Maa Annapurna Chalisa Lyrics In Hindi: हिंदुओं के लिए माता अन्नपूर्णा की पूजा का खास महत्व है. मां अन्नपूर्णा देवों के देव महादेव की अर्धांगिनी देवी पार्वती का एक रूप हैं, जिन्हें अन्न की देवी माना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग सच्चे मन से मां अन्नपूर्णा की पूजा करते हैं, उन्हें जीवन में कभी भी अन्न और धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है. साथ ही घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है. इसके अलावा अध्यात्म की तरफ झुकाव बढ़ता है.
हालांकि, मां अन्नपूर्णा को प्रसन्न करना बहुत आसान है. नियमित रूप से मां अन्नपूर्णा को समर्पित चालीसा का पाठ करके आप उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं. यहां पर आप मां अन्नपूर्णा चालीसा के सही लिरिक्स पढ़ सकते हैं.
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मां अन्नपूर्णा चालीसा (Maa Annapurna Chalisa Lyrics In Hindi)
दोहा
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विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय।
चौपाई
नित्य आनंद करिणी माता, वर अरु अभय भाव प्रख्याता।
जय! सौंदर्य सिंधु जग जननी, अखिल पाप हर भव-भय-हरनी।
श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि।
काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग त्राता।
वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय! कल्याणी।
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि।
पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा।
देह तजत शिव चरण सनेहू, राखेहु जात हिमगिरि गेहू।
प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो।
नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु।
ब्रह्मा वरुण कुबेर गनाये, देवराज आदिक कहि गाये।
सब देवन को सुजस बखानी, मति पलटन की मन मँह ठानी।
अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या।
निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये।
करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत बचन तुम सत्य परेखेहु।
गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रहां तब तुव पास पधारे।
कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहुँ आज तुव मति अनुरुपा।
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी।
अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों।
करत वेद विद ब्रह्मा जानहु, वचन मोर यह सांचा मानहु।
तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मनमानी भिक्षा।
सुनि ब्रह्मा की मधुरी बानी, मुख सों कछु मुसुकाय भवानी।
बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता।
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों।
दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा।
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये।
तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशयो गयऊ।
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा।
माला पुस्तक अंकुश सोहै, कर मँह अपर पाश मन मोहै।
अन्न्पूर्णे! सदापूर्णे, अज अनवघ अनंत पूर्णे।
कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ, भव विभूति आनंद भरी माँ।
कमल विलोचन विलसित भाले, देवि कालिके चण्डि कराले।
तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंद साथ सिंधुजा।
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी, मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी।
विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर भूपा।
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा।
प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो।
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत, परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत।
राज विमुख को राज दिवावै, जस तेरो जन सुजस बढ़ावै।
पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनोवांछित निधि पाता।
दोहा
जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ।
तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ॥
।। इति अन्नपूर्णा चालीसा समाप्त।।
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किस दिन चालीसा का पाठ करना शुभ होता है?
वैसे तो किसी भी दिन मां अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ कर सकते हैं, लेकिन सोमवार को प्रातः काल 4 बजे से लेकर सुबह 9 बजे के बीच इसे पढ़ना व सुनना ज्यादा शुभ होता है. दरअसल, सोमवार का दिन मां अन्नपूर्णा को समर्पित है. इसके अलावा नवरात्रि में चालीसा के पाठ करने से माता रानी बहुत जल्दी खुश होती हैं.
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.