Scrub Typhus Case In Himachal And Odisha: केरल में निपाह वायरस के कहर बरपाने के बाद अब हिमाचल और ओडिशा में स्क्रब टाइफस का खौफ बना हुआ है। दोनों राज्यों में अब तक 15 लोगों की मौत स्क्रब टाइफस से हो चुकी है। हिमाचल में मृतकों की संख्या 10 है, जबकि ओडिशा में स्क्रब टाइफस से मरने वालों की संख्या 5 है। हिमाचल में तो स्क्रब टाइफस के अब तक करीब 1000 मामले सामने आ चुके हैं।
मेडिकल स्पेशलिस्ट की मानें तो फिलहाल ये बीमारी एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक ही सीमित है और साल में करीब 10 लाख मामले स्क्रब टाइफस के सामने आते हैं। अब सवाल की आखिर स्क्रब टाइफस है क्या?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्क्रब टाइफस ‘ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी’ नाम की बैक्टीरिया से फैलती है। कोरोना और निपाह की तरह ही ये भी एक संक्रामक बीमारी है। इस बीमारी का मुख्य कारण पिस्सुओं यानी चिगर्स का मनुष्यों को काटना है। चिगर्स के काटने के बाद मनुष्यों के शरीर पर छोटे-छोटे लाल रंग के दाने हो जाते हैं, जिसमें खुजली होती है।
डॉक्टरों के मुताबिक, चिगर्स का आकार काफी छोटा होता है। ये ज्यादातर घास, चूहों, खरगोशों और गिलहरियों में पाए जाते हैं। झाड़ियों और घासों में पाए जाने की वजह से इन्हें बुश टाइफस भी कहा जाता है। डॉक्टरों की मानें तो बारिश के मौसम में इसका प्रकोप सबसे ज्यादा होता है।
कैसे पता चलेगा कि कोई स्क्रब टाइफस से पीड़ित है?
स्क्रब टाइफस से पीड़ित मरीज के शरीर में एक हफ्ते के अंदर लक्षण दिखने लगते हैं। अगर समय पर इलाज नहीं किया गया तो फिर इससे जान जाने का भी खतरा बन जाता है। मुख्य लक्षणों में बुखार का आना शामिल है। ये 100 से 105 डिग्री तक हो सकता है। इसके अलावा पीड़ित को सिरदर्द, सूखी खांसी, शरीर में दर्द, बेहोशी आना, सांस लेने में दिक्कत आदि समस्याएं हो सकती हैं। अगर इनमें से कोई दिक्कत हो तो डॉक्टर से मिलकर सलाह जरूर लेनी चाहिए।
इसके लक्षण कुछ-कुछ डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों से मिलते हैं। संक्रमित मरीज के ब्लड टेस्ट से इस बीमारी का इलाज समय पर किया जा सकता है।
इन लोगों को स्क्रब टाइफस का ज्यादा खतरा
चूंकि स्क्रब टाइफस के चिगर्स झाड़ियों और घासों में पाए जाते हैं, इसलिए खेतों में काम करने वाले किसान, जंगलों में काम करने वाले लोग, सेना के जवान (जो जंगलों में सर्चिंग करते हैं), भू-विज्ञान से जुड़े लोग और खदान आदि में काम करने वाले लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं।
बता दें कि स्क्रब टाइफस का समय पर इलाज संभव है, लेकिन इसकी कोई वैक्सीन नहीं बनी है। डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी से सुरक्षा का एकमात्र उपाय एहतियात बरतना है। बताया जाता है कि सबसे पहले सेंकड वर्ल्ड वॉर के दौरान स्क्रब टाइफस के मामले सामने आए थे। कहा जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध में स्क्रब टाइफस से मरने वालों की संख्या युद्ध में मारे जाने वाले लोगों से ज्यादा थी।