सावन में क्यों मनाते है हरियाली तीज?
माता सती का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में हुआ था। इस जन्म में देवी सती यानी मां पार्वती भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाना चाह रही थी। इसके लिए उन्होंने घनघोर तपस्या की। कहते हैं कि सौ साल तक तपस्या करने के बाद करने के बाद महादेव शिव ने देवी को दर्शन दिया। इस दैवी घटना को शिव और पार्वती का पुनर्मिलन कहा जाता है। जिस दिन यह घटना हुई थी, वह तिथि सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया थी। इसलिए इस तिथि को तीज पर्व मनाते है?क्यों कहते हैं इसे हरियाली तीज?
बैशाख और जेठ की भीषण गर्मी के बाद आषाढ़ में बारिश का आगमन होता है। इसके फलस्वरूप धरती हरी-भरी होनी शुरू हो जाती है और सावन में बारिश के असर से हर ओर हरियाली ही हरियाली होती है। हरे रंग को सौहार्द्र, समृद्धि और सौंदर्य का प्रतीक माना गया है। साथ ही नीला के अलावा हरा भी भगवान शिव और देवी पार्वती का प्रिय रंग हैं। कहते हैं, जब सावन माह की इस तीज में हरा रंग शामिल कर लिया जाता है, तो यह त्योहार प्रकृति का पर्व बन जाता है। इस समय प्रकृति की हरियाली अपने चरम पर होती है। इसलिए इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस तीज पर महिलाएं विशेष तौर हरे रंग के परिधान और चूड़ियां पहनती हैं।हरियाली तीज पर मेहंदी लगाने की परंपरा
पर्व, त्योहार और उत्सव के मौके पर मेहंदी लगाने की परंपरा परंपरा काफी प्राचीन है। इसके बिना महिलाओं का साज-श्रृंगार अधूरा माना जाता है। लेकिन हरियाली तीज पर इसे विशेष तौर पर लगाया जाता है, जिसकी वजह माता पार्वती से जुड़ी हुई है। कहते हैं, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति मान लिया था। माता पार्वती ने महादेव को मनाने के लिए व्रत रखा था। साथ ही उन्होंने हाथों में मेहंदी रचाई थी। जब भोलेनाथ ने मां पार्वती के हाथों पर अद्भुत मेहंदी रची देखी, तो वे प्रसन्न हो उठे और माता पार्वती को स्वीकार कर लिया। इसलिए यह रिवाज बन गया है। ये भी पढ़ें: Temples of India: यहां होती है कुत्तों की पूजा, इस मंदिर में कांतारा करते हैं Puppy का नामकरण ये भी पढ़ें: दुर्योधन की पत्नी महासुंदरी भानुमती की कहानी, पति की मृत्यु के बाद क्यों किया अर्जुन से विवाह, पढ़ें पूरी कथा
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित हैं और केवल जानकारी के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।