टीवी सीरियल्स की दुनिया में जब तक एक सीन को तीन बार रिपीट नहीं किया जाए तो वो टीवी सीरियल की लिस्ट में ना आए। सीरियल्स में जब तक ड्रामा ना हो तब तक तो वो सीरियल लगता ही नहीं। चाहे अनुपमा का रोना- धोना हो या अभीरा का ड्रामा, मेघला और रणबीर का रोमांस हो या अद्रिजा की साज़िशें। ये सबकुछ ना हो तो सीरियल में मजा ही नहीं आएगा। लेकिन सालों से चलते आ रहे इन सीरियल्स में कुछ चीजें इतनी कॉमन हो चुकी हैं कि उन्हें देख- देख कर अब बोर हो गए हैं। ऐसे में लगता है कि मेकर्स को अब अपने कॉन्सेप्ट्स में बदलाव लाने की जरूरत है। ऐसा क्यों, आइये बताते हैं…
सीरियल्स में बदलाव की बयार
टीवी सीरियल्स की ऑडियंस भारत में कितनी है, ये तो सभी जानते हैं। घर में रहने वाली गृहणियां सालों से इन सीरियल्स को देखती आ रही हैं। लेकिन वक्त के साथ अब सीरियल्स के दर्शकों में थोड़ी सी कमी भी आ गई है, जिसकी वजह से ही इन्हें टीआरपी नहीं मिल पाती और ये सीरियल्स आते ही कुछ महीनों में बंद भी हो जाते हैं। इसे देखते हुए अब मेकर्स को भी थोड़ा सा अपने कॉन्सेप्ट्स में बदलाव लाने की ज़रूरत है।
एक जैसी होने लगी कहानी
किसी भी सीरियल की स्टोरीलाइन किसी ना किसी की जिंदगी से कहीं ना कहीं जुड़ी रहती है। ऐसे में अब सीरियल की कहानियां आपस में मिलने लगी हैं। कई सीरियल्स हैं जिनके कॉन्सेप्ट अब एक जैसे लगने लगे हैं। जैसे कुछ समय पहले एक सीरियल आया था ‘आंख मिचोली’, जिसकी कहानी पूरी की पूरी ‘दिया और बाती हम’ की तरह ही थी। तो वहीं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की कहानी को ‘अनुपमा’ में रिपीट किया जा रहा है। इससे दर्शकों के बीच इन सीरियल्स को लेकर रुचि कम होती नजर आ रही है।
बोरिंग कैरेक्टर्स
ना केवल सीरियल बल्कि इनके कैरेक्टर्स भी अब लगभग सेम होने लगे हैं। जैसे हर सीरियल में आपको एक चुड़ैल सास तो देखनमे को मिलेगी ही, एक बेचारी बहू, एक जलकुकड़ी बहन या देवरानी- जेठानी। ऐसे में हर सीरियल का किरदार दूसरे सीरियल से मेल खाता है। तो जहां पहले के सीरियल्स में हम देखते थे हर किरदार का अपना ही एक अलग जायका हुआ करता था, लेकिन अब उसमें काफी बदलाव आ गया है। कुछ किरदार थे जो लोगों के जेहन में बैठे थे, वहीं अब जो किरदार होते हैं वो याद भी नहीं रहते। ऐसे में सीरियल्स के कैरेक्टर्स बोरिंग होने लगे हैं।
कहानी में हो बदलाव
पिछले कुछ समय से जहां सास- बहू और पति- पत्नी का ड्रामा देख लोग बोर हो चुके हैं। वहीं अब कुछ पुराने ऐसे सीरियल्स हैं जिनकी याद आने लगी है। जैसे ‘बा बहू और बेबी’, ‘जस्सू बेन जयंतीलाला जोशी की जॉइंट फैमिली’, ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’, ‘खिचड़ी’ आदि लाइट हार्टेड सीरियल्स की कमी महसूस होती है। अब लहता है कि बोरिंग सास बहू के ड्रामा से थोड़ा ब्रेक मिलना चाहिए। रोती हुई अनुपमा अब अच्छी नहीं लगती, क्योंकि अनुपमा की बेटी भी उसी की तरह रोतली निकली है। तो वहीं अभीरा का जरूरत से ज्यादा की अच्छा होना भी हजम नहीं होता। ऐस में अब सीरियल्स की कहानी में किरदारों में बदलाव होना चाहिए।
रीसर्च करने की है जरूरत
मेकर्स को अब थोड़ा रीसर्च करने की जरूरत है और कोई नया शो इंट्रोड्यूज़ करने की भी। क्योंकि एक ही एक बोरिंग कॉन्सेप्ट से ऑडियंस का जिस तरह से मन उठता जा रहा है, उस तरह से तो आने वाला समय टीवी इंडस्ट्री के लिए काल के समान ही नजर आता है। वो दिन दूर नहीं होगा जब लोग सीरियल्स देखना ही छोड़ देंगे। वैसे भी अब ओटीटी का दौर है जहां पर केवल कुछ ही एपिसोड्स में बात हो जाती है ऐसे में सालों साल चलने वाले सीरियल्स कौन ही देखने वाला है।