ऐसे हुई दूर्वा घास की उत्पत्ति
पुराणों के अनुसार, अमृत पाने के लिए जब देवताओं और दानवों ने सागर मंथन किया था, तब मंदराचल पर्वत समुद्र में धंसने लगा। उस समय भगवान विष्णु कूर्म (कच्छप) अवतार धारण कर मंदराचल पर्वत की नीचे का आधार तल बन गए थे। जब देवताओं और दानवों की शक्ति से वासुकि नाग रूपी रस्सी से मंदराचल पर्वत मथानी की तरह तीव्र गति से घूमने लगा, तब उसकी उसकी रगड़ से भगवान विष्णु की जंघा से कुछ रोम निकलकर समुद्र में गिर गए। ये भी पढ़ें: वफादारी की मिसाल होते हैं इन 3 राशियों के लोग, दोस्ती और प्यार में दे सकते हैं अपनी जान पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु की जंघा से निकले रोम पर अमृत ने अपना प्रभाव दिखाया। समय के साथ अमृत के असर भगवान विष्णु के रोम पृथ्वी लोक पर दूर्वा घास के रूप में उत्पन्न हुए। इसलिए दूर्वा घास को हिन्दू धर्म में इतना पवित्र माना जाता है और भादो मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्वाष्टमी पर दूर्वा घास का पूजन किया जाता है।इसलिए पूजा में चढ़ाते हैं दूर्वा घास
दूर्वा घास भगवान विष्णु के रोम से उत्पन्न होने कारण हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि दूर्वा घास को अमर माना गया है। यह देखा गया है कि यह कहीं भी बिना किसी बीज के कहीं भी उग आता है। मान्यता है कि इसमें अमृत के अंश है। यही कारण है कि इसे देवताओं को अर्पित किया जाता है। दूर्वा घास का उपयोग आयुर्वेद में तनाव कम करने के लिए किया जाता है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसलिए हर हिंदू पूजा में दूर्वा घास चढ़ाई जाती है।गणेश जी को इसलिए प्रिय है दूर्वा घास
पौराणिक कथा के अनुसार, गणेशजी ने देवताओं का रक्षा के लिए अनलासुर नामक राक्षस को साबुत निगल लिया था। इसके बाद उनके पेट में तेज जलन होने लगी थी। कहते हैं कि तब ऋषि कश्यप ने इस जलन को शांत करने के लिए गणपति जी को औषधि के तौर पर दूर्वा खिलाया था। माना जाता है कि दूर्वा खाने के बाद से भगवान गणेश जी के पेट की जलन खत्म हो गई थी। बाद में गणेश को प्रसन्न करने के लिए दूर्वा घास चढ़ाने का नियम बन गया। ये भी पढ़ें: Numerology: मां लक्ष्मी इन 4 मूलांकों की तारीखों में जन्मे लोगों पर रहती हैं मेहरबान, इनमें कहीं आप भी तो नहीं!
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