृंगार ये भी पढ़ें: Shani Jayanti 2024: शनिदेव के इन 7 मंदिरों में दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि दोष, पूरी होती है हर मुराद
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