Masik Kalashtami 2024: सनातन धर्म में प्रत्येक पर्व का अपना एक विशेष महत्व है। ऐसे ही दो दिन बाद यानी 30 मई को कालाष्टमी का पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी का पर्व भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित है। वैदिक पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी का पर्व प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन साधक काल भैरव की पूजा करते हैं साथ ही तंत्र-मंत्र की सिद्धियां प्राप्त करते हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार, तंत्र-मंत्र की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए कालाष्टमी के दिन निशिता काल में पूजा की जाती है। मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन विशेष रूप से काल भैरव की पूजा की जाए तो भैरव बाबा की कृपा हमेशा बनी रहेगी। साथ ही दुख-दर्द, भय समेत अन्य समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। तो आज इस खबर में कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा की विधि क्या है साथ ही शुभ मुहूर्त क्या है।
कौन है काल भैरव
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के रौद्र रूप को काल भैरव कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव भगवान शिव के पांचवें अवतार थे । बता दें कि इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा करते हैं उन पर भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, काल भैरव की विशेष रूप से पूजा करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिल जाती है।
कब है कालाष्टमी
वैदिक पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ माह का कालाष्टमी व्रत की शुरुआत 30 मई 2024 दिन गुरुवार को सुबह 11 बजकर 44 मिनट पर होगी और समाप्ति अगले दिन यानी 31 मई 2024 दिन शुक्रवार को सुबह 9 बजकर 38 मिनट पर होगी। ज्योतिषियों के अनुसार, कालाष्टमी 30 मई दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। साथ ही इस दिन व्रत भी रखा जाएगा।
क्या है कालाष्टमी की पूजा विधि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन प्रातकाल उठकर स्नान-ध्यान करें। उसके बाद निवृत होकर कालाष्टमी व्रत का संकल्प लें। बाद में एक चौकी पर काल भैरव की मूर्ति की स्थापना करें। मूर्ति स्थापना करने के बाद काल भैरव को पंचामृत से अभिषेक करें। साथ ही इत्र और फूलों की माला अर्पित करें। साथ ही चंदन का तिलक भी अर्पित करें। तिलक लगाने के बाद भगवान काल भैरव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। उसके बाद भैरव अष्टक का पाठ करें। मान्यता है कि ऐसा करना बेहद शुभ फलदायी होता है।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र के मान्यताओं पर आधारित हैं और केवल जानकारी के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।