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Carrier Aviation का क्या महत्व? भारत को तीसरे विमान कैरियर की आवश्यकता क्यों

डिफेंस एक्सपर्ट आशीष सिंह के मुताबिक, भारत को स्वदेशी विमान वाहक -2 (IAC-2) के रूप में तीसरे विमान वाहक के निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि विमानवाहक पोतों को लंबे समय से नौसैनिक शक्ति के तहत सबसे ज्यादा ताकत के तौर पर प्रेजेंट किया गया है।

Reported By : Pawan Mishra | Edited By : Deepti Sharma | Updated: Dec 27, 2024 16:26
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Carrier Aviation(पवन मिश्रा): हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) जहां समुद्री व्यापार मार्ग, दो देशों के पॉलिटकल मामलों को बढ़ावा भी देते हैं, क्योंकि भारत के राजनीतिक हित पूरी तरह स्पष्ट हैं कि सबसे अहम पॉलिटिकल डिवलपमेंट है और पड़ोसी देशों के साथ इसको बढ़ावा तभी मिल सकता है, जब दो देशों के बीच बिजनेस राजनीतिक हितों के साथ मिलते हैं। इसी कड़ी में सबसे आगे भारतीय नौसेना का विमान वाहक कार्यक्रम है। आईएनएस विक्रांत की सफल कमीशनिंग और परिचालन इंडियन नेवी की ताकत में लगातार बढ़ावा कर रहा है। आपको बता दें, सिर्फ कमीशनिंग करके ही हमारी नौसेना शांत नहीं बैठी है बल्कि भविष्य के युद्ध के लिए भी खुद को ज्यादा से ज्यादा शक्तिशाली बनाने में जुटी हुई है। दूसरी कई चुनौतियों से कैसे निपटना है, उसपर भी लगातार काम चल रहा है।

डिफेंस एक्सपर्ट आशीष सिंह के मुताबिक, भारत को स्वदेशी विमान वाहक -2 (IAC-2) के रूप में तीसरे विमान वाहक के निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि विमानवाहक पोतों को लंबे समय से नौसैनिक शक्ति के तहत सबसे ज्यादा ताकत के तौर पर प्रेजेंट किया गया है।

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आपको बता दें, समुंदर में तैरते एयरबेस प्रोजेक्ट सैन्य किसी देश के तटों से बहुत दूर हो सकते हैं, क्योंकि जो दूसरे देश भारत पर समुद्री व्यापार पर अत्यधिक निर्भर हैं, वे डिफेंस प्रॉपर्टी यानी मेक इन इंडिया से बने आर्म्स के साथ ही बिजनेस सिक्योरिटी पर भी बेहद ध्यान दे रहे हैं।

पूर्व एडमिरल ने न्यूज 24 को जानकारी देते हुए बताया कि समुद्री व्यापार की रक्षा करना भारत का 95% से अधिक व्यापार मात्रा के हिसाब से और 70% व्यापार मूल्य के हिसाब से समुद्री मार्गों से होता है। वहीं, विमान वाहक संचार की समुद्री एसएलओसी के लिए महत्वपूर्ण हवाई कवर देती हैं और इसी वजह से समुंदर के रास्ते बिजनेस को संभलने के अलावा, तस्करी, डकैती जैसे अटैक से भी सुरक्षित करता है।

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आईएनएस विक्रांत के प्रयासों ने सफलता पाई

2022 में आईएनएस विक्रांत का देश की सेवा के आना, डिफेंस सेक्टर में, एक बड़ा कदम साबित हुआ था। देश के पहले स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित विमान वाहक के रूप में, विक्रांत ने दशकों के प्रयास में सफलता पाई है। इसमें 76% स्वदेशी सामग्री के साथ, इसने 500 एमएसएमई को शामिल किया। इससे 14,000 से अधिक नौकरियां पैदा कीं और घरेलू जहाज निर्माण उद्योग को जिंदा किया।

1990 के दशक के दौरान पनडुब्बी उत्पादन में सालों का अंतर देखा गया। जिस वजह से इंडियन ओसियन के डिवलपमेंट में देरी आई। विकास की इसी कड़ी में कोई रुकावट नहीं आए, इसके लिए IAC-2 का निर्माण बेहद जरूरी है। प्रस्तावित IAC-2 में अपने पहले की तुलना में महत्वपूर्ण तकनीक के शामिल होने की उम्मीद है।

जबकि आईएनएस विक्रांत STOBAR (Short Take-Off But Arrested Recovery) सिस्टम पर काम करता है, IAC-2 CATOBAR (Catapult Assisted Take Off But Arrested Recovery) सिस्टम को अपना सकता है, जिससे भारी और अधिक अपडेटेड विमान लॉन्च करने में मदद मिलेगी।

IAC-2 निगरानी और स्ट्राइक मिशन

इसी कड़ी में IAC-2 निगरानी और स्ट्राइक मिशन के लिए राफेल-एम और स्वदेशी ट्विन-इंजन डेक-आधारित फाइटर्स (TEDBF) और मानव रहित हवाई वाहन (UAV) जैसे अत्याधुनिक मल्टीरोल लड़ाकू विमानों को तैनात कर सकता है। चीन की नौसैनिक महत्वाकांक्षाएं दुनिया भर के समुद्री देशों के लिए खतरे की घंटी रही हैं। अपने लियाओनिंग, शेडोंग और फ़ुजियान वाहकों और परमाणु-संचालित सुपर करियर की योजनाओं के साथ, बीजिंग तेजी से पारंपरिक नौसैनिक शक्तियों के साथ अंतर को कम कर रहा है।

हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी और निगरानी के लिए दोहरे उद्देश्य वाले नागरिक जहाजों का उपयोग सीधे तौर पर भारत की समुद्री सुरक्षा को चुनौती देता है। तीसरा जहाज भारत को प्रभावी ढंग से शक्ति प्रदर्शित करने, आक्रामकता को रोकने और क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त बनाए रखने में सक्षम करेगा।

एक्सपर्ट के मुताबिक, IAC-2 के निर्माण से हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी, खासकर एमएसएमई क्षेत्र में, विश्व स्तर पर, विमानवाहक पोत नौसैनिक रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका 11 परमाणु-संचालित वाहकों का एक बेड़ा संचालित करता है, जबकि जापान और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश अपनी जहाज की क्षमताओं को ज्यादा से ज्यादा बढ़ा रहे हैं।

इसी कड़ी में हमारी नौसेना भी खुद को दुश्मन देश से ज्यादा मजबूत करने में जुटी है। भारतीय नौसेना का लक्ष्य साल 2047 तक पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने का है और इसी कड़ी में हमारी नौसेना रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध को देखते हुए कई टेक्नोलॉजीज पर भी काम कर रही है।

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Deepti Sharma

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Pawan Mishra

First published on: Dec 27, 2024 03:51 PM

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