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ठाकरे परिवार का मिलन BJP के लिए कैसे लाया टेंशन? क्या बदलेगी महाराष्ट्र की सियासत; जानें उद्धव-राज गठबंधन के मायने

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 20 साल बाद एक साथ आए हैं, और दोनों ने बीएमसी चुनाव साथ लड़ने का ऐलान किया है.

उद्धव और राज ठाकरे ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा कि हम दोनों भाई साथ रहने के लिए साथ आए हैं.

पिछले दो दशक से अलग-अलग राह पर चल रहे चचेरे भाई राज ठाकरे (MNS) और उद्धव ठाकरे (Shiv Sena UBT) एक बार फिर साथ आ गए हैं. राज और उद्धव ठाकरे का साथ आना केवल दो भाइयों का मिलन ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ी हलचल का संकेत है. दोनों भाइयों ने कहा कि हम साथ रहने के लिए साथ आए हैं. इसके साथ ही ऐलान किया कि दोनों पार्टियां साथ मिलकर बीएमसी चुनाव लड़ेंगी. यदि यह गठबंधन जमीन पर सही ढंग से उतरता है, तो BMC चुनाव में बाजी पटल सकते हैं. पिछले तीन दशक से शिवसेना(यूबीटी) बीएमसी पर काबिज है. लेकिन महाराष्ट्र निकाय चुनाव के नतीजों से इस बार स्थिति बदलती हुई दिख रही थी. अब ठाकरे ब्रदर्स ने एक साथ आने का ऐलान कर फिर दोबारा बाजी को पलट दिया. बीएमसी चुनाव में दोनों भाइयों को साथ आने का फायदा मिल सकता है. अब बीएमसी का रण काफी दिलचस्प होगा, क्योंकि ठाकरे ब्रदर्स के सामने भाजपा, एकनाथ शिंदे और अजित पवार जैसा शक्तिशाली 'महायुति' गठबंधन खड़ा है.

क्यों अलग हुए थे राज और उद्धव?

साल 2005-2006 में बाल ठाकरे के उत्तराधिकार को लेकर राज और उद्धव ठाकर में दरार आ गई थी. जब बाल ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया, तो राज ठाकरे नाराज हो गए. राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी और अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बना ली. यह दरार केवल राजनीतिक की ही नहीं थी, बल्कि दोनों में व्यक्तिगत दूरियां भी बन गई थीं.

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दोबारा साथ आने की क्या वजह?

दोनों भाइयों का करीब 20 साल बाद करीब आना महज भावनात्मक फैसला नहीं, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक मजबूरी और अस्तित्व की लड़ाई भी नजर आती है. एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद शिवसेना (UBT) ने अपनी पहचान और चुनाव चिह्न तक खो दिया. वहीं, राज ठाकरे की मनसे भी पिछले कुछ चुनाव से अपनी पकड़ खोती दिख रही थी. हाल ही, महाराष्ट्र निकाय चुनाव के नतीजे देखें तो शिवसेना (UBT) केवल आठ सीट ही जीत पाई. राज ठाकरे की पार्टी का तो खाता तक नहीं खुल पाया. दोनों बखूबी जानते हैं कि अगर अलग-अलग लड़ते हैं, तो मराठी वोटों का बंटवारा होता है, जिसका सीधा फायदा भाजपा या शिंदे गुट को मिलता है. राज और उद्धव के साथ आने से एकनाथ शिंदे की वो कोशिश भी कमजोर होगी, जिसमें वो खुद को बाल ठाकरे की विरासत का असली उत्तराधिकारी बताते हैं.

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BJP-शिंदे-अजित पवार के लिए क्या चुनौतियां

ठाकरे ब्रदर्स के साथ आने से सत्ताधारी BJP-शिंदे-अजित पवार गठबंधन के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गई है. अब तक राज ठाकरे 'वोट कटवा' प्रतीत होते थे, जिससे शिवसेना (यूबीटी) को नुकसान पहुंचता था. और फायदा सीधा पहुंचता था भाजपा और एकनाथ शिंदे की पार्टी को. अब दोनों के साथ आने के बाद यह वोट बैंक एक साथ हो जाएगा. एकनाथ शिंदे की ताकत उनका 'ठाणे-मुंबई' बेल्ट और जमीनी कार्यकर्ताओं का नेटवर्क है. दोनों भाइयों के साथ आने पर ये अपनी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को भी वापस खींच सकते हैं.

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वहीं, राज ठाकरे एक फायरब्रांड वक्ता और आक्रामक शैली वाले हैं. महायुति के पास उद्धव के खिलाफ तो तर्क थे, लेकिन राज ठाकरे का मुकाबला करना उनके लिए चुनौतियों से भरा होगा. वहीं, शांत स्वभाव वाले उद्धव ठाकरे संगठनात्मक कार्यों में निपुण हैं. ऐसे में दोनों भाइयों की जोड़ी महायुति को चित्त कर सकती है.

कैसे बदल सकती है महाराष्ट्र की सियासत

BMC पर पिछले तीन दशक से शिवसेना (यूबीटी) का कब्जा है. इस बार उद्धव ठाकरे कमजोर नजर आ रहे थे. लेकिन राज ठाकरे ने साथ आकर उस शंका को दूर कर दिया और अब शिवसेना से बीएमसी छीनना आसान नहीं लग रहा. स्थानीय निकाय चुनाव के बाद भाजपा नेता बीएमसी को लेकर अति उत्साही थे. अब मुंबई की 227 सीटों पर ठाकरे परिवार का एकतरफा प्रभाव पड़ सकता है. मुंबई और उसके आसपास मराठी मानुस का झुकाव फिर से इस गठबंधन की ओर हो सकता है. वहीं, अगर कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) भी ठाकरे ब्रदर्स के साथ आ जाते हैं तो इस गठबंधन को कोई नहीं हरा पाएगा.

अगर बीएमसी चुनाव में इस गठबंधन को जीत मिलती है तो यह लंबे समय तक चल सकता है. उद्धव और राज ठाकरे ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा था कि हम दोनों भाई साथ रहने के लिए साथ आए हैं.

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क्या होगी आगे की रणनीति?

दोनों भाइयों के साथ आने के पीछे की वजह देखें तो यह गठबंधन पूरी तरह चुनावी गणित पर टिका है. उद्धव ठाकरे ने पिछले कुछ समय में मुस्लिम और दलितों के बीच अपनी पकड़ को मजबूत बनाया है. वहीं, राज ठाकरे के आने से इसमें 'मराठी कट्टरपंथ' का तड़का भी लग जाएगा. इस तरह यह एक बड़ा 'सोशल इंजीनियरिंग' फॉर्मूला तैयार हो गया. इसका फायदा उन्हें बीएमसी समेत आने वाले चुनाव में मिलेगा. इसके अलावा राज ठाकरे की युवाओं में आज भी अच्छी पकड़ है. वह युवाओं को 'मराठी अस्मिता' के नाम पर एकजुट करने की कोशिश कर सकते हैं. उद्धव ठाकरे के साथ हुई 'गद्दारी' और राज ठाकरे का 'मराठी गौरव' का सिम्पैथी कार्ड भी दोनों भाई खेल सकते हैं.

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