TrendingInd Vs AusIPL 2025UP Bypoll 2024Maharashtra Assembly Election 2024Jharkhand Assembly Election 2024

---विज्ञापन---

आज ही के दिन भारत का हिस्सा बना मणिपुर, सरदार पटेल के सख्त तेवर देख राजा ने निराश मन से किए थे हस्ताक्षर

Story of manipurs merger in india: आज ही के दिन 21 सितंबर को 1949 में मणिपुर का भारत में विलय कर दिया गया था। इससे पहले मणिपुर एक इंडिपेंडेंट रियासत थी, जिस पर अंग्रेजों ने 1891 में कब्जा कर लिया था। मणिपुर भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से में होने के कारण सांस्कृतिक तौर पर काफी […]

Story of manipurs merger in india: आज ही के दिन 21 सितंबर को 1949 में मणिपुर का भारत में विलय कर दिया गया था। इससे पहले मणिपुर एक इंडिपेंडेंट रियासत थी, जिस पर अंग्रेजों ने 1891 में कब्जा कर लिया था। मणिपुर भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से में होने के कारण सांस्कृतिक तौर पर काफी समृद्ध माना जाता है। जो आजकल हिंसा की आग में सुलग रहा है। 1947 में जब भारत को अंग्रेजों के दमन से आजादी मिली। उस समय 500 से अधिक रियासतें भारत में थी। जिनको एकीकृत करने का काम तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन एकीकरण की प्रक्रिया चली और मणिपुर का भी 21 सितंबर 1949 को भारत में विलय कर दिया गया। मणिपुर ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है। यह स्टेट नागालैंड, वेस्ट में असम, साउथ में मिजोरम, ईस्ट और साउथ ईस्ट में म्यांमार के साथ सीमा साझा करता है। म्यांमार के साथ बॉर्डर एरिया लगभग 352 किलोमीटर लंबा है। विलय की कहानी काफी रोचक है। भारत के पीएम को 23 मार्च 1949 को एक चिट्ठी मणिपुर की प्रजा शांति पार्टी की ओर से लिखी गई थी। जिसमें कहा गया कि वे भारत में विलय नहीं चाहते हैं। मणिपुर भारत के साथ कोऑर्डिनेट नहीं कर सकता है। इसलिए विलय के बजाय दोनों को एक-दूसरे के हितों की सुरक्षा करनी चाहिए। जिसके बाद गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने फोकस किया। ठीक 6 महीने बाद ही बोधचंद्र सिंह को विलय के हस्ताक्षर करने पड़े।

विलय की बात सुन निराश हो गए थे राजा

इससे पहले असम के तत्कालीन राज्यपाल श्रीप्रकाश को मणिपुर पर ध्यान रखने के लिए केंद्र सरकार ने कहा था। वे गृह मंत्रालय के टच में थे। हर बात सरदार पटेल को पता लग रही थी। कुछ दिन बाद असम के राज्यपाल श्रीप्रकाश सलाहकार नारी रुस्तम के साथ सरदार पटेल से मिलने के लिए बॉम्बे (आज मुंबई) पहुंचे थे। बीमारी के कारण पटेल ने उन्हें बेडरूम में बुलाकर ही लगभग 10 मिनट तक बात की थी। फिर कहा था कि क्यों ने मणिपुर को सेना के जरिए हिंदुस्तान में मिलाया जाए। इसके बाद प्रक्रिया शुरू हो गई थी। नारी रुस्तम बाद में राजा बोधचंद्र से मिलने इंफाल गए थे। जब उन्हें विलय की बात पता लगी तो बोधचंद्र काफी निराश हुए।

भारतीय सेना ने राजा को किया था नजरबंद

फिर तय हुआ कि अब बोधचंद्र राज्यपाल श्रीप्रकाश से बात करेंगे। जिसके लिए शिलॉन्ग को तय किया गया। शिलॉन्ग में दोनों मिले। यहां असम के राज्यपाल श्रीप्रकाश ने बैठक शुरू होते ही राजा बोधचंद्र को विलय का प्रस्ताव थमाया। इतिहासकार बताते हैं कि राजा ने टालमटोल की थी। लेकिन भारतीय सेना ने उनको वहीं नजरबंद कर लिया था। किसी से बात करने या मिलने पर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद 21 सितंबर 1949 को बोधचंद्र सिंह ने विलय समझौते की बात मान ली। सबसे पहले मणिपुर में चीफ कमिश्नर रूल पार्ट सी का दर्जा देकर लागू किया गया था। लेकिन 1955 में राजा की मौत हो गई और मणिपुर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। बाद में 21 जनवरी 1972 को मणिपुर पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था।

अंग्रेजों की मदद से पाया गया मणिपुर पर काबू

एक समय म्यांमार और मणिपुर दोनों आजाद थे। लेकिन मणिपुर के राजा महाराजा पम्हेइबा या गरीबनिवाज ने पूर्वी पड़ोसी बर्मा (आज के म्यांमार) पर कई दफा अटैक किया था। बर्मा ने 1890 में जवाबी कार्रवाई की थी, जिसके बाद सात साल तक खूब हिंसा यहां की। मणिपुर के तत्कालीन राजा गंभीर सिंह ने तब असम में शरण लेकर अंग्रेजों से मदद मांगी थी। ब्रिटिश सेना तब काफी शक्तिशाली और आधुनिक हथियारों से लैस थी। जिसके बाद गंभीर सिंह ने मणिपुर को अंग्रेजों की मदद के मणिपुर को बर्मा से आजाद करवा लिया था। अंग्रेजों ने भी राजा का साथ शर्तों पर दिया था। जिसके बाद कुछ ही समय बाद ये शर्तें राजा को खटकने लगी थी। बाद में अंग्रेजों से भी 1891 में उनकी लड़ाई शुरू हो गई। जिसको इतिहास में एंग्लो-मणिपुर युद्ध के नाम से जाना जाता है। बंदूकों से लैस अंग्रेजों के सामने भालों से लैस मणिपुर सेना ज्यादा नहीं टिक सकती थी। लेकिन मेजर पाओना ने बहादुरी से जंग की अगुआई की। लेकिन 23 अप्रैल 1891 को खोंगजोम में उसको शिकस्त हाथ लगी। जिसके बाद यहां अंग्रेजों का राज हो गया। आज भी मणिपुर सेना के खोंगजोम में बलिदान को खोंगजोम दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद अंग्रेजों ने 13 अगस्त 1891 को युवराज टिकेंद्रजीत और जनरल थंगल को फंदे पर लटका दिया था। इस दिन को भी आज देशभक्त दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसके बाद अंग्रेजों ने शाही परिवार के ही मीडिंगंगु चुराचंद को गद्दी की कमान सौंपी।

जापानी सेना ने किया था इंफाल पर अटैक

1941 में उनके बेटे मीडिंगु बोधचंद्र सिंह के हाथ में शासन की बागड़ोर आई। उन्होंने 1942 में वफादारी के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश पक्ष के साथ मिलकर राष्ट्रीय युद्ध मोर्चा को एक करने का प्रयास किया। जिसके कारण मणिपुर से काफी स्थानीय लोगों ने काफी पलायन किया था। 1942 में जापानी सेना ने राजधानी इंफाल पर अटैक किया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना आईएनए भी जापान के साथ थी। पहली बार यहां पर आईएनए के जनरल मलिक ने 14 अप्रैल 1944 को मोइरांग में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। लेकिन इंफाल पहुंचने से पहले ही जापान और आईएनए की हार हो गई। जिसके बाद बोधचंद्र सिंह की अगुआई में मणिपुर में नई सरकार के लिए संविधान तैयार करने के लिए कमेटी का गठन किया गया था। जून 1948 में यहां पहली बार इलेक्शन हुए। एमके प्रियोबार्ता को पहला सीएम चुना गया। जिसके बाद भारत ने शिलांग में अपने प्रतिनिधि भेजे और बातचीत के बाद 21 सितंबर 1949 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर हुए।


Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.