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आखिर क्यों रखा जाता है सूर्यषष्ठी का व्रत, जानें इसका महत्व और व्रत कथा

Surya shashthi fast pooja: हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य सप्तमी का व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं सूर्य षष्ठी व्रत का महत्व और कथा के बारे में।

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: Nov 14, 2023 13:09
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Surya shashthi fast

Surya shashthi fast pooja: हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य षष्ठी या डाला छठ कहा जाता है। मान्यता है कि यह व्रत संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही संतान को दीर्घायु और आरोग्य के साथ ही पूरे परिवार को धन-धान्य, सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से संसार के सारे सुखों को भोग मृत्यु के बाद परम सत्य की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल डाला छठ 18 नवंबर 2023 दिन शनिवार को पड़ रहा है। तो आइए इस खबर में जानते हैं डाला छठ कैसे किया जाता है। साथ ही व्रत कथा के बारे में भी जानेंगे।

इस विधि से करें डाला छठ व्रत

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत पूरे नियम और निष्ठा के साथ किया जाता है। कहा जाता है कि यह व्रत सबसे कठोर व्रत है। इस व्रत को करने वाली स्त्री पंचमी के दिन मात्र एक बार बिना नमक की भोजन करती है, साथ ही षष्ठी के दिन निर्जला रहकर अस्त हो रहे सूर्य की पूजा करती है और भगवान भास्कर को अर्घ्य भी देती है। इस दिन विधि-विधान से पकवान, फल, मिष्ठान आदि चीजों का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा रात भर जागरण भी होता है। इसके बाद अगले दिन यानी सप्तमी के दिन सुबह नदी या तालाब में जाकर जो व्रती होती है वह स्नान करती हुई गीत गाती हैं। उसके बाद जब सूर्योदय होता है तो फिर दूध से अर्घ्य देकर पारण करती है। इस तरह व्रत पूर्ण होता है।

क्या है सूर्य षष्ठी व्रत की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक महिला थी जिसके विवाह हुए कई साल हो गए थे, लेकिन कोई संतान नहीं थी। मान्यता है कि उस महिला ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन संकल्प लिया कि यदि संतान की प्राप्ति होती है तो वो सूर्य देव का व्रत करेगी। ऐसे में महिला को सूर्य देव की कृपा से संतान की प्राप्ति हुई। लेकिन महिला ने व्रत नहीं किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब लड़का धीरे-धीरे बड़ा हुआ और उसकी शादी हो गई।

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शादी के बाद जब वह जंगल के रास्ते घर लौट रहा था तो एक स्थान पर डेरा लगाया। जब दुल्हन ने देखा कि पालकी में उसका पति मरा हुआ है।दुल्हन अपने पति को देखकर विलाप करने लगी। उसके रोने की आवाज सुनकर एक वृद्ध महिला उसके पास आई और बोली कि मैं छठ माता हूं, तुम्हारी सास मेरा व्रत करने की बात कहकर टालती रही। जिसके कारण तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई है।

वृद्ध महिला ने कहा कि मुझे तुम्हारा विलाप नहीं देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को जिला देती हूं लेकिन घर जाकर अपनी सास से इस बारे में जरूर पूछना। इसके बाद छठ माता ने उसके पति को जीवित कर दिया। कुछ देर बाद जब बहू घर पहुंची तो रास्ते में जितनी भी बातें हुई थी सारी बातें अपने सास को बतायी। तब लड़के की मां ने अपने पुराने संकल्प को याद करते हुए सूर्य देव का व्रत किया। तब से लेकर आज तक यह व्रत चलन में है।माना जाता है कि इस व्रत संस्कार से भगवान भास्कर प्रसन्न होते हैं और सबके जीवन में सूर्य की रोशनी विराजमान रहती है ।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

First published on: Nov 14, 2023 01:00 PM

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