आज के डिजिटल युग में मीडिया का प्रभाव केवल सूचना देने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह समाज की सोच और व्यवहार को आकार देने वाला एक सशक्त माध्यम बन चुका है। खासतौर पर टेलीविजन शोज में दिखाए जाने वाले किरदार और कहानियां हमारे समाज के लिंग आधारित नजरिए को गहराई से प्रभावित करते हैं। एक हालिया स्टडी से यह पता चलता है कि आज भी अधिकतर टेलीविजन धारावाहिकों और रियलिटी शोज में पुरुषों और महिलाओं की छवि पारंपरिक रूढ़ियों पर आधारित होती है।
पुरुषों को ताकतवर तो महिलाओं को दिखाते हैं कमजोर
इन कार्यक्रमों में आमतौर पर पुरुषों को ताकतवर, फैसले लेने वाला और आत्मनिर्भर दिखाया जाता है, जबकि महिलाओं को भावुक, घरेलू और दूसरों पर निर्भर बताया जाता है। वे अधिकतर मां, बहन, या पत्नी की भूमिका में नजर आती हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य परिवार की सेवा करना होता है। इसके विपरीत, पुरुष किरदार समाज के लीडर और कार्यक्षेत्र में अग्रणी के रूप में दिखाए जाते हैं। यह अंतर केवल पर्दे तक नहीं रहता, बल्कि बच्चों और किशोरों के सोचने के तरीके को भी प्रभावित करता है।
ISOMES से सीखें जर्नलिज्म का असली मतलब
ऐसे में देश के प्रमुख मीडिया शिक्षण संस्थानों की भूमिका और भी अहम हो जाती है। News24 के जर्नलिज्म स्कूल “इंटरनेशनल स्कूल ऑफ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट स्टडीज” (ISOMES) इसी दिशा में एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरा है। ISOMES छात्रों को न केवल तकनीकी रूप से ट्रेंड करता है, बल्कि उन्हें सामाजिक जिम्मेदारियों और मीडिया की नैतिकता से भी जोड़ता है। यहां छात्रों को यह सिखाया जाता है कि मीडिया का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को जागरूक और समानता की ओर अग्रसर करना भी है।
लैंगिक समानता के प्रति कर रहा जागरूक
हालांकि कुछ आधुनिक वेब सीरीज और शोज में अब सशक्त महिला किरदारों को दिखाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन मुख्यधारा के टेलीविजन में यह बदलाव अभी भी धीमा है। इस स्टडी से यह स्पष्ट है कि अगर मीडिया इंस्टीट्यूट और जर्नलिज्म स्कूल, जैसे ISOMES, अपने छात्रों को लैंगिक समानता (Gender Equality) के प्रति जागरूक बनाएं, तो आने वाले वर्षों में हम एक अधिक संतुलित और संवेदनशील मीडिया परिदृश्य देख सकते हैं।
इसके अलावा, मीडिया की ताकत अगर सही दिशा में इस्तेमाल की जाए, तो यह लिंग आधारित भेदभाव को मिटाने में एक क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता है।