Google illegal Monopoly on Search: आजकल हर सवाल का जवाब आपको गूगल ‘बाबा’ के पास मिल जाएगा। हर दिन करोड़ों लोग इसका इस्तेमाल करते हैं लेकिन हाल ही में एक अमेरिकी न्यायाधीश ने दिए गए फैसले में गूगल को सर्च इंजन में मोनोपोली का दोषी ठहराया है। न्यायाधीश ने पाया कि गूगल ने अरबों डॉलर खर्च करके एक अवैध एकाधिकार बनाया है और दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन बन गया है। यह फैसला अमेरिकी सरकार की ओर से बिग टेक कंपनियों के बाजार पर हावी होने के खिलाफ एक बड़ी जीत है।
बड़े बदलाव का संकेत
यह फैसला गूगल और अन्य टेक कंपनियों के लिए बड़े बदलाव का संकेत लग रहा है। अब, न्यायालय इस फैसले के आधार पर कुछ सुधारों पर विचार करेगा। इन सुधारों में गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट का डिवीजन भी शामिल हो सकता है। अगर ऐसा होता है, तो ऑनलाइन विज्ञापन के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है।
कानूनी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई…
हालांकि, यह कानूनी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट ने भी इस फैसले के खिलाफ अपील करने का फैसला किया है। यह मामला कई सालों तक चल सकता है।
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अल्फाबेट के शेयर्स में गिरावट
इस फैसले के बाद अल्फाबेट के शेयरों में 4.5% की गिरावट आई है। इसका कारण यह है कि निवेशकों को डर है कि इस फैसले से कंपनी के भविष्य पर असर पड़ सकता है।
क्या हैं इस फैसले के मायने?
यह फैसला टेक कंपनियों के लिए एक चेतावनी है। यह दिखाता है कि सरकार इन कंपनियों के बाजार पर हावी होने को बर्दाश्त नहीं करेगी। यह फैसला उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इससे बाजार में कम्पटीशन बढ़ सकता है और जो सर्विस अभी महंगी मिल रही है उसकी कीमतें भी कम हो सकती हैं।
Google Vs अमेरिकी सरकार: मामले में नया मोड़
अमेरिकी न्यायालय द्वारा गूगल को एकाधिकार का दोषी ठहराए जाने के बाद इस मामले में नया मोड़ आ गया है। गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट ने इस फैसले के खिलाफ अपील करने का फैसला किया है। कंपनी का कहना है कि न्यायालय ने यह मान लिया है कि गूगल सबसे अच्छा सर्च इंजन है लेकिन फिर भी कंपनी को इसे आसानी से उपलब्ध कराने से रोका जा रहा है।
अमेरिकी सरकार की बड़ी जीत
दूसरी ओर, अमेरिकी सरकार इस फैसले को एक बड़ी जीत मान रही है। अमेरिकी अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने इसे “अमेरिकी लोगों की ऐतिहासिक जीत” करार दिया है। उन्होंने कहा कि कोई भी कंपनी, चाहे वो कितनी भी बड़ी हो, कानून से ऊपर नहीं है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन जीन-पियरे ने भी इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि अमेरिकी लोग एक ऐसे इंटरनेट के हकदार हैं जो फ्री, फेयर और कॉम्पिटिटिव हो।
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गूगल कर रहा अरबों डॉलर का भुगतान
न्यायाधीश मेहता ने अपने फैसले में कहा है कि गूगल ने 2021 में अकेले 26.3 बिलियन डॉलर का भुगतान किया था ताकि उसका सर्च इंजन स्मार्टफोन और ब्राउजर पर डिफ़ॉल्ट रूप से दिखाई दे। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि डिफ़ॉल्ट होना वैल्युएबल है और कोई भी नई कंपनी तभी टक्कर दे सकती है जब वह गूगल जितना पैसा खर्च करने को तैयार हो।
तो अब आगे क्या होगा?
अब देखना होगा कि गूगल की अपील में क्या होता है। अगर अपील खारिज हो जाती है तो गूगल को अपनी बिजनेस स्ट्रेटेजी में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं। इस मामले का नतीजा न केवल गूगल बल्कि पूरे टेक वर्ल्ड पर गहरा असर डाल सकता है।