Akshaya Tritiya 2025: बांके बिहारी जी भगवान श्रीकृष्ण के ही एक मनमोहक स्वरूप हैं। ‘बांके’ का अर्थ है ‘तीन स्थानों पर मुड़ा हुआ,’ जो उनकी त्रिभंगी मुद्रा को दर्शाता है, और ‘बिहारी’ का अर्थ ‘वृंदावन का निवासी’ होता है। प्रभु का यह स्वरूप श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, राधा जी के प्रेम, और गोपियों की भक्ति का प्रतीक है। इस मंदिर की स्थापना स्वामी हरिदास जी की भक्ति से हुई थी, जिन्होंने अपनी साधना और ध्रुपद संगीत से भगवान को प्रकट किया थी। बांके बिहारी जी के चरण दर्शन इस मंदिर की एक अनूठी परंपरा है, जो अक्षय तृतीया पर विशेष महत्व रखती है। साल 2025 में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को पड़ रही है।
क्यों कराए जाते हैं चरण दर्शन?
हिंदू धर्म में भगवान के चरणों को अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है। श्रीकृष्ण के चरणों में उनकी समस्त लीलाएं, शक्तियां, और कृपा समाहित होती हैं। अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी जी के चरण दर्शन कराए जाने के कई सारे कारण होते हैं।अक्षय तृतीया को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। ‘अक्षय’ का अर्थ है ‘जो कभी नष्ट न हो।’ यही कारण है कि इस दिन किए गए दर्शन, दान, और पूजा अविनाशी फल देते हैं।
बांके बिहारी जी के चरण दर्शन इस दिन इसलिए कराए जाते हैं ताकि भक्तों को अक्षय पुण्य और भगवान की कृपा प्राप्त हो सके।
इसके साथ ही चरण दर्शन भक्तों के लिए समर्पण और विनम्रता का प्रतीक हैं। श्रीकृष्ण के चरणों का दर्शन पापों का नाश करता है और भक्तों को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है। बांके बिहारी जी के चरणों में राधा जी का प्रेम और गोपियों की भक्ति समाहित है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है। बांके बिहारी जी का स्वरूप इतना मनमोहक है कि उनके पूर्ण दर्शन भक्तों को भाव-विभोर कर सकते हैं। उनकी माया को संतुलित करने के लिए सामान्य दिनों में दर्शन सीमित होते हैं, और अक्षय तृतीया जैसे विशेष अवसर पर चरण दर्शन कराए जाते हैं ताकि भक्त उनकी कृपा को संभाल सकें।
स्वामी हरिदास जी से भी जुड़ी है कथा
बांके बिहारी जी के चरण दर्शन की परंपरा स्वामी हरिदास जी की भक्ति से शुरू हुई थी। स्वामी हरिदास जी 15वीं-16वीं शताब्दी के संत व संगीतज्ञ थे। उनकी भक्ति और भजनों से श्रीकृष्ण बेहद प्रसन्न थे। एक बार, वृंदावन के निधिवन में, वे अपने शिष्यों के साथ भक्ति भजनों का गायन कर रहे थे। उनकी मधुर साधना से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण और राधा जी युगल स्वरूप में प्रकट हुए। स्वामी हरिदास ने प्रार्थना की कि हे भगवान आप दोनों वृंदावन में सदा के लिए विराजमान हो जाएं।
भगवान ने उनकी भक्ति स्वीकार की और बांके बिहारी के स्वरूप में स्वयंभू मूर्ति के रूप में प्रकट हो गए। यह स्वरूप इतना अलौकिक था कि भक्त इसके दर्शन में खो जाते थे। एक कथा के अनुसार, स्वामी हरिदास जी के एक शिष्य ने अत्यंत विनम्रता के साथ केवल बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन की कामना की। उसने कहा कि ‘मैं आपके पूर्ण स्वरूप के दर्शन का योग्य नहीं हूं, कृपया मुझे केवल अपने चरण दिखाएं।’ भगवान उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और चरण दर्शन कराया दिया। यह घटना अक्षय तृतीया के दिन हुई थी, और तभी से इस दिन चरण दर्शन की परंपरा शुरू हुई। स्वामी हरिदास जी की भक्ति ने न केवल बांके बिहारी जी को वृंदावन में स्थापित किया, बल्कि इस अनूठी परंपरा को भी प्रारंभ किया।
अक्षय तृतीया पर होता है ये आयोजन
अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी मंदिर में भव्य आयोजन होता है। मंदिर को फूलों, रंगोली, और दीपों से सजाया जाता है। पुजारी बांके बिहारी जी के चरणों को दूध, दही, शहद, और गंगाजल से स्नान कराते हैं। इसके बाद चरणों को अलंकृत किया जाता है, और भक्तों को दर्शन का अवसर मिलता है। भक्त सुबह से ही लंबी कतारों में खड़े होकर इस पवित्र दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं। इस दौरान चरणामृत और प्रसाद का वितरण होता है, जो भगवान की कृपा का प्रतीक है।
चरण दर्शन का प्रभाव
चरण दर्शन भक्तों को भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का मार्ग दिखाते हैं। श्रीकृष्ण के चरणों को धरती का स्पर्श करने वाला पवित्र अंग माना जाता है, जो भक्तों को आशीर्वाद देता है। अक्षय तृतीया के दिन यह दर्शन इसलिए विशेष हैं क्योंकि इस दिन की शुभता भक्तों के लिए अक्षय पुण्य का संचय करती है। यह दर्शन भक्तों को आध्यात्मिक शांति, पापों से मुक्ति, और जीवन में सकारात्मकता प्रदान करता है। 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया के दिन वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में चरण दर्शन का भव्य आयोजन होगा।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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