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SIP के जैसे STP के हैं फायदे अनेक, रिस्क को कर सकते हैं कंट्रोल

Systematic Transfer Plan के जरिए निवेशक अपने रिस्क को कंट्रोल कर सकते हैं। चलिए बताते हैं आपको कि कैसे ये प्लान काम करता है।

Photo Credit: Google
Systematic Transfer Plan (STP): बाजार की चाल हर दिन बदलती रहती है, जो ये तय करती है कि एक निवेशक कितना पैसा कमाएगा। यानी बाजार की गति से ही रिटर्न की दिशा तय होती है। सभी निवेशक ऐसी प्लानिंग बनाते हैं कि ज्यादा से ज्यादा रिटर्न हासिल कर पाएं। पर बाजार हमारे हाथ में तो है नहीं, कई ऐसे कारक हैं जो इसकी गति को ऊपर या नीचे करते हैं। जैसे मान लीजिए अभी लोकसभा इलेक्शन आने वाले हैं तो इसको देखकर भी बाजार का मूड बदलेगा। इसलिए हम आपको उस तरीके के बारे में बताते हैं जिससे आप बाजार को देखकर अपने निवेश को बदल सकें। यानी अपने हिसाब से रिस्क को मैनेज कर पाएं।

STP यानी सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान

आज हम आपको बताएंगे STP यानी सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान के बारे में। जैसे इसके नाम में ही ट्रांसफर है तो आप कुछ तो अंदाजा लगा सकते हैं। दरअसल SIP में हम बैंक से अपना पैसा किसी एक म्युचुअल फंड के इक्विटी या फिर डेट में लगा देते हैं। पर STP में हम उस पैसे को दूसरे म्युचुअल फंड में भी ट्रांसफर कर सकते हैं। मान लीजिए आपने एक म्युचुअल फंड के इक्विटी में निवेश किया हुआ है, लेकिन बाजार की स्थिति को देखते हुए आप इसे बदलना चाहते हैं, तो फिर अपने प्लान के अनुसार उसमें से कुछ पैसा दूसरे म्युचुअल फंड में लगा सकते हैं। इसी को STP कहा जाता है। पैसा ट्रांसफर आप डेली, वीकली या फिर हर महीने बेसिस पर कर सकते हैं। यह भी पढ़ें- Life Certificate अभी तक नहीं किया सबमिट? 30 नवंबर से पहले पेंशनभोगी डिजिटली कर लें काम

कब करें इसका यूज

अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि इस प्लान का फायदा हम कब लेे? तो यह निवेशक का अपना फैसला होता है। वह अपनी प्रोफाइल और किस तरीके के उसके गोल हैं, ये देखकर इस प्लान का इस्तेमाल करना चाहिए। मान लीजिए आपकी उम्र 25 साल है और आपने 15 लाख रुपए किसी इक्विटी फंड में लगा दिए। जहां पर रिस्क कम था लेकिन रिटर्न भी कम थी, पर आपके गोल इस रिटर्न के साथ हासिल नहीं हो पा रहे, तो फिर इसमें से कुछ पैसा आप दूसरे फंड में लगा सकते हैं। जहां पर रिस्क भी ज्यादा है और रिटर्न भी। पर आपको ध्यान में ये बात रखनी होगी कि एक साथ पैसा ट्रांसफर ना करें क्योंकि इससे रिस्क का मार्जिन बढ़ जाता है।


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