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Explainer: दुनिया की पहली जीन थेरेपी ट्रीटमेंट को मंजूरी से लाखों मरीजों को कैसे होगा फायदा? समझिए यहां

Gene Editing Therapy: यूके के ड्रग रेगुलेटर ने कहा, सिकल सेल रोग के लिए जीन थेरेपी को अधिकृत करने का उसका निर्णय 29 मरीजों पर किए गए एक अध्ययन पर आधारित था।

प्रतीकात्मक तस्वीर (ANI)
Gene Editing Technology: यूके यानी ब्रिटेन दुनिया में पहली बार जीन एडिटिंग ट्रीटमेंट को मंजूरी देने वाला देश बन गया है। यह तकनीकी 2012 में ही आ गई थी, लेकिन इसे पहली बार मंजूरी मिली है। इसे चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति लाने वाला कदम कहा जा रहा है। यूके के ड्रग रेगुलेटर ने सिकल सेल डिजिज और थैलेसीमिया नाम की दो बीमारियों को ठीक करने के लिए पहली जीन थेरेपी को मंजूरी दी है। वहां के मेडिसिन्स एंड हेल्थकेयर रेगुलेटरी एजेंसी ने कहा कि उसने 12 साल और उससे अधिक उम्र के सिकल सेल रोग (Sickle Cell) और थैलेसीमिया (Thalassemia) से पीड़ित मरीजों के लिए कैसगेवी को मंजूरी दे दी है। ब्रिटेन का यह कदम गंभीर बीमारियों से पीड़ित हजारों लोगों के लिए राहत भरी खबर है। अभी तक इन बीमारियों का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट से किया जाता था, जो कि ज्यादा कारगर नहीं था और यह बहुत कठिन भी है। इस तरह इलाज लंबा चलता है और इसके दुष्प्रभाव भी ज्यादा हैं। नई दवा पर कितना खर्च आएगा यह अभी तक नहीं पता चल पाया है, क्योंकि ब्रिटेन में जीन थेरेपी इलाज के लिए अभी तक कीमत तय नहीं की गई है। अधिकारी मरीजों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं। इस नई तकनीक के इस्तेमाल से जीन को एडिट किया जा सकता है। दवा नियामक एमएचआरए ने कहा था कि उसने जीन एडिटिंग टूल सीआरआइएसपीआर का इस्तेमाल करके लाइसेंस प्राप्त पहली दवा कैसगेवी को मंजूरी दे दी है। इस दवा को बनाने वालों को 2020 में नोबेल पुरस्कार दिया जा चुका है। ये भी पढ़ें-Explainer: क्यों खिसकने लगा है दुनिया का सबसे बड़ा आइसबर्ग? दुनिया के सामने बहुत बड़ा संकट! Mint की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूके के ड्रग रेगुलेटर ने कहा कि सिकल सेल रोग के लिए जीन थेरेपी को अधिकृत करने का उसका निर्णय 29 मरीजों पर किए गए एक अध्ययन पर आधारित था, जिनमें से 28 ने बताया कि इलाज के बाद कम से कम एक साल तक उन्हें कोई गंभीर दर्द की समस्या नहीं हुई। थैलेसीमिया के अध्ययन में इलाज किए करने वाले 42 मरीजों में से 39 को इलाज के बाद कम से कम एक साल तक लाल रक्त कोशिका ट्रांसफ्यूजन की जरूरत नहीं पड़ी। देखें-जेनेटिक डिजीज पर ये खबर कहां ज्यादा होती है ये बीमारियां सिकल सेल और थैलेसीमिया हीमोग्लोबिन ले जाने वाले जीन में एरर (त्रुटियों) की वजह होते हैं। दुनिया भर में लाखों लोग सिकल सेल रोग से पीड़ित हैं। जहां मलेरिया ज्यादा होता है यह अक्सर उन स्थानों के लोगों में होता है। उदाहरण के तौर पर अफ्रीका और भारत। यह बीमारी कुछ जातीय समूहों जैसे अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और भारतीय मूल के लोगों में भी अधिक आम है। कैसगेवी (Casgevy) दवा मरीज की बोन मैरो स्टेम कोशिकाओं में कमियों वाली जीन को टारगेट करके काम करती है ताकि शरीर ठीक से काम करने वाला हीमोग्लोबिन बना सके। क्या है थैलेसीमिया की बीमारी थैलेसीमिया में शरीर में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है। यह रेड बल्ड सेल्स (आरबीसी) में होता है। इसके कम हो जाने से ऑक्सीजन की सप्लाई ठीक तरह नहीं मिल पाती है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को जीवनभर ब्लड ट्रांस्फ्यूजन कराना पड़ता है। क्या है सिकल सेल डिजीज सिकल सेल डिजिज (Sickle Cell Disease) में एक जेनेटिक खराबी की वजह से रेड ब्लड सेल असामान्य रूप ले लेती हैं। इसकी वजह से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। रेड ब्लड सेल यानी आरबीसी अलग-अलग कोशिकाओं में ऑक्सीजन सप्लाई करने का काम करती हैं। आरबीसी के असामान्य हो जाने की वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने लगती है। हमारी सभी कोशिकाओं को ऑक्सीजन मिलने में दिक्कत होती है। भारत में हर साल जन्म लेने वाले लगभग 30-40 हजार बच्चों में यह बीमारी पाई जाती है। ये भी पढ़ें-सरकारी नल से अचानक निकलने लगा दूध! बाल्टियों में भरकर ले गए लोग, क्या है सच्चाई?


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