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Independence Day: क्रांतिकारियों की मददगार दुर्गा भाभी ने जब भगत सिंह को बना डाला अपने 3 साल के बेटे का पिता

‘युद्ध में जय बोलने वालों का भी उतना ही योगदान होता है, जितना कि जान जोखिम में डालकर मोर्च पर लड़ने वालों का’। सदियों से यह कहावत ऐसे ही प्रचलित नहीं है। देश की उन्नति आने वाली पीढ़ियों को इतिहास की हर कुर्बानी का स्मरण कराना जरूरी है। इसी कड़ी में 15 अगस्त को ‘Nation […]

'युद्ध में जय बोलने वालों का भी उतना ही योगदान होता है, जितना कि जान जोखिम में डालकर मोर्च पर लड़ने वालों का'। सदियों से यह कहावत ऐसे ही प्रचलित नहीं है। देश की उन्नति आने वाली पीढ़ियों को इतिहास की हर कुर्बानी का स्मरण कराना जरूरी है। इसी कड़ी में 15 अगस्त को 'Nation First, Always First' थीम के तहत मनाए जा रहे आजादी दिवस पर News 24 हिंदी आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी के योगदान को स्मरण करा रहा है। अदम्य साहस की धनी दुर्गा भाभी ने लगभग हर क्रांतिकारी की मदद की थी। इन्हीं में से एक प्रकरण वो भी था, जब अंग्रेजों के घेरे में फंस चुके भगत सिंह को बचाने के लिए दुर्गा भाभी उनकी पत्नी बन गई थी। कुछ ऐसे हुआ था वो प्रकरण...
  • 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद के एक संपन्न परिवार में जन्मी थीं भगत सिंह की समकालीन वीर नारी दुर्गा देवी, आयरन लेडी से हुईं मशहूर

  • महज 11 साल की छोटी सी उम्र में हुआ था लाहौर में रहते संपन्न गुजराती भगवती चरण वोहरा के साथ विवाह 

ध्यान रहे, भगत सिंह और चंद्र शेखर आजाद आदि पर बनी बहुत सी फिल्मों में दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi) का जिक्र मिल जाता है। यह वह शख्सियत थी, जिन्होंने लाहौर में जॉन सॉन्डर्स (John Saunders) की हत्या के बाद घिर गए भगत सिंह को भागने में मदद की थी। दुर्गा भाभी उन महिलाओं से एक नाम है, जिनका आजादी की लड़ाई में पुरुषों से रत्तीभर भी कम योगदान नहीं था। गोरे अंग्रेज इस शख्सियत को आयरन लेडी कहकर बुलाते थे। 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद के एक संपन्न परिवार में जन्मी भगत सिंह की समकालीन दुर्गा देवी (Durga Devi) की माता के निधन के बाद पिता साधु बन गए थे और पालन-पोषण इनकी चाची ने किया था। महज 11 साल की छोटी सी उम्र में इनका विवाह लाहौर में रहते संपन्न गुजराती भगवती चरण वोहरा (Bhagwati Charan Vohra) के साथ हुआ। 1920 में लाहौर के नेशनल कॉलेज के स्टूडेंट भगवती चरण वोहरा ने सत्याग्रह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। भगत सिंह, सुखदेव और यशपाल भी इसी कॉलेज में पढ़ते थे, जिन्होंने मिलकरयुवाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ना और सांप्रदायिकता और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए नौजवान भारत सभा (Naujawan Bharat Sabha) की शुरुआत की।

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भगवती चरण वोहरा के घर क्रांतिकारी दोस्तों का आना-जाना था तो उनकी पत्नी दुर्गा देवी भी क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गईं और हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की सदस्य बन गईं। खास बात यह है कि उस वक्त अपनी जान जोखिम में डालकर महिला क्रांतकारी हथियार, असला-बारूद और साथियों के संदेश एक से दूसरी जगह पहुंचाती थीं। दुर्गा देवी ने भी संदेश वाहक के साथ ही बम बनाने वाली फैक्ट्री चलाने में मदद की।

कोई कैसे भूल सकता है लाला जी के कातिल के कत्ल को

आजादी की लड़ाई और भगत सिंह की जीवनी का जिक्र आते ही 19 दिसंबर 1928 की वह घटना अनायास ही याद आ जाती है, जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने जॉन सॉन्डर्स को ठिकाने लगा दिया था। यह वह नाम थ्ज्ञा, जिस पर लाला लाजपत राय के कातिल का ठप्पा लगा हुआ था। बदला लेने के लिए सांडर्स को गोली मार दी गई और फिर लाहौर से निकलने के तीनों क्रांतिकारी दुर्गा देवी से मदद मांगने पहुंचे। उनके पति भगवती चरण वोहरा तब कांग्रेस सेशन में हिस्सा लेने कोलकाता गए हुए थे। फिर पूरी प्लानिंग के तहत पति द्वारा क्रांतिकारियों की मदद के लिए पहले से दिए गए पैसे लेकर दुर्गा देवी भगत सिंह की पत्नी और राजगुरु नौकर बन गए। 3 साल के बेटे सब्यसांची को गोद में लिए दुर्गा देवी भगत सिंह और राजगुरु के साथ फर्स्ट क्लास कोच में बैठकर लखनऊ के लिए निकल गई।

अंग्रेजों पर गोलिया चलाने वाली पहली महिला क्रांतिकारी

इतना ही नहीं, जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के लिए फांसी की सजा तय हो चुकी थी तो विरोध में गदर पार्टी के पृथ्वी सिंह आज़ाद और एचएसआरए के सदस्य सुखदेव राज ने पमंजाब के गवर्नर विलियम हैली को बंबई में मारने की योजना बनाई। कड़ी सुरक्षा की वजह से योजना बदलनी पड़ी और 8 अक्टूबर 1930 की रात को 3 लोगों ने लैमिंग्टन रोड पुलिस स्टेशन पर खड़े एक ब्रिटिश जोड़े पर गोलियां चला दी। यह वो वक्त था, जब दुर्गा देवी के रूप में पहली किसी महिला क्रांतिकारी को अंग्रेजों पर गोलियां बरसाते देखा गया।

आजादी के बाद ऐसे जीया दुर्गा भाभी ने जीवन, नकार दिया राजनीति को

बहुत से कॉमरेड साथियों के मारे जाने के बाद अंदर से टूट गई दुर्गा भाभी ने 14 सितंबर 1932 को सरेंडर कर दिया। 2 महीने की जेल हुई, लेकिन बावजूद इसके 12 महीने तक लाहौर से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई। 1935 में उन्होंने मैट्रीकुलेशन पास किया और 1936 में गाजियाबाद स्थित प्यार लाल गर्ल्स स्कूल में पढ़ाने लग गई। 1940 में उन्होंने लखनऊ में मॉन्टेसरी स्कूल की शुरुआत की। देश की आजादी के बाद दुर्गा देवी को चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। 15 अक्टूबर 1999 में दुर्गा देवी का निधन हो गया।


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