Gita Jayanti 2024: श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ है, जिसके नाम स्मरण और उच्चारण मात्र से मन, वचन और कर्म में शुभता आती है। यह भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली अमृत वाणी है। यह गीता ज्ञान योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को दिया था। आइए जानते हैं, यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने कब और किस तिथि को दिया था, इसका महत्व क्या है और इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कैसे करें?
यह दिव्य ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने तब दिया था, जब महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में मैदान में अर्जुन को यह देखकर दुखी हो गए थे कि वे अपने ही कुटुंब और संबंधियों से युद्ध करने जा रहे हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे धर्म, कर्म और जीवन के अर्थ के बारे में उपदेश दिया और अर्जुन की शंका और संशय को दूर किया। इन उपदेशों को ही भगवद गीता के नाम से जाना जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व
विद्वानों के अनुसार, भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक दर्शन भी है। इसमें जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जैसे कि कर्म, ज्ञान, भक्ति, मोक्ष आदि। इसमें कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग विस्तार से वर्णन हुआ है, जिसके माध्यम से गीता जीवन जीने का एक दर्शन प्रदान करती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम एक सार्थक जीवन जी सकते हैं।
गीता जयंती 2024 पूजा मुहूर्त
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दोपहर दिया था। इसलिए गीता जयंती के मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप सहित गीता जी की पूजा के लिए यह समय श्रेष्ठ है। अन्य मुहूर्त इस प्रकार हैं:
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 5 बजकर 15 मिनट से 6 बजकर 9 मिनट तक
अमृत काल: सुबह 9 बजकर 34 मिनट से 11 बजकर 3 मिनट तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से 2 बजकर 39 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 5 बजकर 22 मिनट से 5 बजकर 5 मिनट तक
ऐसे करें भगवान श्रीकृष्ण और गीता जी की पूजा
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
सबसे पहले, तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें अक्षत और फूल डालें। सूर्य देव को अर्घ्य दें और मंत्रों का जाप करें।
फिर, फूलों और रंगोली से सजी एक साफ चौकी पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। गंगाजल से प्रतिमा को स्नान कराएं।
भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र के साथ भगवद्गीता ग्रंथ भी रखें।
श्रीकृष्ण जी और गीता जी दोनों को चंदन, रोली और कुमकुम से तिलक लगाएं। फूलों की माला पहनाएं। धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण और गीता जी की आरती करें। आरती के दौरान भगवान श्री कृष्ण के भजन गाएं।
सबसे अंत में, गीता जी का पाठ करें या सुनें। गीता के उपदेशों पर मनन करें।