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Doctor’s Day Special : शर्म के कारण हुआ था स्टेथोस्कोप का आविष्कार, आज डॉक्टरों की सबसे बड़ी जरूरत

Stethoscope Journey : डॉक्टर आज कानों में जिस पाइपनुमा मशीन यानी स्टेथोस्कोप को लगाकर मरीज की धड़कनें और सांसों की आवाज सुनते हैं, वह शुरू में ऐसा नहीं होता था। फ्रांस के डॉक्टर ने इसका आविष्कार एक शर्म की वजह से किया। आज नेशनल डॉक्टर्स डे के मौके पर जानें स्टेथोस्कोप की कहानी:

Edited By : Rajesh Bharti | Updated: Jul 1, 2024 08:53
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डॉ. रेने और उनके द्वारा बनाया गया स्टेथोस्कोप।

National Doctor’s Day Special : जब भी हम किसी डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह कानों में एक मशीन सी लगाकर कभी हमारे दिल की धड़कनों को सुनता है तो कभी सांसों की आवाज महसूस करता है। इस मशीन को हम कई जगह स्थानीय भाषा में आला कह देते हैं। इसका असली नाम स्टेथोस्कोप है। स्टेथोस्कोप के आविष्कार के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। आज नेशनल डॉक्टर्स डे के मौके पर जानें स्टेथोस्कोप की कहानी।

स्टेथोस्कोप आज डॉक्टरों के लिए जरूरी चीज बन गई है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। डॉक्टर मरीज के सीने पर कान लगाकर दिल की धड़कन और सांसों की आवाज को महसूस करते थे। इससे आधार पर मरीज का इलाज किया जाता था। कई बार यह काफी असहज भी होता था। बाद में इसका आविष्कार हुआ। मेडिकल साइंस में स्टेथोस्कोप का आविष्कार सबसे बड़ी क्रांति माना जाता है।

ऐसे आया स्टेथोस्कोप बनाने का आइडिया

स्टेथोस्कोप का आविष्कार फ्रांस के डॉक्टर रेने लीनेक ने किया था। लेकिन शुरू में यह ऐसा नहीं था, जैसा कि हमें आज दिखाई देता है। एक दिन रेने पेरिस के एक अस्पताल में ड्यूटी पर थे। उनके पास एक महिला इलाज कराने आई। रेने उस महिला मरीज के सीने से कान लगाकर दिल की धड़कनें सुनना चाहते थे, लेकिन उन्हें यह अजीब लगा। उन्होंने कागज को गोल-गोल पाइप की तरह रोल किया और इससे महिला के दिल की धड़कन सुनी। यहीं से स्टेथोस्कोप बनाने का आइडिया आया।

मरीज के सीने पर कान लगाकर धड़कन सुनते डॉक्टर।

लकड़ी का था पहला स्टेथोस्कोप

स्टेथोस्कोप का आविष्कार रेने ने 1816 में किया था। यह लकड़ी का बना था। इसका डिजाइन बांसुरी की तरह था। इसके पीछे भी एक कारण है। दरअसल, रेने को बांसुरी बजाने का शौक था। इसलिए उन्होंने इसका डिजाइन बांसुरी की तरह बनाया था। रेने का बनाया यह स्टेथोस्कोप उस समय मेडिकल में नई क्रांति लाया। जर्मनी, इंग्लैंड समेत दुनिया के कई देश इस स्टेथोस्कोप का इस्तेमाल करने लगे।

1851 में बना आधुनिक स्टेथोस्कोप

रेने के इस स्टेथोस्कोप में कई बदलाव हुए। आज डॉक्टर जिस तरह के स्टेथोस्कोप का इस्तेमाल करते हैं उसका आविष्कार आयरलैंड के डॉक्टर आर्थर लियर्ड ने 1851 में किया था। हालांकि डॉक्टर ऑर्थर के बनाए स्टेथोस्कोप में भी कई सुधार हो चुके हैं, लेकिन मूल रचना अभी भी वही है।

अपने स्टेथोस्कोप के साथ डॉ. रेने।

ऐसे पड़ा स्टेथोस्कोप नाम

इसका नाम स्टेथोस्कोप देने के पीछे भी एक कहानी है। रेने लकड़ी का स्टेथोस्कोप बनाने से काफी उत्साहित थे। उन्होंने इसमें कई प्रयोग भी किए। उन्होंने इसके एक सिरे पर माइक्रोफोन लगाया और दूसरे पर ईयरपीस। इससे दिल की धड़नों को ज्यादा स्पष्ट सुना जा सकता था। उन्होंने इसे स्टेथोस्कोप नाम दिया। स्टेथोस्कोप ग्रीक भाषा के शब्द Stethos (यानी की चेस्ट) और Scopos (परीक्षण) से मिलकर बना है। इसका मतलब हुआ चेस्ट का परीक्षण। इसलिए इसे अंग्रेजी में स्टेथोस्कोप कहा जाता है।

यह है आज का स्टेथोस्कोप।

क्यों मनाया जाता है नेशनल डॉक्टर्स डे?

हर साल 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। दरअसल, फिजिशियन डॉक्टर को हमारे समाज का सुपरहीरो कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये हमारी जिंदगी में अहम भूमिका निभाते हैं। डॉ. बिधान चंद्र रॉय की याद में हर साल 1 जुलाई को ‘नेशनल डॉक्टर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है। डॉ. बिधान बड़े डॉक्टर थे और पश्चिम बंगाल के सीएम रहे। वह स्वतंत्रता सेनानी भी थे। 1961 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। डॉ. बिधान 1 जुलाई 1882 को बिहार में पैदा हुए थे। 1 जुलाई 1962 को इनका निधन हो गया था।

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First published on: Jul 01, 2024 08:00 AM

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