कोरोना वायरस एक बार फिर देश में पैर पसार रहा है। ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुधवार (28 मई) तक भारत में कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 1072 से ज्यादा हो गई है। मंगलवार तक यह संख्या 1004 के करीब थी। देश में सबसे ज्यादा कोरोना के एक्टिव मामले केरल में हैं, जिनकी संख्या 430 के करीब बताई जा रही है। देशभर में अबतक कोरोना के चलते करीब 11 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं। वहीं, कोविड के लगातार नए वेरिएंट देखने को मिल रहे हैं। ओमिक्रॉन, डेल्टा, बीए.2.86, JN.1 जैसे वेरिएंट्स और उसके सब-वेरिएंट संक्रमण फैला रहे हैं।
नए वेरिएंट NB.1.8.1 और LF.7 की एंट्री ने पूरी दुनिया को चौकन्ना कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने NB.1.8 और LF.7 को फिलहाल ‘वेरिएंट अंजर मॉनिटरिंग’ की कैटेगिरी में रखा है। हालांकि ये ‘Variants of Concern’ या ‘Variants of Interest’ नहीं हैं, लेकिन चीन और एशिया के कुछ हिस्सों में कोविड मामलों में हो रही वृद्धि के पीछे इन्हीं वेरिएंट्स का हाथ माना जा रहा है। भारत में अभी सबसे ज्यादा प्रचलित वेरिएंट JN.1 है, जो सभी टेस्ट किए गए सैंपलों में 53 प्रतिशत है। इसके बाद BA.2 (26%) और अन्य ओमिक्रॉन सब वेरिएंट्स (20%) हैं। ऐसे में कई लोग नए संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन की बूस्टर डोज को लेकर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या नए वेरिएंट के लिए नई वैक्सीन बनाने की जरूरत है? आइए जानते हैं इस बारे में क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट?
क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट?
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी में पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के हेड डॉ. प्रणव प्रकाश से बात की। डॉ. प्रणव प्रकाश ने न्यूज 24 को बताया कि कोविड के माइनर सिम्पटम्स आने की वजह से मामलों में तेजी आई हैं। हालांकि, इससे घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि वायरस समय-समय पर म्यूटेट करता रहता है और नए वेरिएंट या सब-वेरिएंट सामने आते रहते हैं। कई लोगों को लगता है कि नए वेरिएंट आने पर पुरानी कोविड वैक्सीन बेअसर हो जाएगी और संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है। कोविड की पुरानी वैक्सीन अब भी पूरी तरह कारगर है। उन्होंने कहा कि इन वेरिएंट पर वैक्सीन का असर कुछ कम हो सकता है, लेकिन वैक्सीन पूरी तरह बेअसर नहीं होती है।
‘वैक्सीन लगने के बाद इम्यून सिस्टम इंप्रूव हो जाता है’
डॉ. प्रणव प्रकाश ने आगे बताया कि एक बार वैक्सीन लगने के बाद इम्यून सिस्टम इंप्रूव हो जाता है और शरीर को संक्रमण से बचाता है, क्योंकि इसमें कोशिकाओं, रसायनों, ऊतकों और अंगों का एक जटिल नेटवर्क शामिल होता है। प्रतिरक्षा प्रणाली बैक्टीरिया, वायरस और कवक जैसे ‘आक्रमणकारियों’ के साथ-साथ कैंसर कोशिकाओं जैसी असामान्य कोशिकाओं को भी पहचानती है, और फिर शरीर को आक्रमण से लड़ने में मदद करती है। हालांकि, उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि मरीज को दोबारा वैक्सीन की डोज देनी पड़ी, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि नए वैरिएंट के आने से वैक्सीन का असर खत्म हो जाएगा। इसके लिए उन्होंने टेटनस के टीके (टेटनस टॉक्सॉयड) का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि समय के साथ ऐसा हो सकता है कि वैक्सीन का शरीर में असर थोड़ा कम हो तो ऐसे में मरीज को बूस्टर डोज दिया जा सकता है।
डॉ. प्रणव ने कहा कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए अभी न तो कोरोना वैक्सीन और न ही बूस्टर डोज की जरूरत है। कोरोना वैक्सीन जीवनभर वायरस से इम्यूनिटी का दावा नहीं करती है, क्योंकि कुछ सालों में इसका असर कम होने लगता है। शरीर में बनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को दोबारा मजबूत करने के लिए बूस्टर डोज लगवाना जरूरी है, जिससे आपका शरीर कोरोना से लड़ने के लिए तैयार रहे और आपको बीमारी के खिलाफ बेहतर सुरक्षा मिल सके।
‘हर वेरिएंट के लिए अलग वैक्सीन बनाना संभव नहीं’
डॉ. प्रणव प्रकाश ने बताया कि कोविड के हर वेरिएंट के लिए अलग वैक्सीन बनाना संभव नहीं है। अधिकतर कोविड वैक्सीन वायरस के स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करती हैं, जो वेरिएंट्स में थोड़ा-बहुत बदलता है। यह प्रोटीन पूरी तरह नहीं बदलता है, जिसकी वजह से मौजूदा वैक्सीन भी नए वेरिएंट्स के खिलाफ प्रोटेक्शन देती है। कोविड वैक्सीन का मुख्य उद्देश्य संक्रमण को पूरी तरह रोकना नहीं बल्कि गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या और मौत के जोखिम को कम करना है। अगर नया वेरिएंट गंभीर बीमारी नहीं फैला रहा है, तो वैक्सीन में बड़े बदलाव की जरूरत नहीं है।
क्या कहती है येल यूनिवर्सिटी की रिसर्च?
कई लोग नए वायरस से बचने के लिए वैक्सीन की बूस्टर डोज को लेकर चर्चा कर रहे हैं। इस बीच अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में इसे लेकर रिसर्च किया गया है। यह रिसर्च इन सवालों का जवाब देती है। येल यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक, अच्छी खबर यह है कि 2022 से हर साल अपडेट किए जाने वाले टीके अभी भी कोविड से गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु को रोकने में प्रभावी माने जा रहे हैं। रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (CDC) के अनुसार, शिशुओं और बच्चों (छह महीने और उससे ज्यादा उम्र) और वयस्कों को टीका लगाया जा सकता है। वैक्सीन पूरी तरह संक्रमण को रोक नहीं सकती, लेकिन गंभीर लक्षणों और लॉन्ग कोविड के खतरे को काफी हद तक कम करती है। येल मेडिसिन के अनुसार, वैक्सीनेशन के बाद अगर संक्रमण होता भी है तो लक्षण हल्के होते हैं और रिकवरी तेज होती है।