गुजरात के राजकोट की रहने वाली कोमलबा जाडेजा बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थीं। जब वह दूसरी कक्षा में थीं, तभी उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें पायलट बनना है। लेकिन किस्मत ने पहले उन्हें मेडिकल फील्ड की ओर मोड़ दिया। उन्होंने कठिन NEET परीक्षा भी पास की, जिससे सभी को लगा कि अब वह डॉक्टर बनेंगी। मगर उनके दिल में आसमान छूने की ख्वाहिश अब भी जिंदा थी।
माता-पिता ने दिया खुलकर साथ
कोमलबा के माता-पिता, हंसाबा जाडेजा और रघुराज सिंह जाडेजा, हमेशा अपने बच्चों को सपनों को पूरा करने की आजादी देते थे। जब कोमलबा ने कहा कि वह डॉक्टर नहीं बनना चाहतीं और पायलट बनना चाहती हैं, तो पहले माता-पिता को थोड़ा झटका जरूर लगा। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी पर भरोसा किया और उसका साथ दिया। कोमलबा कहती हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा उड़ने की आजादी दी।
दृढ़ निश्चय ने बदली जिंदगी
कोमलबा बाहर से शांत और नाजुक दिखती थीं, लेकिन उनके अंदर जबरदस्त आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय था। पायलट बनने का रास्ता आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना किया। कोमलबा मानती हैं कि उड़ान के लिए ट्रेनिंग और आत्मविश्वास दोनों जरूरी हैं। उनकी पहली सोलो फ्लाइट उनके जीवन का सबसे यादगार पल था।
5,000 फीट की ऊंचाई से किया वीडियो कॉल
कोमलबा के जीवन का सबसे भावुक पल वह था जब उन्होंने 5,000 फीट की ऊंचाई से अपने माता-पिता को वीडियो कॉल किया। उनके माता-पिता की आंखों में आंसू थे – कभी वे चाहते थे कि उनकी बेटी डॉक्टर बने, लेकिन अब वे अपनी बेटी को पायलट की यूनिफॉर्म में देखकर गर्व से भर जाते हैं।
आज एक सफल पायलट हैं कोमलबा
आज कोमलबा जाडेजा एक सफल पायलट हैं। उनके लिए उड़ान सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक जुनून है। वह मानती हैं कि मंजिल से ज्यादा जरूरी है सफर। कोमलबा की कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों और परिवार का साथ हो, तो कोई भी लड़की अपने सपनों को हकीकत में बदल सकती है।