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कैंसर इलाज की रेस में क्यों पिछड़ रहे हैं मरीज? जानिए एक्सपर्ट्स की राय और बड़ी चुनौतियां

भारत में कैंसर के मरीज इलाज की दौड़ में क्यों रह जाते हैं पीछे? जानिए एक्सपर्ट्स की नजर में इलाज की उपलब्धता, जागरूकता की कमी और हेल्थकेयर सिस्टम से जुड़ी उन बड़ी चुनौतियों के बारे में, जो मरीजों को समय पर इलाज पाने से रोक रही हैं।

भारत में कैंसर मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण बन चुका है और विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हालात और गंभीर हो सकते हैं। आकाश हेल्थकेयर, नई दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट व एचओडी, ऑन्कोलॉजी, डॉ. प्रवीन जैन का कहना है कि भारत में कैंसर के इलाज और बचाव के लिए ऐसी व्यवस्था की तुरंत ज़रूरत है जो हर जगह, सभी लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध हो और जिसका इलाज अच्छा और भरोसेमंद हो।

2040 तक हर साल 20 लाख नए कैंसर केस की आशंका

डॉ. जैन के अनुसार, अनुमान है कि वर्ष 2040 तक भारत में हर साल लगभग 20 लाख नए कैंसर केस और 10 लाख से अधिक मौतें हो सकती हैं। इसके बावजूद, कैंसर के इलाज का सिस्टम आज भी बिखरा और असमान है, जिससे देश के अधिकांश मरीजों को सही समय पर इलाज नहीं मिल पाता। ये भी पढ़ें-पाकिस्तानी PM की गुप्त बीमारी कितनी खतरनाक? जानें शुरुआती संकेत व बचाव

शहरों में केंद्रित हैं इलाज की सुविधाएं

देश के सिर्फ 8 मेट्रो शहरों में ही 38 फीसदी रेडिएशन थेरेपी की सुविधा मौजूद है, जबकि इन शहरों में केवल 11 फीसदी आबादी रहती है। इसका सीधा असर यह है कि ग्रामीण और छोटे शहरों के मरीज अक्सर इलाज के लिए देर से पहुंचते हैं, जिससे उनके ठीक होने की संभावना घट जाती है।

इलाज की राह में आर्थिक रुकावटें भी बड़ी चुनौती

सिर्फ भौगोलिक नहीं, आर्थिक परेशानियां भी कैंसर के इलाज में एक बड़ी बाधा हैं। डॉ. जैन बताते हैं कि बीमा की कमी, महंगे इलाज और सुविधाओं की गैरमौजूदगी की वजह से हजारों मरीज इलाज तक नहीं पहुंच पाते।

बदलाव के लिए जरूरी है मिलकर काम करना

डॉ. जैन का मानना है कि कैंसर की रोकथाम और इलाज में स्थायी बदलाव लाने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे। इसके लिए
  • स्क्रीनिंग प्रोग्राम्स को बढ़ावा देना
  • रोकथाम और शुरुआती पहचान पर फोकस
  • स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल्स लागू करना जरूरी है
  • तकनीक और साझेदारी से बढ़ेगी पहुंच
उन्होंने कहा कि पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, डिजिटल हेल्थ तकनीक और यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हर व्यक्ति तक इलाज पहुंचे, चाहे उसकी आय, रहने की जगह या बीमा स्थिति कुछ भी हो।

नीति और निवेश से होगा असली बदलाव

डॉ. जैन ने जोर देते हुए कहा कि सिर्फ योजनाएं बनाना काफी नहीं है, बल्कि सरकारों को चाहिए कि वे नीतियों को लागू करें, स्वास्थ्य निवेश बढ़ाएं, और यूनिवर्सल हेल्थ केयर को प्राथमिकता दें। इससे न केवल मरीजों की ज़िंदगी सुधरेगी, बल्कि समाज और देश की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी।

महिलाओं में सबसे अधिक कैंसर

आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं में सबसे ज़्यादा होने वाला कैंसर स्तन कैंसर है, उसके बाद गर्भाशय ग्रीवा (सर्वाइकल) कैंसर आता है। भारत में हर साल 2 लाख से अधिक नए स्तन कैंसर के मामले सामने आते हैं। वहीं पुरुषों में सबसे आम कैंसर मुंह का कैंसर है, उसके बाद फेफड़ों का कैंसर होता है। ये भी पढ़ें- गर्मियों में छींक किन बीमारियों के संकेत, डॉक्टर के इस घरेलू नुस्खे से मिलेगी राहत Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।


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