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संतानसुख चाहते हैं तो कुंडली मिलान की बजाय करा लें ये एक जांच; कहीं आपको भी तो नहीं है यह जानलेवा बीमारी

महाराष्ट्र में एक खतरनाक बीमारी बीते 78 दिन में 179 बच्चों की जान ले चुकी है। डॉक्टर्स ने इस बीमारी का नाम सिकल सैल बताया है। यह एक आनुवांशिक रोग है यानि मियां या बीवी में से किसी एक को यह दिक्कत है तो पैदा होने वाली औलाद में इसका जाना तय है। अब बड़ी […]

महाराष्ट्र में एक खतरनाक बीमारी बीते 78 दिन में 179 बच्चों की जान ले चुकी है। डॉक्टर्स ने इस बीमारी का नाम सिकल सैल बताया है। यह एक आनुवांशिक रोग है यानि मियां या बीवी में से किसी एक को यह दिक्कत है तो पैदा होने वाली औलाद में इसका जाना तय है। अब बड़ी बात यह है कि इस खतरनाक बीमारी को लेकर कई सारे सवाल आपके दिल में पैदा हो रहे होंगे, जैसे ये क्या है? इसके लक्षण और कारण क्या हैं? इस जानलेवा बीमारी से आने वाली पीढ़ियों को बचाया कैसे जाए? इन्हीं सब सवालों का जवाब News 24 हिंदी अपने इस आर्टिकल में दे रहा है। आइए पहले अपना ज्ञान बढ़ाएं, ताकि हम आने वाले कल को बचा पाएं... गौरतलब है कि महाराष्ट्र के नंदुरबार जिला मुख्यालय स्थित सिविल अस्पताल में जुलाई-अगस्त के दो महीनों और सितंबर की 16 तारीख तक 179 बच्चों की मौत हो चुकी है। इसकी वजह के बारे में नंदुरबार के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) एम सावन कुमार का कहना है कि यह यहां की बहुत सी महिलाएं सिकल सैल से ग्रसित हैं। इसकी वजह से प्रसव के दौरान कई तरह की जटिलताएं पैदा होती हैं। हालांकि इससे निपटने के लिए 84 दिन के एक खास अभियान की शुरुआत की जा रही है। महाराष्ट्र में एक बच्चों की जान की दुश्मन बनी हुई है ये खतरनाक बीमारी, जो मां-बाप से विरासत में मिलती है; पढ़ें ये पूरा घटनाक्रम अब एक ओर सेहत विभाग अपना काम कर रहा है, वहीं स्थानीय विधायक अमशा पाडवी के हवाले से स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। उन्होंने सवाल उठाया है कि बढ़ती शिशु मृत्युदर में बढ़ोतरी के लिए यहां के अस्पताल में मानवीय और भौतिक संसाधनों की कमी के लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए? इसी बीच हमने इस बीमारी की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की तो बीमारी का नाम Google पर डालते ही भारत सरकार के स्वास्थ्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के संभाग राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (NSCAEM) की वेबसाइट https://sickle.nhm.gov.in/home/sicklecellanemia पर ऐसा बहुत कुछ जानने को मिला, जो एक आदमी को पता होना चाहिए। यहां मिली जानकारी पर गौर करें तो युवक-युवतियों के विवाह योग्य हो जाने के बाद उनकी कुंडलियां मिलवाने की बजाय उनके खून की जांच करवाना बेहद लाजमी पहलू है। इसके बिना एक स्वस्थ संतान की आस लगाना बेमानी होगा।

सिकल सैल क्या है?

दरअसल, सिकल सैल एक अनुवांशिक रोग है। थैलेसिमिया को भी हीमोग्लोबिनोपैथी यानि लाल रक्त कोशिकाओं से संबंधित इस रोग की श्रेणी में रखा गया है। इसके होने के बाद रैड ब्ल्ड सैल्स जल्दी टूट जाती हैं। इसके कारण वेसो-ओक्लुसिव क्राइसिस, लंग्स इन्फैक्शन, एनीमिया, लिवर और किडनी डैमेज हो जाना या स्ट्रोक वगैरह की समस्या पलती हैं। एक स्वस्थ शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं गोल, नर्म और लचीली होती हैं, जो अपने आकार से भी छोटी धमनियों में प्रवाह के वक्त अंडाकार भी हो जाती हैं और उनसे बाहर निकलते ही फिर से पहले जैसी गोलाकार ही हो जाती हैं, लेकिन सिकल सैल की समस्या में लाल रक्त कोशिकाएं अर्ध गोलाकार और सख्त हो जाती हैं। लैटिन भाषा में इसका मतलब हंसिया होता है। यह रक्त विकार हमारे अंदर रहने वाले जीन की विकृति के कारण होता है। असल में हमारे शरीर में दो जीन होते हैं, एक मां का तो दूसरा पिता का। एक में सामान्य हीमोग्लोबिन Hb-A और दूसरे में असामान्य हीमोग्लोबिन Hb-S हो सकता है। इस असामान्य हीमोग्लोबिन वाली लाल रक्त कोशिका को ही सिकल सैल कहा जाता है। सिकल सैल की दो कैटेगरी हैं। सिकल सैल कैरियर नामक एक कैटेगरी में असामान्य हीमोग्लोबिन 50% से कम होता है, जबकि सिकल सैल पेशेंट की जो दूसरी कैटेगरी है, उसमें असामान्य हीमोग्लोबिन 50% से बढ़कर 80% के करीब पहुंच जाता है और सामान्य हीमोग्लोबिन रहता ही नहीं। सामान्य हीमोग्लोबिन रखने वाले माता-पिता के बच्चों को यह रोग नहीं होता है।

ये हैं सिकल सैल के लक्षण

जहां तक सिकल सैल के लक्षणों की बात है। हालांकि शुरुआत में हमारे शरीर में कोई गंभीर लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन यह एक असामान्य जीन को अगली पीढ़ी में ट्रांसफर कर देता है। जैसे-जैसे इसका संक्रमण बढ़ता है, वैसे-वैसे शरीर में हाथ-पैरों में दर्द, कमर के जोड़ों में दर्द, दूसरे हड्डी रोग, बार-बार पीलिया हो जाना, लिवर पर सूजन, मूत्राशय में रुकावट या दर्द, पिताशय में पथरी आदि की दिक्कत पैदा हो जाती हैं।

यह आगे न जाए, इसके लिए क्या करें

सच्चाई को स्वीकार करते हुए विवाह से पूर्व लड़का-लड़की के खून की जांच करवाकर रिपोर्ट मिला लेनी चाहिए। अगर माता-पिता में से एक व्यक्ति सिकल सैल पेशेंट और दूसरा सिकल सैल कैरियर होगा तो बच्चे 50% सिकल सैल पेशेंट होंगे। अगर माता पिता दोनों सिकल सैल पेशेंट हैं तो आगे औलाद भी 100% सिकल सैल पेशेंट पैदा होगी। ऐसे में इस आगे फैलने से रोकने के लिए अगर आपको सिकल सैल की जरा भी प्रॉब्लम है तो परिवार के सभी सदस्यों के खून की तुरंत जांच कराएं। अगर आपकी शादी सिकल सैल कैरियर या पेशेंट से हुई है और आप प्रैग्नेंट हैं तो आगे बच्चे को यह दिक्कत होगी या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए 10 से 12 हफ्ते की प्रैग्नेंसी में जांच कराएं। अगर रिपोर्ट में ऐसा होने की पुष्टि हो तो गर्भपात करवा देना ही उपयुक्त है।

बरतें ये 9 बड़ी सावधानियां

  1. सम्पूर्ण संतुलित भोजन लेना चाहिए।
  2. हर तीन महीने में हीमोग्लोबिन का लेवल और व्हाइट ब्लड सैल्स की संख्या पता करें।
  3. दिनभर में कम से कम 10 से 15 गिलास या जितना ज्यादा संभव हो सके पानी पीएं।
  4. रोज 5 मिलीग्राम की फॉलिक एसिड की एक गोली जरूर लेनी चाहिए।
  5. शराब, धूम्रपान या नशे वाली दूसरी चीजों का सेवन ना करें।
  6. ज्यादा गर्मी या धूप में बाहर न निकलें, ज्यादा ऊंचाई वाले हिल स्टेशन पर न जाएं और ज्यादा ठंडी में बाहर निकलने से बचें।
  7. उलटी-दस्त, पसीने शरीर का ज्यादा पानी निकल जाता है या किसी और वजह से थकावट जैसी दिक्कत ज्यादा हो रही हो तो खुद वैद्य न बनें और तुरं डॉक्टर से मिलें।
  8. बच्चों को यह रोग है तो स्कूल प्रशासन को इसके बारे में जरूर बताएं, जिससे उन्हें वहां शारीरिक श्रम या व्यायाम आदि से बचाया जा सके।
  9. बच्चा बार-बार पेशाब या शौच के लिए जाता है तो टीचर्स रोकें नहीं और अगर आप टीचर्स को बच्चे के आपातकालीन लक्षणों के बारे में बता देंगे तो डॉक्टरी राय लेने में आसानी रहेगी।


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