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अयोध्या के राम मंदिर में श्रीराम नहीं, राष्ट्र की प्राण प्रतिष्ठा

Ayodhya Ram Mandir Ram Lalla Pran Pratishtha: अयोध्या के राम मंदिर के लिए किए गए संघर्ष की कहानी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल की जुबानी...

अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करीब 500 साल पुराना सपना था।
प्रेम शुक्ल, राष्ट्रीय प्रवक्ता (BJP) Ayodhya Ram Mandir Ram Lalla Pran Pratishtha: अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि पर श्री राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का साक्षी बनने का सुअवसर अवसर मिला। 1985 से लगातार अयोध्या जाने का क्रम रहा है। अयोध्या तब भी गया था, जब विश्व हिन्दू परिषद ने राम शिला पूजन का आह्वान किया था। श्री राम जन्म भूमि परिसर में शिलान्यास के बाद राजीव गांधी सरकार द्वारा निर्माण कार्य रोकने और शिला पूजन के आगे के अभियान को निरस्त करते हुए देखा है। 1990 में जब श्री सोमनाथ से भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किए थे, उस रथ यात्रा के जोश के भी साक्षी रहे हैं। तब नरेंद्र मोदी रथ के सारथी थे। समस्तीपुर में रथ यात्रा को रोके जाने, लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी और उसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से भाजपा की समर्थन वापसी को भी देखा है। अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता, का दर्प कर जब मुलायम सिंह यादव ने निर्दोष कारसेवकों के रक्त से सरयू की धारा को लाल करने का कुकर्म किया था। उनके इस डायराना कृत्य को कांग्रेस ने अंध समर्थन किया था, वह सब भी मन मस्तिष्क में आज तक ताजा है। पूरे उत्तर प्रदेश को कारागार में तब्दील होते हुए देखा। रामद्रोह की ऐसी स्थिति थी कि रामदाना को भी मुलायम दाना का नामकरण कर दिया गया था। फिर राम पादुका पूजन का अभियान चला। एक बार फिर दिसंबर 1992 में कार सेवक अयोध्या में जमा हुए। 1990 और 1992 के बीच में यह सबसे बड़ा परिवर्तन था। मुलायम सिंह यादव की रामविरोधी सरकार की जगह कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली राम भक्तों की सरकार आई। 1992 की कार सेवा में पूरे देश से राम नाम का भजन गाते हुए लाखों कार सेवक अयोध्या पहुंचे थे। देखा था कि 5 दिसंबर 1992 को कार सेवकों में व्याप्त वह आक्रोश, जिसमें सांकेतिक कार सेवा का निर्णय हुआ था। 6 दिसंबर का वह पावन दिन भी याद है, जब आक्रोश में कारसेवकों ने बाबरी के कलंक को सदा सर्वदा के लिए मिटा दिया था। एक युवा पत्रकार के रूप में उस पूरे दृश्य को अपनी आंखों में समेटने का सुख सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उस घटना के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगों का दौर भी देखा। बाबरी विध्वंस के प्रतिशोध के नाम पर एक दशक से अधिक काल तक निर्दोष हिंदुओं के कत्ले आम के लिए जगह-जगह पर इस्लामी आतंकवादियों द्वारा किए गए आतंकी हमलों के दंश को भी पूरे देश ने भोगा। अदालतों में बारम्बार राम के जन्म के सबूत मांगे गए। हिंदुओं को पग-पग पर अपमानित किया गया। कांग्रेस की सरकार ने राम जन्म भूमि पर बाबरी मस्जिद फिर से बनवाने का संसद में संकल्प लिया। एक बाबरी के बदले हिंदुओं के धर्म स्थलों को, जिन पर इस्लामी आक्रांताओं ने इस्लामी इमारतें तालीम करने का कुकर्म किया था, उन्हें कायम रखने का कानून संसद में पारित होते देखा। हिंदुत्व के नाम पर चुनाव लड़ने वाले जनप्रतिनिधियों की सदस्यताएं खारिज करने का दौर चलाया गया। मालेगांव बम कांड और समझौता एक्सप्रेस जैसे आतंकी हमलों में लश्कर-ए-तैयबा के शामिल होने के सबूत होने के बावजूद हिंदुओं को आतंकी सिद्ध करने का षड्यंत्र झेला गया। भगवा को आतंकवादी और इस्लामी जिहादियों को शांति दूत सिद्ध करने के प्रयास पूरी दुनिया ने देखे। डॉ जाकिर नाईक को शांति का राजदूत और स्वामी असीमानंद को आतंकवादी सिद्ध किया गया। बात 26/11 तक बढ़ाई गई और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने मुंबई के उन आतंकवादी हमलों को भी भगवा आतंकवाद सिद्ध करने का प्रयास किया। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में जब आप अयोध्या में भव्य दिव्य राम मंदिर में श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा देखते हैं, तब लगता है कि सचमुच राम आ गए हैं। प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंखों में उमड़ते अश्रुकणों की वेदना त्रेता युग में भरत की 14 वर्षीय प्रतीक्षा की वेदना से कहीं अधिक सघन थे। भरत को तो पता था कि राम 14 वर्षों के बाद वनवास से लौट आएंगे, पर भक्त नरेंद्र मोदी संवैधानिक जटिलताओं के चलते क्या राम की वापसी को लेकर उतने ही आश्वस्त हो सकते थे? पीढ़ी दर पीढ़ी बलिदान होते गए, राम अयोध्या नहीं लौट पाए। कई पीढ़ियां तो अदालती अदावत की भेंट चढ़ गईं। जिस देश ने विक्टोरिया टर्मिनस का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस करने में कोई संकोच नहीं किया। जिस देश ने अंग्रेजी दासता के प्रतीकों को सहजता से मिटा दिया, वही देश चंद वोटों की खातिर किस तरह से इस्लामी दासता के प्रतीकों पर सेकुलरिज्म का मुलम्मा चढ़ाता रहा? इसलिए जब प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने उद्बोधन में नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं आज प्रभु श्री राम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, त्याग, तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक यह कार्य नहीं कर पाए। आज वह कमी पूरी हुई है। मुझे विश्वास है कि प्रभु श्री राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे। श्री मोदी का यह वक्तव्य हिंदुत्व के सैकड़ो वर्षों के प्रायश्चित्त का बोध है। जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राम मंदिर मात्र एक देव मंदिर नहीं है। यह भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। यह राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है, तब पूरे देश में नव चेतना की झंकार साफ शब्दों में सुनाई दे रही थी। आंसू सिर्फ साध्वी ऋतंभरा, साध्वी उमा भारती और साध्वी निरंजन ज्योति की आंखों में नहीं थे, बल्कि कोटि-कोटि कंठ मग्न होकर अवरुद्ध हो गए थे। नरेंद्र मोदी ने सिर्फ एक मूर्ति में प्राण की प्रतिष्ठा नहीं की है, बल्कि दासता से मुक्त एक स्वावलंबी, समर्थ, समृद्ध राष्ट्र के प्राण की भी प्रतिष्ठा की है, जिस राष्ट्र में विश्व के सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक नेतृत्व की ललक है। क्या यह महज संयोग मान लें कि प्राण प्रतिष्ठा होते ही भारत स्टॉक मार्केट में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज बन जाता है। एलन मस्क उसी दिन यह कहते हैं कि जब तक भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य नहीं बनता, तब तक संयुक्त राष्ट्र का ढांचा बेमानी है। सच कहते हैं मोदी कि यह भव्य राम मंदिर, साक्षी बनेगा भव्य भारत के अभ्युदय का, विकसित भारत का।


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