चुनावी बॉन्ड पर रोक से आएगी पारदर्शिता? क्या कहते हैं नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन
अमर्त्य सेन
Amartya Sen On Electoral Bond Decision : प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की है। उन्होंने कहा कि यह एक घोटाला था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस योजना को रद्द कर दिया था और कहा था कि यह असंवैधानिक और सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने वाली है। अब अमर्त्य सेन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से देश की चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
अमर्त्य सेन ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना एक घोटाला थी। मुझे खुशी है कि इस पर रोक लगा दी गई है। मुझे उम्मीद है इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी। सेन के अनुसार भारत की चुनावी व्यवस्था राजनीति की प्रकृति से काफी प्रभावित होती है, जिससे आम आदमी की आवाज सुनना मुश्किल हो जाता है। हमारे देश का चुनावी सिस्टम इस तथ्य से काफी हद तक प्रभावित होता है कि सरकार विपक्षी पार्टियों और उन पक्षों के साथ कैसा व्यवहार करती है जिन्हें वह प्रतिबंधों के तहत रखना चाहती है।
राजनीतिक आजादी बहुत जरूरी है
उन्होंने कहा कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकों के एक्शन के साथ एक ऐसा चुनावी सिस्टम चाहते हैं जो जितना संभव हो उतना मुक्त हो। सेन ने जोर दिया कि भारतीय संविधान सभी नागरिकों को राजनीतिक स्वतंत्रता देना चाहता है। इसमें किसी भी समुदाय के लिए को विशेषाधिकार देने का प्रावधान नहीं है। बता दें कि चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर कांग्रेस भाजपा का विरोध कर रही थी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था फैसला?
इस योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि चुनावी बॉन्ड राजनीति में काले धन के इस्तेमाल को रोकने का अकेला रास्ता नहीं हो सकते हैं। इसके लिए अन्य विकल्प अपनाए जा सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने वाले हैं। जनता को संविधान के तहत यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को आदेश दिया है कि वह चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले चंदे की जानकारी साझा करे।
चुनावी बॉन्ड योजना में थे ये प्रावधान
भाजपा सरकार ने साल 2017 में इस योजना का ऐलान किया था और 2018 में इसे लेकर नोटिफिकेशन जारी की थी। बाद में मनी बिल का नाम देकर इसे राज्यसभा में पेश किए बिना पारित कर दिया गया था। विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार के इस कदम को मनमाना करार दिया था। बता दें कि इसके तहत यह प्रावधान था कि राजनीतिक दल को चंदा देने वाले शख्स की पहचान उजागर नहीं की जाएगी। इसके अलावा चुनावी बॉन्ड के जरिए डोनेशन वाले शख्स को उस पैसे पर टैक्स में भी छूट दी जा रही थी।
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