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Shibu Soren Death: दिशोम गुरु के नाम से क्यों विख्यात थे शिबू सोरेन? आदिवासी समाज से जुड़ा है कनेक्शन

Shibu Soren Death: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिन्हें देशभर में ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि किस आधार पर दी जाती है और ये कितनी विशिष्ट होती है? यदि नहीं, तो आइए जानते हैं इन्हीं सभी सवालों के जवाब।

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Shibu Soren Death: 81 वर्ष की आयु में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का निधन हो गया। पिछले एक महीने से वो अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें काफी समय से किडनी की बीमारी थी। हालांकि जून में उनकी तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। देशभर में शिबू सोरेन को दिशोम गुरु के नाम से भी जाना जाता था। चलिए जानते हैं शिबू सोरेन, दिशोम गुरु के नाम से क्यों विख्यात थे और इसका आदिवासी समाज से क्या कनेक्शन है?

दिशोम गुरु का अर्थ क्या है?

दिशोम गुरु की सम्मानजनक उपाधि संथाल आदिवासी समाज द्वारा दी जाती है। देश और गुरु, यानी दो शब्दों से जुड़कर दिशोम गुरु शब्द बना है। दिशोम का अर्थ है 'देश' या 'विश्व' और गुरु का अर्थ है 'शिक्षक'। इन्हें जनता का मार्गदर्शक या जनता का गुरु माना जाता है, जो उनके नेतृत्व और प्रभाव को दर्शाता है।

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इसलिए दिया था दिशोम गुरु का दर्जा

बता दें कि शिबू सोरेन को आदिवासी समुदाय ने उनकी अगुवाई और समर्पण के लिए दिशोम गुरु का दर्जा दिया था। दरअसल, शिबू सोरेन ने आदिवासियों के हक के लिए आजीवन संघर्ष किया था। 1972 में उन्होंने JMM की स्थापना भी आदिवासी भूमि, जल और जंगल को गैर-आदिवासियों के शोषण से बचाने के लिए की थी।

किए थे अनगिनत आंदोलन

शिबू सोरेन झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए अनगिनत आंदोलन किए थे। झारखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाने में भी उनकी इस लड़ाई की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। झारखंड को एक अलग राज्य बनाना और आदिवासियों के हितों की रक्षा करना ही उनका एक मात्र लक्ष्य था।

सबसे पहले किसे मिली थी "दिशोम गुरु" की उपाधि?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सबसे पहले बिरसा मुंडा को "दिशोम गुरु" की उपाधि दी गई थी। बिरसा मुंडा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान आदिवासी नेता थे। उन्होंने 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों और जमींदारों के शोषण के खिलाफ झारखंड और उसके आस-पास के क्षेत्रों में मुंडा आदिवासी समुदाय का नेतृत्व किया था।

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