‘मिल्खा, चेतक, वीरा…’, नामीबिया से भारत लाए गए चीतों के लिए सुझाए गए 750 से अधिक नाम
नई दिल्ली: नामीबिया से 17 सितंबर को पीएम मोदी के जन्मदिन पर भारत लाए गए आठ चीतों के लिए लोगों ने 750 से अधिक नाम सुझाए हैं। इनमें मिल्खा, चेतक, वायु, स्वस्ति जैसे कुछ नाम हैं जो लोगों की ओर से सुझाव के तौर पर दिए गए हैं। बता दें कि इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया है।
पिछले रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से इन आठ चीतों के नाम सुझाव के तौर पर मांगे थे। कहा गया था कि MyGov प्लेटफॉर्म पर होने वाली प्रतियोगिताओं में लोग भाग लेकर इन चीतों के नाम सुझा सकते हैं। इसके लिए अंतिम तारीख 26 अक्टूबर है।
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चीतों को नए वातारण में ढलने में लगेगा समय
MyGov प्लेटफॉर्म को अब तक वीर, पनकी, भैरव, ब्रह्मा, रुद्र, दुर्गा, गौरी, भाद्र, शक्ति, बृहस्पति, चिन्मयी, चतुर, वीरा, रक्षा, मेधा और मयूर जैसे 750 से अधिक नामों का सुझाव मिला है। पीएम मोदी ने ये भी कहा था कि नामीबिया से लाए गए चीतों को नए वातावरण के अनुकूल होने में कुछ समय लगेगा और एक टास्क फोर्स एक आकलन करेगी जिसके बाद सरकार इस पर फैसला करेगी कि क्या पार्क को जनता के लिए खोला जा सकता है।
पीएम मोदी ने कहा कि उन्हें देश भर से संदेश मिल रहे हैं कि लोगों को चीतों को देखने का मौका कब मिलेगा। बता दें कि नामीबिया से आए चीतों में से एक का नामकरण स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है। इन सभी चीतों के नाम हैं- आशा, सियाया, ओबान, सिबिली, सियासा, सवाना, साशा और फ्रेडी।
1952 में देश में प्रजातियों को विलुप्त घोषित किए जाने के 70 साल बाद चीतों को वापस भारत लाकर बसाने की कोशिश की जा रही है। बता दें कि भारत में आखिरी बार चीतों को 1948 में देखा गया था। 1948 के बाद चीते दिखने की जानकारी नहीं मिलती। राजा रामानुज प्रताप ने 3 चीतों का शिकार किया। भारत ने 1952 में चीते को विलुप्त माना था। हालांकि इसके बाद चीतों को कई बार भारत लाने की कोशिशें की गईं, लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकीं।
पहले ईरान ने की थी पेशकश
1970 के दशक में ईरान के शाह ने भारत चीते भेजने की बात कही थी। लेकिन उन्हें बदले में भारत से शेर चाहिए थे। कुछ कारणों के चलते उनकी ये पेशकश पूरी नहीं की जा सकी।
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चीतों पर पांच साल में खर्च होंगे 75 करोड़ रुपये
नामीबिया से भारत लाए गए चीतों पर पांच सालों में कुल 75 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बीच MoU साइन किया गया है। पांच सालों में इंडियन ऑयल 50 करोड़ जबकि अन्य खर्च मंत्रालय करेगा।
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