डॉ. गिरधर शर्मा
किसी भी शिक्षित समाज में विद्यालयों की अहम भूमिका होती है। आज उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश की शैक्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए निजी (पब्लिक , कॉन्वेंट) तथा सरकारी दोनों विद्यालय मिलकर प्रयास कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी विद्यालयों में मनमानी फीस वृद्धि को रोकने के लिए स्ववित्तपोषित शुल्क विनियमन अधिनियम 2018 लागू करके एक प्रशंसनीय कार्य किया है। साथ ही नई शिक्षा नीति में रोजगारपरख शिक्षा, कौशल आधारित व डिजिटल शिक्षा को भी नवाचारों के माध्यम से लागू किया है। सरकार एक तरफ अपनी संस्कृति व प्राचीन शिक्षा के बेहतरीन बिन्दुओं जैसे कि योग, वैदिक, गणित ज्योतिष संस्कृत, प्राचीन शिल्प कलाओं को भी सहेज रही है। वहीं, सूचना व तकनीक के साथ भी कदम से कदम मिला रही है। निर्बल वर्ग को शिक्षा देने के लिए कस्तूरबा विद्यालय, ऑपरेशन कलायाल्प व शिक्षा का अधिकार (RTE) के अंतर्गत पब्लिक व कॉन्वेंट विद्यालयों में भी गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का बेहतरीन प्रयास कर रही है।
सरकार के उल्लेखनीय कार्य
योगी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। सरकार कक्षा एक से 12 तक की पढ़ाई के लिए मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट विद्यालयों का निर्माण कर रही है। 26 जिलों में इसके निर्माण के लिए धनराशि भी जारी की जा चुकी है। जबकि प्री-प्राइमरी से कक्षा आठ तक की पढ़ाई के लिए मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालयों का निर्माण किया जा रहा है। सरकार अप्रैल और जुलाई में 15-15 दिन का स्कूल चलो अभियान चला रही है। उसकी योजना सरकारी स्कूलों में समर कैंप लगाने की भी है, अब तक ऐसा केवल निजी विद्यालयों में ही देखने को मिलता रहा है। गरीब एवं वंचित वर्ग के बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए संचालित जय प्रकाश नारायण सर्वोदय विद्यालयों की संख्या में इजाफा किया गया है। ये विद्यालय आज प्रदेश में शिक्षा के एक आदर्श मॉडल के रूप में विकसित हो रहे हैं। सर्वोदय विद्यालयों की संख्या 93 से बढ़कर 120 हो गई है।
निजी विद्यालयों की चुनौती
उत्तर प्रदेश सरकार हर स्तर पर शिक्षा में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है और यही सरकारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। शिक्षा विकास की पहली सीढ़ी होती है और इस सीढ़ी का मजबूत होना सभी के लिए नितांत आवश्यक है। हालांकि, निजी विद्यालयों का अपना एक दर्द है और उस पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। आज समाज में हर व्यक्ति अपने बच्चों को शिक्षा प्राइवेट या निजी विद्यालयों में दिलवाना चाहता है पर फीस सरकारी विद्यालयों वाली देना चाहता है। उचित फीस पर अच्छी शिक्षा प्राप्त करना सबका उद्देश्य है, लेकिन ऐसी शिक्षा प्रदान करना सरकार और संस्थानों के लिए एक जटिल कार्य है। निजी विद्यालय प्रशिक्षित अध्यापक, मजबूत शैक्षिक व्यवस्थाओं से लैस हैं। वहां की प्रयोगशालाओं, कक्षा, पुस्तकालय, खेल के मैदान, ऑडीटोरियम, संगीत कक्ष, डिजिटल कक्षाएं, सभी छात्र-छात्राओं को आकर्षित करते हैं। लेकिन कम फीस में इन्हें बनाए रखना मुश्किल है। कई बार RTE में दाखिल हुए छात्रों की नाममात्र की फीस विद्यालयों को मिलती है या कई सत्रों तक फीस प्राप्त नहीं होती।
समाज भी दे ध्यान
सीबीएसई से मान्यता प्राप्त विद्यालयों को कक्षा एक से पांच तक के लिए स्थानीय प्रशासन (नगर निगम) से मान्यता प्राप्त करना, कागजी कार्रवाई में महीनों लगना भी विद्यालय प्रबंधन के लिए एक चुनौती है। बिना किसी सरकारी अनुदान के चल रहे निजी विद्यालय समाज के बहुसंख्यक वर्ग की क्वालिटी एजुकेशन की जरूरत को पूरा कर रहे हैं पर कई बार अनुशासन को बनाए रखने के लिए कुछ सख्ती करने पर सारा समाज विद्यालय प्रबंधन व शिक्षकों को संदेहपूर्ण दृष्टी से देखता है। अभिभावकों ने भी अपनी व्यस्तता का हवाला देकर अपना सारा उत्तरदायित्व विद्यालयों पर डाल दिया है। विद्यालय भी इसी समाज का हिस्सा हैं। इन्हें सारी मुश्किलों के बीच रहकर काम करना पड़ता है। उनसे भी जाने-अनजाने कुछ गलतियां कुछ अनदेखी हो जाती जाएं तो उन्हें भी मानवीय भूल समझकर समाज को क्षमा कर देना चाहिए व उनके इरादों पर अपना विश्वास बनाए रखना चाहिए। सभी छात्र, शिक्षक, प्रधानाचार्य व प्रबंधतंत्र इसी समाज से आते हैं और सबका प्रयास आने वाले पीढ़ी को संस्कारित कर वर्तमान वैश्विक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना, सरकार व आम आदमी को आपसी सहयोग से आगे बढ़ाना है।
(लेखक सेंट एंड्रयूज ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशंस के CMD हैं)