तरुण विजय, पूर्व सांसद एवं पूर्व संपादक साप्ताहिक पांचजन्य
Atal Bihari Vajpayee 100th Birth Anniversary: अपनों की कसक, मन में पीड़ा और संवेदनहीन आघातों को समेटे अटल जी कैसा ठहाका लगा सकते थे यह किसी राजनेता की समझ में नहीं आया। मन में राजनीति हो तो अटल जी समझेंगे भी कैसे। वे हमारे थे, अपने थे पर हमेशा भिन्न मत को सुनने का धैर्य रखते थे। कुछ बातें उन्हें पसंद नहीं भी आयीं तो भी उन्होंने हमेशा अपने दरवाजे बंद नहीं किये। कश्मीर पर उनकी नीतियों की हमने पांचजन्य में सम्पादकीय लिख कर आलोचना की, स्वदेशी पर तो लगातार अभियान चलाया जिसके कुछ अंकों से वे आहत भी हुए। पाकिस्तान पर हमने उनकी कुछ बातों को सही माना तो कुछ पर अलग राय जाहिर की। जो बात उन्हें ठीक नहीं लगी उसके बारे में उन्होंने साफ साफ़ अपनेपन के अंदाज से बताया कि यह बात ठीक नहीं है। ऐसा मत करिए और हमने उनकी बात मानी भी। सबसे बड़ी बात यह थी कि उनके साये में हम सबको लगता था कि हम अपने घर में हैं। डर था सम्मान के कारण, सजा की दहशत नहीं।
अटल जी का कथन
कांग्रेस का जमकर विरोध किया। सिर्फ इसी कारण नहीं कि कांग्रेस विदेशी मूल के व्यक्ति के नेतृत्व में चल रही है, बल्कि इसलिए कि उनका राजनीतिक क्षेत्र में अनुभव और योगदान क्या है? वे अक्सर कहते थे कि विजय जी हर बात के लिए आक्रमणकारी को दोष नहीं देना, विरोधियों के गले सारे दोष मढ़ देना यह कहां का इंसाफ है? उनके शब्द अक्षरश: इस प्रकार हैं, “हम लोगों ने ही ऐसा बना दिया है- कमी हममें है। देशभक्ति। राष्ट्रीय चेतना की कमी है। हां, और सिर्फ विदेशी मूल का व्यक्ति (श्रीमती सोनिया गांधी) होने के नाते ही अस्वीकार्य होने की बात नहीं है। इसके अलावा भी तो पूछना चाहिए। उनका अनुभव कितना है? संसद में, बाहर? राजनीतिक क्षेत्र में उनका योगदान क्या है? सिर्फ एक परिवार है। यह तो परिवारवाद चल रहा है। इस सीमा तक परिवारवाद का पोषण इस बात का सबूत है कि देश में राष्ट्रीय चेतना जितनी ज्वलंत होनी चाहिए थी, नहीं हुई”। यह अटल जी का बहुत कठोर कथन था जिसमें उन्होंने देशहित के विरोध में काम करने वालों के पक्ष में भी कई बार देखने वाले झुकाव पर क्षुब्ध होकर टिप्पणी की।
Nation pays tribute to #AtalBihariVajpayee marking the 100th birth anniversary of former Prime Minister.
---विज्ञापन---Every year 25th December is observed as #GoodGovernanceDay. pic.twitter.com/9PUUDzLaP5
— All India Radio News (@airnewsalerts) December 25, 2024
अटल जी की जिंदादिली का किस्सा
अटल जी को खीर, नाथू के यहां से आए बूंदी के लड्डू और खिचड़ी बहुत पसंद थी। पर वे उससे भी बढ़कर पसंद करते थे – अपने पुराने मित्रों, परिचितों के साथ मिल बैठने के क्षण और जोरदार ठहाके। उनकी रायसीना रोड वाले बंगले की होली कई वर्षों तक चली जिसमें लखनवी अंदाज पूरे रंग में खिलता था। मुझे याद है एक बार मैं अपनी बेटी शाम्भवी को अटल जी के जन्मदिन पर रायसीना रोड ले गया था। वह बहुत छोटी थी शायद तीन साल की। बेहद शरमा रही। उसके हाथ में एक गुलाब का फूल था। मैं दिल्ली की सर्दी में जैकेट पहने हुए बार बार उससे कह रहा था – फूल दो, जल्दी फूल दो। अटल जी ने सुन लिया। वे पास ही आगंतुकों तथा कार्यकर्ताओं से बधाई ले रहे थे। उन सबको छोड़कर वे हमारे पास आये और कहने लगे- लाओ भई मुझे तुम्हारा फूल लेना चाहिए और खूब हँसे। उस समय सुप्रसिद्ध छायाकार श्री खडग सिंह पास ही खड़े थे तुरंत उन्होंने फोटो खींच ली, जो अमर याद बन गई। ऐसे थे अटल जी। अहंकार से दूर और अपनों के बहुत पास लेकिन राष्ट्र के हित में पोखरण विस्फोट से भी हिचकाये नहीं।
पोखरण परीक्षण का जिक्र
पोखरण का एक एक क्षण मैंने नोट किया। कब, कौन कहां था। पर वे बातें बाद में लिखेंगे। सारी दुनिया चकित थी कि हमारे सैन्य संस्थानों के चप्पे-चप्पे पर अपने उपग्रहों के जरिये नजर रखने वाले अमेरिका को तनिक भी भनक नहीं हुई और हमने दुनिया को गूंजा दिया।
हमारे प्रेरणास्रोत, पूर्व प्रधानमंत्री 🇮🇳 भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।🙏🏻
समस्त देशवासियों को सुशासन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।💐🇮🇳🙏🏻#AtalBihariVajpayee #GoodGovernanceDay #AtalJiAmarRahen pic.twitter.com/2JzmdrHTVC
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) December 25, 2024
अटल जी के ‘अटल’ फैसले
अटल जी बिना किसी को दुखी किये अपने निर्णय पर अटल रहने की अद्भुत क्षमता भी रखे थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान पूज्य सरसंघचालक श्री रज्जू भैया हमारे परिवार के संरक्षक समान थे। जब मैं कल्याण आश्रम में काम करने निकल गया तो देहरादून में अम्मा अकेली रह गई थीं। रज्जू भैया ने सलाह दी कि असं में कुछ वनवासी बच्चे अम्मा के पास रहते हैं। वे यहीं पढेंगे और अम्मा को अकेलापन भी नहीं खलेगा। दो -तीन साल बाद जब बच्चों की संख्या अधिक होने लगी टी कल्याण आश्रम की सहायता से देहरादून में छात्रावास खोलने की योजना बनी। वनवासी कल्याण आश्रम के तत्कालीन संगठन मंत्री श्री भास्कर राव जी ने इस विद्यालय को आशीर्वाद और सहयोग दिया। पूज्य रज्जू भैया स्वयं उस छात्रावास में आकर रुके। लेकिन विधि का विधान 6 माह बाद वे निर्वाण को प्राप्त हो गए।
25 बच्चों के विद्यालय का उद्घाटन
हमारी बहुत इच्छा था कि इस विद्यालय का अटल जी उद्घाटन करें। उनसे तुरंत बात की, थोड़ी जिद की। रज्जू भैया की स्मृति से वे इतने भावुक हुए कि उन्होंने तुरंत हां कर दी। उस समय छात्रावास में सिर्फ 25 बच्चे थे। प्रधानमंत्री कार्यालय के संयुक्त सचिव ने असहमति जताते हुए कहा कि देश के प्रधानमंत्री 25 बच्चों के छोटे से विद्यालय का उद्घाटन करने जाएँ, यह उचित नहीं। हम डर गए। हमें लगा हे भगवान! अफसर तो अफसर है। अफसरों की चली तो क्या होगा? अटल जी अपने चिर परिचित अंदाज में चुप रहे। बाद में हमें उनके आने की लिखित पक्की सूचना मिली तो हमारी आंखों में आंसू थे। उक्त संयुक्त सचिव महिदे ने बाद में बताया कि अटल जी ने उनको बुलाया और कहा – सिंह साहब , विद्यालय छोटा है पर विचार बड़ा। मैं जाऊंगा। बात खत्म। ऐसे अटल जी की आप किससे तुलना कर सकते हैं?
VIDEO | Lok Sabha Speaker Om Birla (@ombirlakota) pays tribute to former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee, at Sadaiv Atal, on his 100th birthday anniversary.
(Source: Third Party) pic.twitter.com/Dl05w6fBGG
— Press Trust of India (@PTI_News) December 25, 2024
पांचजन्य से खास लगाव
पांचजन्य की स्वर्ण जयंती के सभी कार्यक्रम पंचवटी में हुए थे। हमारे चालीस चालीस साल पचास पचास साल पुराने लेखक, संपादक, अभिकर्ता और अनवरत पांचजन्य पढ़ते आ रहे पाठक अटल जी से यूं मिल रहे थे मानो उनके खास घरेलू मेहमान हों। अटल जी उनसे मिलकर बाकी ज़रूरी काम के लिए प्रधानमंत्री निवास में अपने पक्ष की ओर नहीं गए। जब तक एक भी पांचजन्य अभिकर्ता और लेखक मौजूद था तब तक अटल जी उनके साथ बतियाते रहे और खूब रस लेकर खाते भी रहे।
भारत से अटल जी का प्यार
भारत की बात होते ही अटल जी भावुक हो जाते या किसी दूसरे लोक में ही पहुंच जाते। भारत की परिभाषा जो अटल जी ने दी वह हर विद्यालय और कार्यालयों में लागने लायक है। अपनी सरकार बनी है तो उसका क्या हेतु होना चाहिए? इस बारे में एक महान राष्ट्र नेता के नाते पांचजानी को एक साक्षात्कार में व्यक्त किये ये शब्द पढ़िए – ‘देश को अच्छे शासन की ज़रूरत है। शासन अपने प्राथमिक कर्तव्यों का पालन करे, हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा दे, उसके लिए शिक्षा, उपचार और आवास का प्रबंध करे और इसकी बड़ी आवश्यकता है। भारत की राजनीति में यह एक बड़े मोड़ का परिचायक है। हमें इस अवसर का लाभ उठाना है। बची-खुची आशंकाओं तथा भ्रमों का निराकरण कर देश के कल्याण का पथ प्रशस्त करना है”।
Paid homage to Atal Ji at Sadaiv Atal. pic.twitter.com/6ZwV9Pxd25
— Narendra Modi (@narendramodi) December 25, 2024
गाँधीवादी समाजवाद को अपनाया
सूचना प्रोधोगिकी में क्रांति, मोबाइल टेलीफोन को सस्ता बनाकर घर घर पहुंचाना, भारत के ओर-छोर स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्गों से जोड़ना और हथियारों के मामले में भारत को अधिक सैन्य सक्षम बनाना अटल जी की वीरता एवं विकास केंद्रित नीति के शानदार परिचय हैं। वे अंतिम व्यक्ति की गरीबी को दूर करने के लिए बेहद चिंतित रहते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद और गांधी चिंतन में उनकी गहरी श्रध्दा थी इसलिए भाजपा निर्माण के बाद उन्होंने गाँधीवादी समाजवाद को अपनाया।
अटल जी की कलम
अटल जी का व्यक्तित्व एक ऐसे स्वयंसेवक के पुण्य प्रवाह का प्रतिबिम्ब है जिसकी कलम ने लिखा था “गगन में लहराता है भगवा हमारा, रग-रग हिंदू मेरा परिचय और केशव के आजीवन तप की यह पवित्रम धारा।साठ सहस ही तेरा इससे भरात सारा”। ‘हिरोशिमा की वेदना और मनाली मत जाइयो, उनके कवी ह्रदय की वेदना एवं उछाह दर्शाते हैं तो एक समय ऐसा भी आया जब दुःख व कष्टों ने घेरा। अपनों की मार से हुई व्यथा ने उन्हें झकझोरा, पर वे टूटे नहीं। तार तोड़े नहीं।
आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के साथ जिस प्रकार देश को एक नई दिशा और गति दी, उसका प्रभाव हमेशा अटल रहेगा। यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे उनका भरपूर सान्निध्य और आशीर्वाद मिला। पढ़िए, उनकी जन्म-शताब्दी पर मेरा यह आलेख….https://t.co/Uvuf9hKfxs
— Narendra Modi (@narendramodi) December 25, 2024
अटल जी ने किया पुस्तक लोकार्पण
1994 में रज्जू भैया ने आग्रहपूर्वक मेरी पुस्तक “कैलास-मानसरोवर यात्रा-साक्षात् शिव से संवाद” का प्रकाशन करवाया। फिर कहा – इसका उद्घाटन समारोह करें – अटल जी से करवाओ। मैं अटल जी के पास गया तो वे बोले हम तो हैं ही। कर देंगे। रज्जू भैया ने कहा है। पर मेरी राय है ऐसे समारोहों में उन्हें भी साथ जोड़ना चाहिए जो साथ में न होते हुए भी चिर-परिचित विद्वान और राष्ट्रभक्त हैं। मैंने कहा, कैसे? उन्होंने अपने चिर-परिचित क्षणिक ठहराव के बाद कहा – डॉ कर्ण सिंह। उन्हें बुलाइए। मैंने कहा मेरा उनसे परिचय नहीं है। उन्होंने फोन उठाया, सहायक से डॉ कर्ण सिंह से बात करने को कहा – बात की और डॉ कर्ण सिंह को पुस्तक लोकार्पण के लिए खुद आमंत्रित किया।
2007 में बिगड़ी सेहत
2007 की बात है। उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था, पता चलने पर मैंने फोन किया। एक क्षण के सुपरचित मौन के बाद वे बोले – “देह धरन को दंड है। सब काहू को होय। ज्ञानी भुगते ज्ञान से, मूरख भुगते रोय” और यह कहकर हंस पड़े। मैंने पूछा, अटल जी ये किस की पंक्तियां हैं। बोले, पता नहीं। पर मेरे पिता जी कृष्ण बिहारी बाजपेयी सुनाया करते थे। इसलिए शरीर के कष्टों पर दुखी नहीं होना चाहिए। हमने 1996से लेह में सिंधु दर्शन प्रारंभ किया था। आडवाणी जी का वरदहस्त था। साहिब सिंह वर्मा जी का उत्साहवर्धक सहयोग तो था ही, रज्जू भैया और हो।वे शेषाद्री जी का संरक्षण बहुत बड़ा संभल था। हम संकोच से अटल जी से सिंधु दर्शन के उद्घाटन हेतु कहने में हिचकते थे। एक बार उनका फोन आया, “विजय जी, सिंधु दर्शन अकेले ही करेंगे ? हमें न्योता नहीं मिला।” उनका उलाहना हमें भिगो गया। वर्ष 2001 में उन्होंने सिंधु दर्शन अभियान का उद्घाटन किया और ह्रदय से रोमांचित करने वाला उद्बोधन दिया – ” इस उत्सव ने राष्ट्रगान के अधूरेपन को भर दिया”।
On the occasion of Atal Janm Shatabdi, I, on behalf of JanaSena, pay heartfelt tributes to Shri Atal Bihari Vajpayee—freedom fighter, former Prime Minister, poet, statesman, and above all, one of the greatest patriots of our motherland.
Atalji’s extraordinary oratory could… pic.twitter.com/447HeLWzrt
— Pawan Kalyan (@PawanKalyan) December 24, 2024
सभ्यता और संस्कृति पर बड़ी बात
सभ्यता और संस्कृति के बारे में उन्होंने बहुत गंभीर बात कही, “सभ्यता कलेवर है, संस्कृति उसका अन्तरंग। सभ्यता स्थूल होती है, संस्कृति सूक्ष्म। समय के साथ सभ्यता बदलती है, क्योंकि उसका सम्बन्ध भौतिक जीवन से होता है, किन्तु उसकी तुलना में संस्कृति मुख्य रूप से आंतरिक जगत से जुड़ी होने के कारण अधिक स्थायी होती है। जब यह कहा जाता है कि रोम, मिस्र, यूनान की सभ्यताएं नष्ट हो गई हैं तो निसंदेह उसमें उनके स्थूल जीवन का ही नहीं, उनके जीवन मूल्यों का भी समावेश होता है”।
हालात सुधर रहे हैं
यह हमारी राष्ट्रीयता का ही अंग है कि हम एक ऐसा देश बनाना चाहते हैं जिसमें “दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहू नहीं व्यापा” की बात फलीभूत हो। खाद्य क्षेत्र में सुरक्षा की भी हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि है। अब कहीं कोई भुखमरी का शिकार नहीं होता। अन्त्योदय के अतर्गत दो रुपए किल गेहूं तथा तीन रुपए किलो चावल देते हैं। लेकिन अब तो हाल यह है कि लेने वाले नहीं मिलते। हालात सुधर रहे हैं।
अटल जी बस अटल जी थे। अनुपमेय। जिन्होंने भारत की अवधारना की। इसलिए वे कह सके “मेरी आस्था- भारत”।
वे राष्ट्र के राष्ट्रीय नेतृत्व का मानक बने। यह मानक भारत को उजाला दे।