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देश में फर्टिलिटी का गिरता स्तर बन सकता है नया संकट! जानें कारण

भारत में सेहत के लिहाज से देखा जाए तो हार्ट अटैक, कैंसर और डायबिटीज जैसे रोगों के बढ़ते मामले चिंता का विषय है मगर क्या आप जानते हैं इसके अलावा भी एक नई समस्या है, जो देश के लिए संकट बन सकती है। जी हां, यह समस्या फर्टिलिटी का गिरता स्तर है। बता दें कि यह समस्या भविष्य में देश के लिए बड़ी चुनौती भी बन सकती है।

हाल के वर्षों में भारत में फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर में लगातार गिरावट देखी जा रही है। जहां एक ओर यह सामाजिक और आर्थिक विकास का संकेत माना जा सकता है, वहीं दूसरी ओर यह गिरावट भविष्य में देश के सामने एक गंभीर संकट के रूप में खड़ी हो सकती है। यह खराब लाइफस्टाइल, स्ट्रेस और पर्यावरण में बदलाव के चलते होने वाली समस्या है। कई हेल्थ रिपोर्ट इसे आने वाले नए स्वास्थ्य संकट भी मानती है। इसलिए, समय रहते इस समस्या का समाधान ढूंढना जरूरी हो गया है।

भारत में मंडरा रहा खतरा

भारत में प्रजनन संबंधी समस्याएं जीवनशैली में बदलाव, खराब खान-पान की आदतों, तनाव, पर्यावरण प्रदूषण और शराब और तंबाकू के बढ़ते सेवन के कारण बढ़ रही हैं। इसके अलावा, शिक्षा, करियर और फाइनेंशियल स्टेबिलिटी का बढ़ता प्रेशर, देरी से शादी और देर से माता-पिता बनना आम बात हो गई है, खासकर शहरी इलाकों में। यह बांझपन की समस्या को और बढ़ा रही है। लगभग 28 मिलियन कपल्स प्रजनन संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और इनमें से 1% से भी कम लोग IVF का विकल्प चुन रहे हैं।

क्या है फर्टिलिटी रेट?

फर्टिलिटी रेट वह औसत संख्या होती है, जितने बच्चों को एक महिला अपने प्रजनन काल में जन्म देती है। किसी देश की जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए यह दर लगभग 2.1 होनी चाहिए। भारत की वर्तमान फर्टिलिटी रेट (2024 में) गिरकर 2.0 के आसपास आ चुकी है, जो रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे है। ये भी पढ़ें-पाकिस्तानी PM की गुप्त बीमारी कितनी खतरनाक? जानें शुरुआती संकेत व बचाव

गिरते फर्टिलिटी रेट के मुख्य कारण

  • मॉडर्नाइजेशन और जीवनशैली में बदलाव
  • मॉडर्न लाइफस्टाइल, करियर पर फोकस और देर से शादी करने जैसे फैक्टर्स ने बच्चों की संख्या को सीमित कर दिया है।
  • महंगाई और बच्चों के पालन-पोषण की लागत
  • आर्थिक दबावों के कारण भी अब शादीशुदा लोग सीमित परिवार योजना को बढ़ावा दे रहे हैं। कपल्स 1 से अधिक बच्चों के बारे में प्लानिंग नहीं कर पा रहे हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता

  • बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और गर्भनिरोधक उपायों की उपलब्धता से भी जन्म दर में कमी देखी गई है।
  • कैरियर और व्यक्तिगत प्राथमिकताएं
  • युवा पीढ़ी अब करियर, यात्रा और स्वतंत्रता को ज्यादा प्राथमिकता दे रही है, जिससे शादी और परिवार शुरू करने में देरी हो रही है।
  • लो फर्टिलिटी रेट के दुष्परिणाम
  • बुजुर्ग जनसंख्या में वृद्धि।
  • मैन पॉवर की कमी।
  • जनसंख्या असंतुलन।
  • कामकाजी वर्ग की कमी

समाधान क्या हो सकते हैं?

  • परिवार नीति में संतुलन लाना जरूरी होगा।
  • माता-पिता के लिए बच्चों के पालन-पोषण की सुविधाएं बढ़ाना।
  • जनसंख्या जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन करना।
  • शहरी इलाकों में परिवार नियोजन के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

डॉ. प्राची बेनारा बिड़ला फर्टिलिटी एंड IVF, गुरुग्राम ने एक निजी न्यूज चैनल से बातचीत में बताया कि फर्टिलिटी रेट कम होने के पीछे कई मिथक भी लोगों के बीच मौजूद हैं, जिन्हें दूर करना जरूरी है। वे कहती हैं कि कपल्स के बीच ऐसे टैबू को मिटाना जरूरी है ताकि लोग खुल कर बात कर सकें।

इन प्रकार के मिथकों से बचें

  • सिर्फ महिलाओं में दिक्कत होना।
  • मेल फर्टिलिटी मे स्पर्म काउंट ही जरूरी।
  • सिगरेट-शराब ही एकमात्र कारण।
  • इरेक्टाइल डिसफंक्शन बड़ी समस्या।
  • महिलाओं में प्रेग्नेंसी के बाद बॉडी फिटनेस में गड़बड़ी।
ये भी पढ़ें- गर्मियों में छींक किन बीमारियों के संकेत, डॉक्टर के इस घरेलू नुस्खे से मिलेगी राहत Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।


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