इस साल होगी बारिश या पड़ेगा सूखा, मानसून पर अल-नीनो का कितना होगा असर?
El Nino का भारतीय मानसून पर प्रभाव
El Nino Effect on Monsoon in India: अल नीनो एक जलवायु संबंधी घटना है। इसकी वजह से प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ जाता है। इसका प्रभाव आमतौर पर एक साल तक माना जाता है। अल नीनो की वजह से ही 2023 में भारत में मानसून असमान्य रहा। कहीं पर बारिश हुई तो कहीं पर सूखा देखने को मिला। अल नीनो ने कृषि क्षेत्रों को भी काफी प्रभावित किया। असमय बारिश से किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं। अल नीनो इस समय भी प्रशांत महासागर में सक्रिय है। अल नीनो की उत्पति प्रशांत महासागर से ही होती है। इसके अप्रैल- जून के दौरान वापस चले जाने की उम्मीद है, जिसके चलते यह माना जा रहा है कि 2024 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है।
भारत में चिंता का कारण रहा है अल नीनो
अल नीनो से मानसून पर बुरा असर पड़ता है। एकतरफ जहां देश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश होती है तो वहीं अन्य हिस्से सूखे की चपेट में आ जाते हैं। पिछले साल ऐसा ही देखने को मिला। हालांकि, भारतीय मानसून पर अल-नीनो का कितना प्रभाव पड़ेगा, यह आने वाले कुछ महीनों में स्पष्ट हो जाएगा। अल-नीनो की वजह से बारिश नहीं हो पाती।
सामान्य मानसून से किसानों को होता है फायदा
किसानों के लिए सामान्य मानसून अच्छा रहता है। इस मानसून पर ही 52 प्रतिशत खेती योग्य क्षेत्र में रहने वाले किसान निर्भर होते हैं। इस मानसून में हुई बारिश से ही जलाशयों में पानी इकट्ठा होता है, जिससे किसान खेती करते हैं। मानसून की बारिश पर बाजरा, कपास, तिलहन और दालों का उत्पादन निर्भर करता है।
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अल नीनो की वजह से अगस्त में हुई कम बारिश
अल नीनो की वजह से अगस्त 2023 में सामान्य से कम बारिश हुई। जून में मानसून देरी से शुरू हुआ था। जुलाई में अधिक बारिश हुई, उसके बाद अगस्त में कमी हुई और फिर सितंबर में पंजाब और हरियाणा जैसे देश के कुछ हिस्सों में फिर से अधिक बारिश हुई, जिससे खड़ी फसल पर असर पड़ा। इसके परिणामस्वरूप सब्जियों, विशेषकर टमाटर और प्याज की कीमतों में भारी वृद्धि हुई, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई और घरेलू बजट बढ़ गया।
उद्योग पर भी पड़ा असर
किसानों की आय में गिरावट का उद्योग पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है। महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले ट्रैक्टरों और हीरो मोटोकॉर्प और बजाज जैसी कंपनियों के दोपहिया वाहनों की मांग में गिरावट देखी गई। चावल, गेहूं, दाल और मसालों की कीमतें बढ़ने से मुद्रास्फीति की दर भी बढ़ी है, जिससे औद्योगिक वस्तुओं पर खर्च करने के लिए लोगों के पास कम पैसा बचता है। उच्च मुद्रास्फीति दर होने से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिसके चलते देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है।
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