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Hindu Marriage Rules: पहले कौन, दुल्हन या दूल्हा? क्या है विवाह में वरमाला पहनाने की सही परंपरा, जानें

Hindu Marriage Rules: विवाह के पवित्र अवसर पर वरमाला का क्षण सबसे उत्सुकता भरा होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पहले जयमाल कौन पहनाता है, दूल्हा या दुल्हन? आइए जानते हैं, आखिर इस रीति की शुरुआत कैसे हुई और इसका धार्मिक महत्व क्या है?

Hindu Marriage Rules: विवाह हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में एक बेहद महत्वपूर्ण संस्कार है. विवाह के पवित्र अवसर पर वरमाला रस्म का क्षण सबसे रोमांचक होता है. मगर अक्सर ये सवाल उठता है कि पहले कौन जयमाल पहनाता है, दूल्हा या दुल्हन? शास्त्रों और परंपराओं का विश्लेषण करने पर मिलता है कि वधु यानी दुल्हन पहले वर यानी दूल्हे को जयमाल पहनाती है. आइए जानते हैं, इस रस्म की शुरूआत कैसे हुई और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

कैसे हुई वरमाला रस्म की शुरूआत?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था. इस स्वयंवर में अपने पिता दक्ष की इच्छा के विरुद्ध देवी सती ने भगवान शिव के गले माला डालकर उनका पति के रूप में वरण किया था. माना जाता है कि वरमाला रस्म की शुरुआत तभी से हुई है.

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विवाह संस्कार का प्रतीकात्मक अर्थ

हिंदू संस्कृति में विवाह के दिन को बेहद शुभ और यादगार माना गया है. इसे परिवार और संतति वृद्धि का आधार माना गया है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन दूल्हा‑दुल्हन को भगवान शिव एवं माता पार्वती का स्वरूप मानते हैं. इस दिन वरमाला की रस्म केवल फूलों की माला नहीं बल्कि स्वीकृति, सम्मान और नए रिश्ते की शुरुआत का प्रतीक है.

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पहले 'दुल्हन' फिर 'दूल्हा'

सामाजिक पहलुओं, प्रचलित रिवाजों और शास्त्रों के अनुसार, विवाह में वरमाला पहनाने की शुरुआत दुल्हन से होती है. दुल्हन द्वारा वर को माला पहनाना यह दर्शाता है कि उसने इस जीवनसाथी को स्वीकार किया है. इसके बाद दूल्हे द्वारा दुल्हन को माला पहनाना उस स्वाभाविक स्वीकृति को पूरा करता है.

यहां पहले दूल्हा पहनाते हैं जयमाल

भारत के अनेक क्षेत्रों में मातृ संस्कृति को वरीयता दी गई गई. इस कारण से मातृ और स्त्री सम्मान के लिए पहले वर ही दुल्हन को जयमाल पहनाते हैं. इस क्रम का एक कारण यह भी माना जाता है कि यह मातृ और स्त्री सम्मान की परंपरा को मजबूत करता है.

ये है वरमाला का वास्तविक अर्थ

इस रस्म का गहरा अर्थ है कि पति‑पत्नी जीवनभर एक दूसरे के प्रति समर्पित रहेंगे, अहंकार त्यागेंगे, सम्मान और समझदारी से संबंध बनाए रखेंगे. वरमाला सिर्फ एक रस्म नहीं बल्कि स्वीकृति और समर्पण का प्रतीक है.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.


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