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Bharat Ek Soch : इधर ईरान, उधर इजरायल… क्या होगा ‘युद्ध’ का अंजाम?

Bharat Ek Soch : इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। इसे लेकर अरब वर्ल्ड के बड़े खिलाड़ी कौन सी गोटियां चलेंगे, इजरायल-ईरान में युद्ध की स्थिति में भारत पर कितना असर पड़ेगा?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Anurradha Prasad Updated: Jun 14, 2025 23:09
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Bharat Ek Soch : दुनिया में जंग का एक और मोर्चा शुक्रवार की सुबह खुल गया। इजरायल के करीब 200 फाइटर जेट्स ने ईरान में 100 ठिकानों पर ताबड़तोड़ बमबारी की, जिसमें खासतौर से निशाने पर रहे 4 एटमी और 2 मिलिट्री बेस। इजरायल के इस बड़े हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉप्स के चीफ कमांडर हुसैन सलामी भी मारे गए, वहां के बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट मोहम्मद मेहदी तेहरांची और फरदून अब्बासी की भी मौत हुई। अब ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलें इजरायल को निशाना बना रही हैं। 150 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों के दागे जाने की खबर है। तेल अवीव और यरुशलम में हवाई हमले के सायरन सुबह-सुबह ही बजने लगे। जान बचाने के लिए लोग बंकरों की ओर भागते देखे गए। ईरान और इजरायल दोनों आमने-सामने हैं, जहां से बिना किसी नतीजा के पीछे लौटना दोनों के लिए मुश्किल दिख रहा है। लेकिन, ईरान ये भी अच्छी तरह जान रहा है कि इजरायल तो सिर्फ मोहरा है, असल में गोटियां तो चल रहे हैं अमेरिका में बैठे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके सिपहसालार।

कोम शहर की जामकरन मस्जिद के ऊपर लहरा रहा लाल झंडा इशारा कर रहा है कि ईरान ने युद्ध का ऐलान कर दिया है। ऐसे में हिसाब लगाया जा रहा है कि ईरान और इजरायल के बीच जंग का साइड इफेक्ट दुनिया पर किस तरह दिखेगा? दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में कौन देश, किसके साथ खड़ा होगा? भारत का इजरायल और ईरान दोनों से बेहतर रिश्ता है- ऐसे दिल्ली किसके साथ खड़ी दिखेगी? पाकिस्तान के हुक्मरान ईरान का साथ देंगे या अमेरिका के साथ खड़े होंगे। सवाल ये भी है कि क्या अमेरिका को खुश करने के लिए पाकिस्तान चाइना का साथ छोड़ देगा? अरब वर्ल्ड के बड़े खिलाड़ी कौन सी गोटियां चलेंगे, इजरायल-ईरान में युद्ध की स्थिति में भारत पर कितना असर पड़ेगा?

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बारूद के ढेर पर बैठा है मिडिल ईस्ट 

इस बात का अंदाजा तो था कि मिडिल ईमिडिल ईस्ट बारूद के ढेर पर बैठास्ट बारूद के ढेर पर बैठा है। इस बात का भी अंदाजा था इजरायल और ईरान के बीच टेंशन कभी भी खतरनाक मोड़ तक जा सकती है । इस बात का भी अंदाजा था ईरान के परमाणु ठिकानों को इजरायल निशाना बना सकता है, लेकिन इस बात का शायद ही अंदाजा रहा हो इजरायल के करीब 200 फाइटर जेट ईरान पहुंचकर न्यूक्लियर और मिलिट्री साइट को टारगेट करेंगे? शायद ही अंदाजा रहा हो कि इजरायल ईरान में घुसकर उसके टॉप आर्मी कमांडर्स और न्यूक्लियर साइंटिस्टों का काम तमाम कर देगा?

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ईरान के परमाणु कार्यक्रम को इजरायल अस्तित्व को खतरा क्यों बता रहा?

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बिना लाग-लपेट के कह दिया कि ईरान की परमाणु क्षमता खत्म करने के लिए ऑपरेशन राइजिंग लायन लॉन्च किया गया है, मिशन पूरा होने तक ये जारी रहेगा। नेतन्याहू की दलील है कि इजरायल का अस्तित्व बचाने के लिए ऑपरेशन राइजिंग लायन जरूरी है। इजरायल और ईरान की सीमाएं आपस में नहीं मिलती हों, इनकी सरहद के बीच जॉर्डन खड़ा है, इराक खड़ा है। इजरायल और ईरान की सरहद के बीच करीब एक हजार किलोमीटर से अधिक का फासला है। ऐसे में सबसे पहले समझते हैं कि ईरान और इजरायल एक-दूसरे से किस तरह निपटने में लगे हैं? ईरान के परमाणु कार्यक्रम को इजरायल अपने अस्तित्व के लिए खतरा क्यों बता रहा है?

ईरान-इजरायल तनाव में असली खिलाड़ी कौन?

ईरान और इजरायल के बीच जारी टेंशन में असली खिलाड़ी अमेरिका है, जो दोनों देशों से 12 हजार किलोमीटर से अधिक की दूरी पर बैठा है। पिछले कई दशकों में अमेरिका तमाम कोशिशों के बाद भी ईरान को घुटनों पर नहीं ला पाया। ईरान पिछले कई वर्षों से न्यूक्लियर पावर बनने के लिए कोशिश कर रहा है। अमेरिका को डर सता रहा है कि अगर ईरान परमाणु बम बनाने में कामयाब हो गया, ईरान खाड़ी देश, वहां बने अमेरिकी मिलिट्री बेस और इजरायल के लिए बड़ा खतरा बन जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान से एटमी प्रोग्राम पर डील सील करने के लिए कहा है, नहीं तो तबाही के लिए तैयार रहने की धमकी दी है। लेकिन, अमेरिका और इजरायल की शर्तों को मानने के लिए ईरान तैयार नहीं है। डिफेंस स्ट्रेटजी पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स की सोच है कि बिना अमेरिकी सहयोग और समन्वय से इतने बड़े ऑपरेशन के अंजाम देना असंभव है। ईरान भी अपनी घातक बैलिस्टिक मिसाइलों से इजरायल को जवाब दे रहा है। अब थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं- पिछले साल अक्टूबर महीने में ईरान ने इजरायल पर 181 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थीं, वो भी सिर्फ 25 मिनट में। उस दौर में भी तनाव बहुत बढ़ा था। दरअसल, मुस्लिम वर्ल्ड में ईरान एक बहुत ताकतवर देश है, जो पिछले कुछ वर्षों से शिया और सुन्नी दोनों को इस्लाम के नाम पर पश्चिमी देशों के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश कर रह था। यही बात अमेरिका को हजम नहीं हो रही थी।

क्या बोले ईरान के सुप्रीम लीडर खामनेई? 

ईरान के सुप्रीम लीडर खामनेई ने कहा है कि अल्लाह की इच्छा से हम ताकत से जवाब देंगे, उन पर कोई दया नहीं दिखाएंगे। मतलब, युद्ध में इजरायल के खिलाफ ईरान झुकेगा नहीं, मुंहतोड़ जवाब देगा। लेकिन, नेतन्याहू और खामनेई की जंग की जिद्द में दुनिया उलझी हुई है। अपने नफा-नुकसान का हिसाब लगा रही है। ऐसे में पहले बात भारत की। दिल्ली के तेहरान और तेल अवीव दोनों से बेहतर रिश्ते रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के साथ मजबूती खड़ा रहने वाले देशों में इजराइल भी था। ऐसे में दिल्ली डिप्लोमेसी के सामने बड़ी चुनौती होगी- इजरायल और ईरान में से किसी एक को चुनने की। टेंशन लंबा खींचने की स्थिति में कई गंभीर असर पड़ने तय हैं, जिसमें कुछ साइड इफेक्ट तो अभी से दिखने लगे हैं। मसलन, एयरस्पेस बंद होने से यूरोप और दूसरे पश्चिमी देशों का सफर लंबा होगा। क्रूड ऑयल की सप्लाई चेन में ईरान की भूमिका बड़ी है, कच्चे तेल की कीमतें अभी से भड़कने लगी हैं। गोल्ड की कीमतों में भी अचानक उछाल देखा गया। सोमवार को जब शेयर बाजार खुलेगा तो पता चलेगा कि ईरान-इजरायल जंग का असर कितना दिख रहा है। मिडिल-ईस्ट के डिस्टर्ब होने से एक बड़ी चिंता खाड़ी देशों में रहने वाले करीब 90 लाख भारतीयों की भी है, जो देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं।

इजरायल के पीछे अमेरिका खड़ा है

Globalization के दौर में किसी भी जंग का असर सिर्फ किसी क्षेत्र विशेष या दो देशों तक सीमित नहीं रहता है। दुनिया के हर हिस्से में थोड़ा कम या ज्यादा प्रभाव दिखता ही है। रूस-यूक्रेन के बीच जंग के दौरान भी यही हुआ, इजरायल और हमास के बीच जंग के दौरान भी यही हुआ। इजरायल के लेबनान में हिजबुल्ला के खिलाफ ऑपरेशन दौरान भी यही हुआ। बहुत हद तक मुमकिन है कि जिस तरह इजरायल के पीछे अमेरिका खड़ा है। उसी तरह ईरान बड़े पैमाने पर गुप्त तरीके से हमास, हूती और हिजबुल्ला को हथियार और पैसा पकड़ा दे, जो भी देश तेहरान के खिलाफ खड़ा हो, उनके खिलाफ विद्रोही लड़ाकों के गुट का इस्तेमाल करे। हूती लड़ाकों समुद्र के सबसे व्यस्त कारोबारी रूट को प्रभावित कर सकते हैं। ईरान-इजरायल के बीच जारी जंग में कूटनीतिक रिश्तों का भी रीसेट बटन दबना तय है।

अब क्या करेगा पाकिस्तान?

सवाल ये भी उठ रहा है कि पाकिस्तान क्या करेगा? इन दिनों पाकिस्तान की अमेरिका के साथ केमेस्ट्री लगातार दुरुस्त हो रही है। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अमेरिका को दक्षिण एशिया में पकड़ मजबूत करने और चाइना को रोकने के लिए पाकिस्तान की जमीन की जरूरत है। वहीं, पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को ICU से बाहर निकालने के लिए अमेरिकी डॉलर की जरूरत है। हाल के वर्षों में बीजिंग और तेहरान के बीच रिश्ते मजबूत हुए। अरब वर्ल्ड के देशों के अमेरिका की गोद से निकाल कर चाइना के करीब लाने में ईरान बड़ी भूमिका निभा रहा था। लेकिन, ट्रंप प्रशासन ने हाल में अरब देशों के बड़े खिलाड़ियों के साथ वाशिंगटन डीसी के रिश्तों की रिपेयरिंग तेजी से की। ऐसे में सवाल उठता है कि जो मुस्लिम देश कल तक शिया-सुन्नी भूलकर इस्लाम के नाम पर एक ओर रहे थे। इजराइल और ईरान की जंग में किसके साथ खड़े होंगे?

ईरान के साथ दे सकता है तुर्किए

ईरान एक मुस्लिम देश है। इजरायल के खिलाफ जंग में उसे कुछ मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिल सकता है। लेकिन, बदले समीकरणों में तुर्किए खुलकर ईरान के साथ खड़ा दिख सकता है। अरब वर्ल्ड के दूसरे बड़े खिलाड़ी भी सीधा युद्ध में उतरने से परहेज करेंगे। लेकिन, सेफ डिस्टेंस बनाते हुए मध्यस्थता की पहल कर सकते हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तेहरान के साथ खड़े दिख सकते हैं तो खुद यूक्रेन के साथ जंग लड़ रहे रूस के राष्ट्रपति पुतिन तटस्थ दिख सकते हैं। लेकिन, एक बात तय है कि ईरान-इजरायल के बीच जंग का साइड इफेक्ट आम आदमी की जेब और जिंदगी दोनों पर पड़ना तय है। ऐसे में भारत पर भी असर पड़ना तय है। इतिहास गवाह है कि किसी भी जंग में सबसे अधिक नुकसान आम आदमी का होता है। वहीं, फायदा महाशक्तियों और हथियारों से सौदागरों ने उठाया है।

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First published on: Jun 14, 2025 09:13 PM

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