Kidney Dialysis: किडनी रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती है ‘क्विव डायलिसिस’, US स्टडी में बड़ा दावा
किडनी (Kidneys) की गंभीर बीमारी वाले लोगों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी आउट पेशेंट डायलिसिस (Dialysis) की आवश्यकता होती है। (सांकेतिक फोटो)
Kidney Dialysis: अमेरिका सोसाइटी ने एक जर्नल में प्रकाशित स्टडी रिपोर्ट में पता चला है कि किडनी (Kidney) की गंभीर बीमारी वाले लोगों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी आउट पेशेंट डायलिसिस (Dialysis) की आवश्यकता होती है। इन मरीजों को आमतौर पर सामान्यत वही देखभाल की जरूरत होती है जोकि अंतिम चरण की किडनी बीमारी वाले लोगों को होती है।
स्टडी रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि हालांकि, किडनी की गंभीर बीमारी वाले कुछ डायलिसिस (Dialysis) रोगी ठीक होने में सक्षम हो सकते हैं। लेकिन बाद में ठीक होने वाले मरीज, जो कि आम तौर पर लंबे समय से चले आ रहे हाई ब्लडप्रेशर या डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं, को या तो अपने बाकी जीवन के लिए डायलिसिस पर रहना होगा या फिर किडनी रिप्लेसमेंट करानी होगी। शोध से जुड़े निष्कर्ष अमेरिकन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित किए गए थे।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक नेफ्रोलॉजी के यूसीएसएफ डिवीजन के एमडी, पहले लेखक इयान ई. मैककॉय ने कहा कि जिन लोगों में ठीक होने की क्षमता है। लेकिन वो डायलिसिस पर बने रहते हैं तो उनको हृदय रोग, संक्रमण, अंग क्षति और मौत का अनावश्यक खतरा हो सकता है।
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डायलिसिस केंद्र में एक चौथाई से भी कम रोगियों को गंभीर किडनी की बीमारी
एक सामान्य मध्यम आकार के डायलिसिस केंद्र में एक चौथाई से भी कम रोगियों को गंभीर किडनी की बीमारी होती है। यह तीव्र संक्रमण या सदमे के परिणामस्वरूप हो सकता है, जिससे किडनी में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, साथ ही बड़ी सर्जरी और कीमोथेरेपी एजेंट भी किडनी के लिए विषाक्त हो जाते हैं।
इतने रोगियों के डेटा को किया गया ट्रैक
स्ट्डी में शोधकर्ताओं ने गंभीर किडनी बीमारी के 1,754 रोगियों और बाह्य रोगी डायलिसिस केंद्रों पर अंतिम चरण के किडनी बीमारी से ग्रसित 6,197 रोगियों के डेटा को ट्रैक किया। हालांकि प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला कि गंभीर किडनी बीमारी वाले रोगियों को कम डायलिसिस की आवश्यकता होती है। वहीं, दोनों तरह की बीमारी वाले मरीजों के समूहों का इलाज काफी हद तक एक जैसा ही किया गया। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दोनों तरह के मरीजों का सप्ताह में 3 बार डायलिसिस पर शुरू किया गया था, और उपचार के पहले महीने में दोनों समूहों के अधिकांश रोगियों की किडनी की कार्यप्रणाली का परीक्षण नहीं किया गया था।
शोधकर्ता मैककॉय का यह भी कहना है कि अगर किसी मरीज को बहुत जल्दी आराम मिल जाता है उसको सांस लेने में तकलीफ हो सकती है, या उनमें सी विकसित हो सकती है जो खतरनाक हृदय गति के जोखिम को बढ़ा सकती है।
ब्लडप्रेशर में गिरावट किडनी को कमजोर और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है
इसके अलावा उनका कहना है कि अनावश्यक रूप से डायलिसिस जारी रखना भी जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि रोगियों को हृदय रोग, संक्रमण और मृत्यु दर की उच्च दर का अनुभव होता है। स्ट्डी रिपोर्ट में इस बात का भी गंभीरता से जिक्र किया गया है कि सबसे खराब स्थिति एक मरीज की होती है, जिसकी किडनी की कार्यक्षमता ठीक हो गई हो, लेकिन उसे डायलिसिस पर रखा गया हो। मैककॉय ने कहा कि बार-बार डायलिसिस के साथ ब्लडप्रेशर में गिरावट किडनी को कमजोर और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है। इससे रोगी को अब जीवन भर डायलिसिस का सामना करना पड़ सकता है या आखिर में किडनी ट्रांसप्लांट जरूरत हो सकती है। यदि वे इसके लिए तैयार रहते हैं।
ठीक होने के शुरुआत में सूक्ष्म संकेतों की निगरानी पर ज्यादा ध्यान नहीं देते डॉक्टर्स
एचएसयू ने कहा कि डॉक्टर ठीक होने के शुरुआती, बारीकी संकेतों की निगरानी पर उतना ध्यान नहीं देते जितना वे दे सकते हैं। जब किसी की किडनी की कार्यक्षमता 30% होती है, तो यह स्पष्ट है कि उन्हें डायलिसिस की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन जब यह जटिल होती है, तो इसके लिए स्किल, अटेंशन, रोगी के साथ सावधानीपूर्वक चर्चा और प्रक्रिया को छुड़ाने में आने वाले कुछ जोखिम उठाने की इच्छा की आवश्यकता होती है। हमें संदेह है कि कई डॉक्टर डायलिसिस तभी रोकते हैं जब लक्षण स्पष्ट रूप से स्पष्ट होते हैं।
तीन माह के डायलिसिस के बाद अनिश्चित काल तक रहने वालों की तरह होता है व्यवहार
नेफ्रोलॉजी के यूसीएसएफ डिवीजन के प्रमुख ची-युआन सू ने कहा कि अध्ययन के आखिर तक करीब आधे रोगियों की न तो मृत्यु हुई और न ही उन्होंने डायलिसिस बंद किया। उनके लिए, भविष्य अनिश्चित लग रहा था। उन्होंने कहा कि लगभग तीन महीने के डायलिसिस के बाद, उनके साथ लगभग हमेशा ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे वे अनिश्चित काल तक डायलिसिस पर रहेंगे।
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