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Azadi Ka Amrit Mahotsav: पहली एयर वाइस मार्शल से लेकर फाइटर जेट उड़ाने तक, रोमांचक है इन 10 महिला अफसरों की कहानियां

नई दिल्ली: 15 अगस्त को आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा। पूरा देश इसे आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में सेलिब्रेट करेगा। इस मौके पर हम आपको इस बार भारतीय सशस्त्र बल (Indian Armed Force) की 10 ऐसी वीर महिलाओं के बारे में बताएंगे जिनकी कहानियां न सिर्फ आधी आबादी को बल्कि पूरे […]

नई दिल्ली: 15 अगस्त को आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा। पूरा देश इसे आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में सेलिब्रेट करेगा। इस मौके पर हम आपको इस बार भारतीय सशस्त्र बल (Indian Armed Force) की 10 ऐसी वीर महिलाओं के बारे में बताएंगे जिनकी कहानियां न सिर्फ आधी आबादी को बल्कि पूरे देश के लोगों को प्रेरित करती है। इन महिलाओं ने पुरुष साथियों के साथ कदमताल करते हुए देश की सेवा में अमूल्य छाप छोड़ी है। इनमें से कुछ महिलाओं की कहानियों को हम 70MM के पर्दे भी पर भी देख चुके हैं। वो बीते जमाने की बात हो गई जब महिलाएं काफी कम मात्रा में देश की सेवा के लिए भारतीय सशस्त्र बल में शामिल होती थीं। अब महिलाएं सारे बंधनों को तोड़ते हुए थल सेना, वायु सेना और जल सेना में आकर अपना लोहा मनवा रहीं हैं। आइए, आपको आजादी के अमृत महोत्सव पर देश की 10 ऐसी बहादुर महिलाओं के बारे में बताते हैं। 1. पुनीता अरोड़ा लेफ्टिनेंट जनरल पुनीता अरोड़ा भारतीय सशस्त्र बलों के लेफ्टिनेंट बनने वाली भारत में पहली महिला और भारतीय नौसेना के पहले वाइस एडमिरल हैं। पंजाबी परिवार में पैदा हुईं पुनीता अरोड़ा जब 12 साल की थीं, तब इनका परिवार विभाजन के बाद भारत चले आए और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में बस गए। 8वीं कक्षा तक सहारनपुर में सोफिया स्कूल में पढ़ाई के बाद उन्होंने गुरु नानक गर्ल्स इंटर कालेज में एडमिशन लिया। 11वीं में उन्होंने कैरियर के रूप में साइंस सब्जेक्ट को चुना। इसके बाद उन्होंने 1963 में पुणे के आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया था। पुनीता अरोड़ा को भारतीय सशस्त्र बल में 15 पदकों से सम्मानित किया गया। कालूचक नरसंहार के पीड़ितों को कुशल और समय पर सहायता प्रदान करने के लिए उन्हें 2002 में विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्हें 2006 में परम विशिष्ट सेवा पदक दिया गया। 2. पद्मावती बंदोपाध्याय डॉ पद्मा बंदोपाध्याय भारत की पहली महिला एयर वाइस मार्शल हैं। वह उत्तरी ध्रुव में वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उनकी एक और उपलब्धि यह है कि वह भी रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। 1973 में उन्हें विशिष्ट सेवा पदक प्राप्त हुआ और 1991 में उन्हें AFHA पुरस्कार प्राप्त हुआ। पद्मावती को चिकित्सा के क्षेत्र में भारत सरकार ने 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। पद्मावती बंदोपाध्याय 1968 में IAF में शामिल हुईं और 1978 में अपना डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा किया, ऐसा करने वाली वह पहली महिला अधिकारी बनीं। 1971 के भारत-पाक संघर्ष के दौरान उनकी मेधावी सेवा के लिए उन्हें एयर वाइस मार्शल के पद पर प्रमोट करने के साथ-साथ, ‘विशिष्ट सेवा पदक’ से सम्मानित किया गया था। 3. मिताली मधुमिता मिताली मधुमिता भारतीय सेना का चर्चित नाम हैं। साल 2010 में मिताली भारत की पहली ऐसी महिला अधिकारी बनीं, जहां उन्हें उनकी बहादुरी के लिए गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। दरअसल 26 फरवरी 2010 को अफगानिस्तान के काबुल में आतंकवादियों द्वारा भारतीय दूतावास में किए गए हमले के दौरान दिखाए गए साहस के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को सेना पदक देकर सम्मानित किया गया। लेफ्टिनेंट कर्नल मधुमिता ने भारतीय दूतावास के अंदर जाकर, घायल नागरिकों और सैन्य कर्मियों को मलबे से बचाया था। हालांकि कि यह हमला बेहद घातक था, जिसमें 19 लोगों ने अपनी जान गवाई थी। हालांकि मधुमिता ने अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर हुए हमले में 17 लोगों की जानें बचाई थी। 4. दिव्या अजित कुमार 21 साल की उम्र में, दिव्या अजित कुमार ने 244 साथी कैडेटों (पुरुष और महिला दोनों) को हराकर सर्वश्रेष्ठ ऑल-राउंड कैडेट का पुरस्कार जीता और प्रतिष्ठित स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर हासिल किया था। यह अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी के एक कैडेट को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। कप्तान दिव्या अजित कुमार भारतीय सेना AAD की एक अधिकारी हैं। वह OTA (ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी) चेन्नई से से पास हुई थीं। गणतंत्र दिवस 2015 की परेड के दौरान उन्होंने 154 महिला अधिकारियों और कैडेटों की सभी महिला टीमों का नेतृत्व किया था, जहां तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी मौजूद थे। कप्तान दिव्या अजित कुमार का जन्म चेन्नई के एक तमिल परिवार में हुआ था। वह अपने घर में अपनी पीढ़ी की पहली सेना अधिकारी हैं। उनकी स्कूली शिक्षा चेन्नई में पूरी हुई थी और स्टेल्ला मारिस कॉलेज, चेन्नई से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की। वह एनसीसी (राष्ट्रीय कैडेट कोर) में शामिल हो गयी, जिसने उन्हें भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। 5. निवेदिता चौधरी फ्लाइट लेफ्टिनेंट निवेदिता चौधरी, माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली भारतीय वायु सेना (IAF) की पहली महिला और यह उपलब्धि हासिल करने वाली राजस्थान की पहली महिला बनीं। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के मुकुंदगढ़ की रहने वाली निवेदिता चौधरी अक्टूबर 2009 में आगरा में स्क्वाड्रन में शामिल हुईं थीं। स्कूल में एनसीसी कैडेट के रूप में जोश के साथ पढ़ाई पूरी कर जब कॉलेज पहुंची तो निवेदिता ने वहां भी एनसीसी ज्वॉइन की और एयर विंग में एडमिशन लिया. कॉलेज से पास आउट होने के बाद पहले ही प्रयास में वायु सेना में उनका सिलेक्शन हो गया। 6. प्रिया सेमवाल सशस्त्र बलों में एक अधिकारी के रूप में शामिल होने वाली प्रिया सेमवाल के पति नायक अमित शर्मा 20 जून 2012 को अरुणाचल प्रदेश में ऑपरेशन आर्किड में शहीद हो गए थे। पति की शहादत के बाद उन्होंने सेना में जाने का फैसला किया। साल 2014 में एक युवा अधिकारी के रूप में उन्हें सेना के इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग (ईएमई) के कोर में शामिल किया गया था। देहरादून की मेजर प्रिया सेमवाल चेन्नई से विशाखापट्टनम के बीच, थल सेना की महिला अधिकारियों के पहले नौकायान अभियान का हिस्सा रहीं हैं। मेजर प्रिया इससे पहले भी पश्चिम बंगाल के हल्दिया से पोरबंदर, गुजरात के बीच आर्मी सेलिंग एक्सपीडिशन का हिस्सा रह चुकी हैं। तब 50 सदस्यीय दल ने 45 दिन में समुद्र पर 3500 नाटिकल मील का सफर तय किया था। 7. सोफिया कुरैशी कोर ऑफ सिग्नल्स की लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने साल 2016 में इंडियन आर्मी के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में 40 सदस्यों की टुकड़ी का नेतृत्व करके इतिहास रच दिया था। गुजरात की रहने वाली सोफिया बायोकेमिस्ट्री में पोस्ट ग्रैजुएट हैं। सोफिया 2006 में कांगो में यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग ऑपरेशन्स में शामिल हुईं थीं। वे पीसकीपिंग ऑपरेशन्स से भी जुड़ी रही थीं। उनके दादा भी सेना में थे। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सोफिया 1999 में सेना से जुड़ी। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 17 साल थी। उनकी शादी मेकेनाइज्ड इन्फेंट्री में तैनात एक आर्मी अफसर से हुई है। 8. गुंजन सक्सेना फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना भारतीय वायु सेना अधिकारी और पूर्व हेलीकॉप्टर पायलट हैं। वो 1994 में IAF में शामिल हुईं और 1999 के कारगिल युद्ध की दिग्गज हैं। वो कारगिल युद्ध का हिस्सा बनने वाली दो महिला वायु सेना अधिकारियों में से एक हैं। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी मुख्य भूमिकाओं में से एक कारगिल से घायलों को निकालना, परिवहन आपूर्ति और निगरानी में सहायता करना था। गुंजन कारगिल से घायल और मृत 900 से अधिक सैनिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन का हिस्सा बन गईं। 2004 में आठ साल तक पायलट के रूप में सेवा के बाद उन्होंने एक हेलीकॉप्टर पायलट के रूप में अपना करियर समाप्त किया। गुंजन सक्सेना शौर्य वीर पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला भी बनीं। सक्सेना का जन्म एक सेना परिवार में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल अनूप कुमार सक्सेना और भाई लेफ्टिनेंट कर्नल अंशुमान, दोनों ने भारतीय थलसेना में सेवा की। सक्सेना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से फिजिक्स में ग्रैजुएशन किया। 2020 में बनाई गई बॉलीवुड फिल्म गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल उनके जीवन से प्रेरित है। 9. शांति तिग्गा रक्षा क्षेत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाने में वाली पहली महिला शांति तिग्गा थीं। जब वे सेना में शामिल हुईं तब उनकी उम्र 35 साल थी और वे दो बच्चों की मां भी थीं। उनके पति की मौत भी हो चुकी थी। सिर्फ़ 17 साल की उम्र में शांति तिग्गा की शादी कर दी गई थी। जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल की शांति तिग्गा गांव में रहती थी। शांति तिग्गा के पति 2005 में चल बसे, वे रेलवे में नौकरी करते थे। पति की मौत के बाद उनकी नौकरी शांति तिग्गा को मिल गई। 2005 में रेलवे जॉइन करने के बाद उन्होंने आर्मी जॉइन करने की सोची। शांति ने सभी फिजिकल टेस्ट में बेहतरीन प्रदर्शन किया। 1.5 किलोमीटर की दौड़ पूरी करने में उन्होंने पुरुष प्रतिभागियों से 5 सेकेंड कम का टाइम लिया। 50 मीटर की दौड़ उन्होंने सिर्फ़ 12 सेकेंड में पूरी की। सारे टेस्ट पास कर शांति तिग्गा ने 2011 में 969 Railway Engineer Regiment of Territorial Army जॉइन किया। इसके ठीक 2 साल बाद 2013 में उनकी मौत हो गई। 10. अवनी चतुर्वेदी अवनी चतुर्वेदी भारत की पहली महिला ऑफिसर हैं, जिन्होंने फाइटर जेट उड़ाने का कीर्तिमान बनाया। अवनी चतुर्वेदी ने गुजरात के जामनगर एयरबेस से उड़ान भरी और पहली बार में ही सफल रहीं। उन्होंने अकेले मिग-21 बाइसन विमान उड़ा कर दिखाया कि महिलाओं के लिए बड़े से बड़ा लक्ष्य पाना मुश्किल नहीं है। राजस्थान वनस्थली यूनिवर्सिटी से बीटेक करने वाली अवनी ने 6 महीने जॉब करने के बाद सेना में जाने का निर्णय लिया और उसमें सफल रही।


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