Smriti Irani Menstrual Cycle Controversy: केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी एक बार फिर मासिक धर्म और पेड लीव पर खुलकर बोलीं। उन्होंने कुछ बातों पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए राज्यसभा में सांसद ललित झा पर पलटवार भी किया। स्मृति इरानी ने मनोज झा के उस सवाल के जवाब में एक सवाल पूछा, जिसमें उन्होंने कहा था कि क्या मोदी सरकार के पास LGBTQ को मासिक धर्म के दिनों में अवकाश देने की पॉलिसी है? जवाब देते हुए स्मृति ईरानी ने सवाल पूछा कि किस समलैंगिक पुरुष को मासिक धर्म होता है? जो उसे पेड लीव मिलनी चाहिए। इस सवाल का ललित झा जवाब दें।
महिलाएं मासिक धर्म का प्रचार क्यों करें?
स्मृति ईरानी ने कहा कि पेड लीव मिलने का मतलब होगा, अपने बॉस और HR को पीरियड्स होने के बारे में बताना, लेकिन महिलाएं अपने उन दिनों का प्रचार क्यों करें? क्यों अपने बॉस और HR को मासिक धर्म की जानकारी दें? बॉस और HR को अपनी महिला कर्मचारी के मासिक धर्म के बारे में क्यों पता होना चाहिए? क्या इससे महिलाओं को भेदभाव नहीं झेलना पड़ेगा? क्या महिलाओं के काम में बाधा नहीं आएगी? क्या वे हतोत्साहित नहीं होंगी, जबकि समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा दिया जाता है। अगर पेड लीव पॉलिसी बन जाती है तो यह महिलाओं के साथ अन्याय होगा। उनकी क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न होगा।
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विकलांगता का मतलब दिव्यांगता नहीं बाधा
स्मृति ईरानी ने अपने बयान में विकलांगता शब्द इस्तेमाल करने पर उठे विवाद पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कि उन्होंने मासिक धर्म के संदर्भ में 'विकलांगता' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया? मंत्री ईरानी ने कहा कि यहां विकलांगता का मतलब दिव्यांगता से नहीं, बल्कि काम करने में बाधा उत्पन्न करने से है। विकलांगता का पर्यायवाची शब्द बाधा है। उन्होंने पेड लीव की नीति बनाने का विरोध करते हुए संसद में मासिक धर्म और पेड लीव पर जो बोला, वह अपने अनुभवों से बोला, ताकि किसी महिला के साथ कार्यस्थल पर भेदभाव न हो।
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महिलाओं को समान अवसरों से वंचित क्यों करें?
राज्यसभा में सांसद मनोज झा के एक सवाल का जवाब देते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि मासिक धर्म महिलाओं की जीवन यात्रा का स्वाभाविक हिस्सा है, कोई बाधा नहीं है। हमें पेड लीव जैसे मुद्दों का प्रस्ताव नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह महिलाओं को समान अवसरों से वंचित कर सकता है। मैं इस मुद्दे पर बहुत कुछ बोल सकती हूं, लेकिन सांसद ललित झा ने जो सवाल किए थे, उनका मकसद महिलाओं की परेशानियों का समाधान तलाशना नहीं, बल्कि उन्हें हतोत्साहित करना था।
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