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IndiGo: जय-वीरू जैसी थी भाटिया और गंगवाल की जोड़ी, फिर कैसे जुदा हो गए रास्ते?

देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो इस समय चर्चा में है। दरअसल, बुधवार को इंडिगो कुछ देर के लिए दुनिया की सबसे मूल्यवान एयरलाइन बन गई थी। उसने अमेरिका की डेल्टा एयरलाइन को पछाड़कर यह मुकाम हासिल किया था। इंडिगो की शुरुआत राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल ने की थी, जिनके रास्ते अब जुदा हो चुके हैं।

Author Edited By : Neeraj Updated: Apr 11, 2025 15:05

देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो (IndiGo) हाल ही में कुछ देर के लिए दुनिया की सबसे वैल्यूएबल एयरलाइन बन गई। मार्केट कैपिटलाइजेशन के मामले में उसने अमेरिका की डेल्टा एयरलाइन को पछाड़कर यह मुकाम हासिल किया। हालांकि, करीब एक घंटे के बाद डेल्टा वापस पहले नंबर पर पहुंच गई। भले ही कुछ देर के लिए, लेकिन इंडिगो के सिर सजा यह ताज बहुत मायने रखता है।

कब हुई थी शुरुआत?

इंडिगो ने बहुत तेजी से एविएशन सेक्टर में अपनी पहचान बनाई है। राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल ने मिलकर इंडिगो की नींव रखी और कंपनी ने अगस्त 2006 में अपना कॉमर्शियल ऑपरेशंस शुरू किया। ये वो दौर था जब एविएशन सेक्टर में एंट्री एयर टर्बुलेंस में फंसे विमान जितनी ही जोखिम भरी समझी जाती थी, लेकिन भाटिया और गंगवाल की जोड़ी उस जोखिम के बावजूद इंडिगो के विमानों को सफलता के ट्रैक पर लैंड करवाने में कामयाब रही। अब जब इंडिगो सबसे वैल्यूएबल एयरलाइन के तौर पर चर्चा में है, तो यह जानना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर एविएशन सेक्टर के जय-वीरू की जोड़ी क्यों टूट गई?

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पिछले साल टूटा रिश्ता

पिछले साल अगस्त में राकेश गंगवाल ने इंडिगो में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच दी थी। इस तरह उनका इंडिगो के साथ सफर खत्म हो गया। गंगवाल ने ब्लॉक डील के जरिए लगभग 11,000 करोड़ रुपये शेयर बेचे थे। वह पहले से धीरे-धीरे अपनी हिस्सेदारी कम कर रहे थे और 2024 में कंपनी से पूरी तरह बाहर निकल आए। साल 2022 की शुरुआत में राकेश गंगवाल ने कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया और तभी यह घोषणा कर डाली कि वह धीरे-धीरे कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेच देंगे। जून 2024 के आंकड़ों के अनुसार, गंगवाल के पास कंपनी की लगभग 6 प्रतिशत इक्विटी थी। जबकि उनके फैमिली ट्रस्ट द चिंकरपू फैमिली ट्रस्ट के पास 13.49% हिस्सेदारी थी।

एक मिशन के लिए आए साथ

राहुल भाटिया दिल्ली के रहने वाले हैं, जबकि राकेश गंगवाल अमेरिका में रहते हैं। दोनों एविएशन सेक्टर में कुछ बड़ा करने के लिए करीब आए और बाकायदा ऐसा करके भी दिखाया। गंगवाल कई बड़ी एयरवेज कंपनियों में काम कर चुके थे और उन्हें एविएशन सेक्टर की काफी नॉलेज थी। लिहाजा, जब भाटिया ने उनके सामने एयरलाइन शुरू करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने भी तुरंत हामी भर दी। इंडिगो को 2004 में ही लाइसेंस मिल गया था, लेकिन इसके बावजूद सेवाएं 2006 में शुरू हो पाईं, क्योंकि कंपनी के पास विमान नहीं थे। यहां गंगवाल ने अपने कांटेक्ट और अनुभव का इस्तेमाल किया।

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उधार के विमान से उड़ान

राकेश गंगवाल की बदौलत इंडिगो ने एयरबस से उधार पर 100 विमान हासिल किए। इसके बाद 4 अगस्त 2006 को एयरलाइन ने अपनी पहली उड़ान भरी। हालांकि, उसे यात्रियों को अपनी तरफ खींचने के लिए बहुत कुछ करना बाकी था। उस दौर में हवाई सफर आज जितना आसान नहीं था। इसकी सबसे बड़ी वजह थी किराया और इसलिए इसे अमीरों का साधन करार दिया जाता था। जय-वीरू की जोड़ी ने इस धारणा को बदलने की दिशा में काम किया। वे जानते थे कि नई एयरलाइन पर एकदम से विश्वास नहीं होगा। इसलिए उन्हें कुछ ऐसा करना होगा, जिससे विमान से दूर रहने वाली जनता भी उसकी तरह खिंची चली आए।

ऐसे बनाई अलग पहचान

इंडिगो ने सबसे पहले आम यात्रियों पर फोकस किया। राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल के नेतृत्व में इंडिगो ने सस्ते हवाई टिकट पर जोर दिया। दोनों का यह दांव सफल रहा और इंडिगो के टिकट हाथों-हाथ बिकने लगे। इंडिगो ने खुद को बेहतर बनाने के लिए छोटे-छोटे मुद्दों पर भी गौर किया। उदाहरण के तौर पर कंपनी ने अपने टर्नअराउंड समय को कम करने के लिए कई कदम उठाए, जिसके चलते उसके विमानों के फेरे बढ़ गए। अब जब फेरे बढ़ेंगे तो मुनाफा भी चढ़ेगा। इस तरह, कंपनी अनगिनत चुनौतियों से निपटते हुए देश की सबसे बड़ी एयरलाइन बन पाई।

इस वजह से आई दूरी

सफलता की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद अक्सर मनमुटाव और मनभेद उजागर हो जाते हैं। राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल के साथ भी यही हुआ। जय-वीरू की इस सफल जोड़ी में पहले वाली अंडरस्टैंडिंग का अभाव साफ नजर आने लगा। दोनों के बीच सहमति का स्तर घटता रहा और असहमति बढ़ती चली गई। मुख्यतौर पर भाटिया और गंगवाल में इस बात को लेकर झगड़ा था कि एयरलाइन को कौन और कैसे चलाएगा। दोनों के रिश्ते में 2022 की शुरुआत में टर्निंग पॉइंट तब आया जब इंडिगो ने राहुल भाटिया को प्रबंध निदेशक के रूप में नामित किया। इससे नाराज गंगवाल ने निदेशक पद इस्तीफे से दे दिया।

…और छूट गया साथ

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राकेश गंगवाल ने कंपनी के आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन के नियमों में बदलाव की मांग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। गंगवाल इससे बेहद आहत और नाराज हुए। उन्होंने इंडिगो से पूरी तरह नाता तोड़ने का ऐलान कर डाला। वह धीरे -धीरे कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचते रहे और पिछले साल पूरी तरह कंपनी से अलग हो गए। इस तरह एविएशन सेक्टर में धमाल मचाने वाले जय-वीरू की जोड़ी भी टूट गई। गंगवाल की वाइफ शोभा गंगवाल ने अगस्त 2023 में ही खुले बाजार के माध्यम से इंडिगो में अपनी चार फीसदी हिस्सेदारी करीब 2,944 करोड़ रुपये में बेच दी थी।

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Edited By

Neeraj

First published on: Apr 11, 2025 03:03 PM

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