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Pradosh Vrat 2024: शिव जी की बरसेगी कृपा, रंक भी बनेगा राजा! बस प्रदोष व्रत की पूजा में पढ़ें ये कथा

Pradosh Vrat 2024: भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन 15 सितंबर 2024 को रवि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन उपवास और भगवान शिव की उपासना के साथ-साथ प्रदोष व्रत की कथा अवश्य सुननी व पढ़नी चाहिए। इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

Edited By : Nidhi Jain | Updated: Sep 14, 2024 14:04
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प्रदोष व्रत की कथा

Pradosh Vrat katha: भगवान शिव के भक्तों के लिए साल में आने वाले प्रत्येक प्रदोष व्रत का खास महत्व है। माह में दो बार त्रयोदशी तिथि आती है, जो शिव जी को समर्पित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, त्रयोदशी तिथि के दिन व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार 15 सितंबर 2024 को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रदोष व्रत रखा जाएगा। ये व्रत रविवार के दिन पड़ रहा है, तो इसे प्रदोष व्रत के अलावा रवि प्रदोष भी कह सकते हैं।

प्रदोष व्रत के दिन दिन शाम 06 बजकर 26 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 46 मिनट तक शिव जी की पूजा का मुहूर्त है। कहा जाता है कि इस खास दिन यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से प्रदोष व्रत की कथा को सुनता है, तो उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत की कथा के बारे में।

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प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गरीब पुजारी की विधवा पत्नी थी, जिसका एक बेटा था। अपने भरण-पोषण के लिए माता-पुत्र भीख मांगते थे। एक दिन उनकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई। राजकुमार के पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद राजकुमार दर-दर भटक रहे थे। उनके पास न तो खाने के लिए पैसे थे और न ही पहनने के लिए अच्छे कपड़े थे।

पुजारी की पत्नी से राजकुमार की ये हालात देखी नहीं गई और वो उन्हें अपने घर ले आई। पुजारी की पत्नी राजकुमार और अपने बेटे को समान प्यार करती थी। एक दिन पुजारी की पत्नी अपने दोनों पुत्रों के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम गई। जहां उन्होंने ऋषि शांडिल्य से भगवान शिव जी को समर्पित प्रदोष व्रत की कथा सुनी, जिसके बाद उन्होंने भी ये व्रत रखने का निश्चय किया। वो सच्चे मन से प्रदोष व्रत रखने लगी।

रंक से राजा बने राजकुमार!

एक बार दोनों पुत्र वन में घूम रहे थे। पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, लेकिन राजकुमार वन में गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखने के लिए रुक गए। इसी के साथ उन्होंने अंशुमती राजकुमारी से बात भी की, जिसके कारण घर जाने में उन्हें देरी हो गई। अगले दिन भी राजकुमार उसी जगह पर गए। जहां पर अंशुमती अपने माता-पिता के साथ मौजूद थी। अंशुमती के माता-पिता ने राजकुमार को पहचान लिया और उनके सामने अपनी बेटी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। राजकुमार इस विवाह के लिए मान गए।

इसके बाद राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ से विदर्भ पर हमला करके युद्ध पर विजय प्राप्त की, जिसके बाद वो विदर्भ वापस चले गए। विदर्भ में अपने महल में राजकुमार पुजारी की पत्नी और उनके पुत्र को भी ले आए। इससे पुजारी की पत्नी और उसके बेटे के सभी दुख-दर्द खत्म हो गए और वो सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इसी के बाद से लोगों के बीच प्रदोष व्रत का महत्व और बढ़ गया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत के दौरान जो लोग शिव जी की पूजा के साथ इस कथा को सुनते हैं या पढ़ते हैं, तो उनके सभी कष्ट और पाप नष्ट हो जाते हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Nidhi Jain

First published on: Sep 14, 2024 02:04 PM

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