अष्टमी और नवमी तिथि 2024 कब है?
सनातन पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 31 मिनट से शुरू हो रही है, जो 11 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 06 पर समाप्त होगी। इसके बाद नवमी तिथि आरंभ हो रही है, जो 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 57 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में नवरात्रि की अष्टमी और नवमी का व्रत 11 अक्टूबर 2024 को ही रखा जाएगा। कन्या पूजन के लिए भी यही दिन उत्तम माना गया है।मां महागौरी की कथा
मां महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं, जिससे देवी का मन दुखी हो जाता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब मां पार्वती नहीं आती हैं, तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुंचते हैं। वहां वे पहुंचते हैं, तो वहां मां पार्वती के रूप को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं। एक कथा के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं- ‘सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।’अष्टमी तिथि की पूजा-विधि
- अष्टमी के दिन प्रातकाल उठकर स्नान करें और घर के मंदिर को भी अच्छे से साफ करें।
- इसके बाद मां दुर्गा को गंगाजल से अभिषेक करें और अक्षत , लाल चंदन, चुनरी और लाल पुष्प अर्पित करें।
- बाद में प्रसाद के रूप में फल और मिठाई अर्पित करें। इसके साथ ही धूपबत्ती और घी का दीपक जलाएं।
- मंदिर में दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। साथ ही पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रखकर माता रानी की आरती करें।
- पूजा खत्म होने के बाद अंत में क्षमा याचना करें।
मां महागौरी मंत्र
1. या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 2. बीज मंत्र: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: 3. प्रार्थना मंत्र:- श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥आरती
जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया॥ हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहां निवासा॥ चंद्रकली और ममता अंबे। जय शक्ति जय जय मां जगदंबे॥ भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्याता॥ हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥ सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥ बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥ तभी मां ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥ शनिवार को तेरी पूजा जो करता। मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥ भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो॥मां को ये भोग लगाएं
मां शक्ति के अष्टम स्वरूप मां महागौरी की पूजा में नारियल, हलवा, पूड़ी और सब्जी का भोग लगाया जाता है। देवी की आठवीं पूजा के दिन काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है। देवी की पूजा के बाद परिवार के सदस्यों के साथ प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। यदि कन्या पूजन की मनौती है, तो उसे विधि-विधान से निष्ठा पूर्वक संपन्न करना चाहिए। ये भी पढ़ें: Navratri 2024: नवरात्रि में मां दुर्गा को न चढ़ाएं ये 7 फूल, देवी हो जाएंगी नाराज, ये है उनका सबसे प्रिय फूल! ये भी पढ़ें: वफादारी की मिसाल होते हैं इन 3 राशियों के लोग, दोस्ती और प्यार में दे सकते हैं अपनी जान
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