Explainer: अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी गतिविधियां और भ्रष्टाचार, राजनीतिक पार्टियां किन कारणों से अपने ‘नेताओं’ को दिखा सकती हैं बाहर का रास्ता? जानें नियम
Constitution of Political Party: तेज प्रताप यादव की सोशल मीडिया पर अनुष्का यादव के साथ फोटो और वीडियो वायरल हुईं। इसके बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे को पार्टी से छह साल तक के लिए निष्कासित कर दिया है। हाल ही में बीजेपी ने भी अपने दो विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। दोनों पर पार्टी विरोधी गतिविधियां करने का आरोप था। अकसर आपने मीडिया में खबरें देखी या पढ़ी होंगी कि पार्टी ने अपने किसी सदस्य को पार्टी से निकाल दिया। खासकर चुनावों के दौरान ये खबरें आम हैं।
तेज प्रताप यादव के प्रकरण के बाद सोशल मीडिया पर ये चर्चा हो रही है कि इंडिया में राजनीतिक दलों के अपने सदस्यों के निष्कासन के लिए क्या नियम होते हैं? तेज प्रताप को पार्टी से निकालना क्या बिहार चुनाव के मद्देनजर लालू प्रसाद यादव का महज एक हथकंडा है? क्या बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तेज प्रताप फिर पार्टी में दोबारा वापसी कर लेंगे? बहरहाल, तेज प्रताप यादव का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
आइए हम आपको इस खबर में बताते हैं कि राजनीतिक पार्टियों किन कारणों से अपने सदस्यों या पार्टी से चुने गए जनप्रतिनिधियों को पार्टी से निकाल सकती हैं। इसके अलवा देश में दल-बदल विरोधी कानून में क्या-क्या प्रावधान हैं।
अपने सदस्यों के लिए राजनीतिक दलों का आंतरिक संविधान क्या है?
प्रत्येक राजनीतिक दलों का सदस्यों को लेकर अपना संविधान होता है, जिसमें सदस्यता समाप्त करने के नियम निर्धारित होते हैं। इसके अलावा राजनीतिक दल अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी गतिविधियां, भ्रष्टाचार या अन्य कारणों से भी अपने सदस्यों को पार्टी से निकाल सकती है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में क्या प्रावधान हैं?
राजनीतिक पार्टियों में लगाम कसने के लिए देश में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 है। जानकारी के अनुसार यह अधिनियम चुनावी प्रक्रिया और राजनीतिक दलों के पंजीकरण को नियंत्रित करता है। इसके अलावा यदि कोई सदस्य पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसे निष्कासित किया जा सकता है।
इंडिया में दल-बदल विरोधी कानून क्या है?
इंडिया में दल-बदल विरोधी कानून भी है, जिससे राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित किया जाता है। इसके अनुसार यदि कोई निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर वोट करता है या दूसरी पार्टी में शामिल होता है, तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। बता दें इस पूरी प्रक्रिया को स्पीकर या राज्यसभा के सभापति द्वारा संचालित किया जाता है।
राजनीतिक पार्टियों को नियंत्रित करने के लिए चुनाव आयोग की क्या भूमिका होती है?
देश के संविधान में राजनीतिक दलों के लिए क्या हैं नियम, इस तरह की जाती है निगरानी
दल-बदल विरोधी कानून की प्रक्रिया क्या होती है?
देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़कर किसी अन्य पार्टी में शामिल होता है तो उस पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा यदि कोई चुना हुआ प्रतिनिधि बिना पार्टी के निर्देश के मतदान करता है या पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होता है तो उस पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा यदि कोई निर्दलीय उम्मीदवार जीतने के बाद किसी पार्टी में शामिल होता है, यदि किसी दल का 2/3 से कम सदस्य एक साथ किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो वह दल-बदल विरोधी कानून के तहत दोषी मानें जाएंगे।
गड़बड़ी होने पर किसे कर सकते हैं शिकायत?
जानकारी के अनुसार अपने सदस्यों के गड़बड़ी करने पर कोई भी राजनीतिक पार्टियां संबंधित राज्य विधानसभा के अध्यक्ष या लोकसभा, राज्यसभा के सभापति को शिकायत दे सकती हैं। नियमों के अनुसार अध्यक्ष या सभापति दल-बदल के आरोपों की जांच करते हैं और इस पर फैसला ले सकते हैं। इतना ही नहीं अगर दल-बदल साबित होता है तो संबंधित सांसद या विधायक को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
अगर अध्यक्ष किसी सदस्य को आयोग्य घोषित करता है तो क्या होता है?
किसी सदस्य को अयोग्य करारा देने के बाद अयोग्य घोषित प्रतिनिधि फिर से चुनाव लड़ सकता है, लेकिन उसे संबंधित पद से अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ती है। जानकारी के अनुसार कुछ अपवादों के तहत, यदि किसी दल का 2/3 हिस्सा एक नई पार्टी में विलय कर लेता है, तो वे अयोग्यता से बच सकते हैं।
राजनीतिक पार्टियों में सुप्रीम कोर्ट की क्या भूमिका है?