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‘ना का मतलब ना और…’, पढ़ें हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी और एक ऐतिहासिक फैसला

High Court News: सामूहिक दुष्कर्म के एक केस में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने अहम फैसला सुनाया है। बेंच ने बड़ी टिप्पणी करके लोगों का एक संदेश भी दिया है। आइए पूरा मामला जानते हैं और हाई कोर्ट का फैसला-टिप्पणी पढ़ते हैं...

सांकेतिक तस्वीर।
महिला की न का मतलब सिर्फ न होता है...बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की मूवी पिंक का यह डायलॉग तो याद ही होगा। इसे लाइन को हाई कोर्ट के जज ने अपने फैसले में इस्तेमाल करके सार्थक कर दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने महत्वपूर्ण फैसले में यह दोटूक शब्दों में स्पष्ट किया है कि किसी महिला के न कहने का मतलब न ही होगा, सहमति के बिना सब कुछ अपराध है। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं हो सकती। महिला की पूर्व यौन गतिविधियों को उसकी वर्तमान सहमति का आधार नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी सामूहिक दुष्कर्म के मामले में 3 दोषियों की सजा बरकरार रखते हुए की। यह भी पढ़ें:क्या भारत की एयर स्ट्राइक पर पलटवार करेगा पाकिस्तान? जंग छिड़ने के संकेत देते 4 सवाल

3 दोषियों ने सजा को दी थी चुनौती

न्यायमूर्ति नितिन सूर्यवंशी और न्यायमूर्ति एम डब्ल्यू चांदवानी की पीठ ने कहा कि जबरन बनाया गया यौन संबंध महिला की निजता, मानसिक स्थिति और शारीरिक स्वतंत्रता पर सीधा आक्रमण है। यह केवल एक यौन अपराध नहीं, बल्कि आक्रामकता और उत्पीड़न का कृत्य है। तीनों दोषियों ने कोर्ट में अपील दायर करके सजा को चुनौती दी थी। याचिका में उन्होंने पीड़िता के चरित्र और पूर्व संबंधों पर सवाल उठाए थे। उन्होंने दावा किया कि महिला पहले उनमें से एक के साथ रिश्ते में थी और बाद में अन्य पुरुष के साथ लिव-इन में रहने लगी थी, लेकिन अदालत ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि किसी महिला के अतीत को उसकी वर्तमान सहमति के स्थान पर नहीं रखा जा सकता। यह भी पढ़ें:पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद के सबूत देखें, पाक आर्मी की पोल खोलती News24 की रिपोर्ट

जानें क्या है मामला?

घटना नवंबर 2014 की है, जब दोषियों ने पीड़िता के घर में घुसकर उसके साथी पर हमला किया। महिला को एक सुनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। अदालत ने माना कि यह कृत्य न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि मानवीय गरिमा और महिला की स्वतंत्रता का अपमान है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई महिला किसी व्यक्ति के साथ पहले संबंध में थी तो भी वह किसी समय अपनी सहमति वापस ले सकती है और अगर उसने न कहा है तो वह न ही रहेगा। हालांकि अदालत ने दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 साल कर दिया, लेकिन अपने फैसले में उन्होंने बलात्कार की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह अपराध समाज में नैतिक रूप से सबसे निंदनीय माना जाना चाहिए। न्यायालय का साफ संदेश यह है कि एक महिला की सहमति का निर्णय केवल वही कर सकती है, उसका अतीत नहीं और न ही किसी और की व्याख्या, ना का अर्थ सिर्फ ना है और लोगों को महिलाओं-लड़कियों की गरिमा का मान रखना चाहिए। यह भी पढ़ें:शहबाज शरीफ की थू-थू करते पाकिस्तानी युवक का वीडियो वायरल, खोली सरकार के दावों की पोल


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