कांवड़ रूट पर नेमप्लेट! यूपी में BJP की सीटें घटने के साइड इफेक्ट शुरू, सहयोगियों को मिली ‘जुबान’
यूपी में कांवड़ यात्रा के मार्ग पर नेमप्लेट लगाने के फैसले का असर दिखने लगा है। फाइल फोटो
Muzaffarnagar Police order on Kanwar route eateries: लोकसभा चुनाव 2024 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी 240 सीटों पर क्या अटकी। माहौल एकदम बदल गया है। कम से कम एनडीए के सहयोगियों को तो जुबान मिल ही गई है, लेकिन बीजेपी के जले पर नमक तो अपनों ने छिड़का है। रही सही कसर यूपी बीजेपी में मची खींचतान ने पूरी कर दी है। जाहिर है कि 400 पार के नारे को 240 पर अटकाने में यूपी के जनमत ने अहम भूमिका निभाई है।
बहुमत के आंकड़े से चूकने के बाद एनडीए के सहयोगियों के मुखर होने का ताजा मामला कांवड़ यात्रा के मार्ग की सभी दुकानों पर मालिक का नाम और मोबाइल लिखने का ताजा प्रकरण है। दरअसल सहारनपुर के डीआईजी अजय साहनी ने यह आदेश दिया था। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली के दुकानदारों ने इसका पालन भी शुरू कर दिया है। लेकिन सियासी गलियारों में यूपी प्रशासन के इस फैसले पर एनडीए के सहयोगियों ने दो टूक बात की है।
जेडीयू ने कहा- धर्म श्रद्धा की चीज
यूपी प्रशासन के फैसले पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा कि इस फैसले से सामाजिक सद्भाव बिगड़ेगा। त्यागी ने यूपी सरकार से फैसले की समीक्षा करने की बात कही। केसी त्यागी ने कहा कि 'मैं मुजफ्फरनगर इलाके से ही आता हूं। इलाके के मुसलमानों ने हमेशा कांवड़ियों का सहयोग किया है। पुलिस का काम है कि वो आसामाजिक तत्वों को पहचाने, लेकिन कोई आदेश सांप्रदायिक विभाजन पैदा ना करे।'
बिहार के बांका से जेडीयू के सांसद गिरधारी यादव ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'हमारे राज्य में हिंदू-मुस्लिम एक साथ रहते हैं... धर्म श्रद्धा की चीज है। हम मुस्लिम त्योहारों में शामिल होते हैं, और वे हमारे धर्म का सम्मान करते हैं।'
जयंत चौधरी की पार्टी ने भी उठाया सवाल
राष्ट्रीय लोकदल के नेताओं ने भी मुजफ्फरनगर प्रशासन के फैसले पर सवाल उठाया है। रालोद के प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि 'ऐसे आदेश की क्या आवश्यकता है। प्रशासन को सुरक्षा व्यवस्था करनी चाहिए। दुकानों के ऊपर नेमप्लेट लगाने की क्या आवश्यकता है। ये प्रशासन का काम नहीं है।'
मुख्तार अब्बास नकवी ने भी बुलंद की आवाज
जेडीयू और रालोद के बाद यूपी प्रशासन के फैसले पर सबसे ज्यादा चौंकाने वाली प्रतिक्रिया पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की रही। नकवी ने एक्स अकाउंट पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'कुछ अति उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गड़बड़ी वाले... अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं। आस्था का सम्मान होना ही चाहिए पर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए।' अपने ट्वीट के साथ मुख्तार अब्बास नकवी ने रैदास का एक दोहा भी लिखा। उन्होंने लिखा - 'जनम जात मत पूछिए, का जात अरु पात। रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात।'
केसी त्यागी, रालोद और मुख्तार अब्बास नकवी के साथ यूपी प्रशासन के इस फैसले का बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी जोरदार विरोध किया। दोनों नेताओं ने एक्स अकाउंट पर पोस्ट कर यूपी प्रशासन के फैसले पर सवाल उठाया। अखिलेश यादव ने लिखा कि 'गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते जैसे नामों से क्या पता चलेगा? भाजपा सामाजिक सद्भाव की दुश्मन है। समाज का भाईचारा बिगाड़ने का बहाना ढूंढ़ती है।'
वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि 'यात्रा मार्ग के दुकानदारों का नाम लिखने का फरमान गलत है। यह माहौल बिगाड़ सकता है। जनहित में प्रदेश सरकार को इसे तुरंत वापस लेना चाहिए।' राजनीतिक पार्टियों की ओर से आपत्ति के बाद मुजफ्फरनगर पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि दुकानदारों के लिए नाम लगाना स्वैच्छिक है। आदेश का उद्देश्य कानून व्यवस्था को बनाए रखना है।
जून 2024 में आए लोकसभा चुनाव परिणाम ने एनडीए के सहयोगियों को नई आवाज दी है। ये हर नई घटना के साथ साबित होता जा रहा है। नरेंद्र मोदी के पहले दो कार्यकाल की तरह एनडीए के सहयोगी अब चुप्पी साधे नहीं रहते। वे अपने हितों के मुद्दे पर दो टूक राय रखते हैं।
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