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क्या इस बार अकेले पड़ गए हैं मराठा छत्रप शरद पवार? चुनौतियों का कैसे करेंगे सामना?

Sharad Pawar Facing Challenges : शरद पवार इस समय इंडिया गठबंधन के साथ हैं। उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस यहां मिलकर लोकसभा और ज्यादा उम्मीद है कि विधान सभा चुनाव लड़ेंगे।

एनसीपी प्रमुख शरद पवार
द‍िनेश पाठक, वर‍िष्‍ठ पत्रकार  Sharad Pawar Facing Challenges : मराठा छत्रप शरद पवार 84 की उम्र में अकेले पड़ गए हैं। उनकी पार्टी एनसीपी अब अकेले उनकी नहीं रही। दो फाड़ हो चुकी है। चुनाव आयोग के फैसले के बाद यह दल भतीजे अजीत पवार का हो गया है। वे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे लेकिन इसका फैसला एक दिन या एक महीने में नहीं आएगा। और लोकसभा चुनाव सिर पर है। इस उम्र में उनके सामने एक साथ कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। अब सवाल उछलने लगा है कि क्या वे इस उम्र में इन चुनौतियों से लड़कर जीत पाएंगे? वे अपनी नई पार्टी को फिर से वह ऊंचाई दे पाएंगे? यद्यपि, उनका इतिहास लड़ने का रहा है। उनके सामने जब भी चुनौती आई, वे हीरो बनकर उभरे। जीतकर निकले। कांग्रेस से अलग होकर भी अपनी मजबूत पहचान के सहारे कांग्रेस के साथ खड़े हैं। उनके रिश्ते बाल साहब ठाकरे से थे तो उद्धव ठाकरे आज भी गठबंधन का हिस्सा हैं। भाजपा समेत अन्य दलों में भी उनकी स्वीकार्यता है। आखिर हो भी क्यों न? छह दशक का शानदार राजनीतिक करियर है। बेहद कम 37 की उम्र में महराष्ट्र के सीएम बने। वह भी अपने कौशल से। इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई तो शरद पवार की कुर्सी चली गई लेकिन एक बार फिर वे उठे। कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन किया। विधान सभा चुनाव में इस दल ने 54 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया और शरद पवार एक सितारे की तरह उभर कर सामने आए। तीन बार सीएम रहे। जोड़तोड़ में माहिर शरद केंद्र में कई बार मंत्री रहे। मोदी सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

इस बार स्थिति भी अलग और चुनौती भी

पर, इस बार बात एकदम अलग है और चुनौती भी। अब तक की चुनौतियों में अजीत पवार उनके साथ थे, प्रफुल्ल पटेल उनके साथ थे, छगन भुजबल साथ थे। अब इनमें से कोई नहीं है। केवल बेटी सुप्रिया सुले उनके साथ हैं। महाराष्ट्र में इसी साल लोकसभा और कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव तय है। उत्तर प्रदेश के बाद यह संसदीय सीटों के हिसाब से दूसरा बड़ा राज्य है। यहां से कुल 48 संसद सदस्य आते हैं। पिछले चुनाव में 41 एमपी एनडीए ने जीते थे। लेकिन तब और अब में फर्क यह है कि उस समय शिवसेना और भाजपा ने एक साथ चुनाव लड़ा। अब शिवसेना दो हिस्सों में बंट गई है और एनसीपी भी। ऐसे में महाराष्ट्र लोकसभा और विधान सभा, दोनों ही चुनावों के परिणाम उद्धव ठाकरे, शरद पवार के कद का आंकलन करेंगे।

फिलहाल इंडिया के साथ हैं शरद पवार

फिलहाल, शरद पवार की बात। शरद पवार इस समय इंडिया गठबंधन के साथ हैं। उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस यहां मिलकर लोकसभा और ज्यादा उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। पर, समय सबका आंकलन अलग-अलग करेगा। क्योंकि आने वाले चुनाव में महाराष्ट्र की जनता के सामने दो-दो शिवसेना और दो-दो एनसीपी जाने वाली है। अगर शरद पवार ने आने वाले दिनों में जनता के बीच यह विश्वास हासिल कर लिया कि उनके साथ धोखा हुआ है तो कोई बड़ी बात नहीं कि शरद पवार तगड़ी वापसी करें। आयोग के फैसले के बाद शरद पवार अगले हफ्ते अपनी कर्मभूमि बारामती जा रहे हैं। वे वहां तीन दिन तक रुककर माहौल तैयार करेंगे। हवा का रुख भांपेंगे। महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विजय सिंह कहते हैं कि शरद पवार निश्चित ही महाराष्ट्र के बड़े नेता हैं। पुरोधा हैं। पर, उनकी राह में दो दिक्कतें हैं। एक उम्र और दूसरा समय की कमी। भारत निर्वाचन आयोग का फैसला आने के बाद नई पार्टी और निशान के साथ महाराष्ट्र जैसे राज्य में आम जनता तक पहुंचना बड़ा टास्क है। पवार की उम्र इस समय 84 है।

पवार की सहमति से हुई एनसीपी में टूट

वरिष्ठ पत्रकार राम किशोर त्रिवेदी कहते हैं कि मजबूत शरद पवार अनेक विवादों की वजह से शक के घेरे में भी आते रहे हैं। चुनावी मौके पर यह बात उनके खिलाफ जाती है। महाराष्ट्र में लोग मानते हैं कि पार्टी में टूट का फैसला उनकी सहमति से हुआ है। भतीजे अजीत पवार ने जब इसके पहले भी डिप्टी सीएम की शपथ ली थी, तब भी यही माना गया था। अन्यथा, उनके राजनीतिक कद का दूसरा नेता अभी भी महाराष्ट्र में नहीं है। वे लड़ने और जीतने के लिए जाने जाते हैं। अगर बारामती में उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिला तो वे एक बार फिर से हवा का रुख पलटने का प्रयास कर सकते हैं। पर, यह एकदम आसान नहीं होगा उनके लिए। इसमें उम्र सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी है। उधर, चुनाव में इंडिया गठबंधन के सामने भाजपा-शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी-अजीत पवार गुट है। शरद पवार की चुनौती केवल यही नहीं है। पार्टी में दो फाड़ होने के बाद लोकसभा चुनाव में सीटों को लेकर अब वे उस तरह संघर्ष नहीं कर पाएंगे, जैसा अजीत के साथ रहते हुए कर पाते। अब चूँकि आयोग ने ही एनसीपी को दो फाड़ कर दिया है तो शरद पवार की बारगेनिंग पावर बहुत कम हो गई है। उन्हें चुनाव भी जीतना है। संगठन भी खड़ा करना है। अपनी नई पार्टी का चुनाव निशान भी आम जनता तक पहुंचाना है। इतना सबके लिए उनके पास बेहद कम समय बचा है। कह सकते हैं कि सियासी चक्रव्यूह में फंस गए हैं लड़कर जीतने वाले शरद पवार। अब यही सवाल महाराष्ट्र और देश की जनता के मन में है कि भारत निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद शरद पवार की महाराष्ट्र और देश की राजनीति में कितनी भूमिका बची है? वरिष्ठ पत्रकार द्वय विजय एवं राम किशोर कहते हैं कि महाराष्ट्र में अभी भी शरद पवार को हल्के में नहीं लिया जा सकता। वे बाउंस बैक कर सकते हैं। हाँ, उम्र की वजह से कुछ दिक्कतें उनके सामने हैं लेकिन टेक्नोलॉजी ने यह काम आसान कर दिया है। अभी भी उनके नाम पर जनता टूट पड़ती है।


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