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Pitru Paksha 2022: यहां स्थित है देश का एकमात्र श्राद्ध देव मंदिर, भागवत पुराण में भी मिलता है उल्‍लेख

Pitru Paksha 2022: आज से पितृ पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो गई है। आज पितृ पक्ष का पहला दिन है। पितृ पक्ष की शरुआत गणेश विसर्जन और अनंत चतुर्दशी के बाद होता है। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक चलता है। श्राद्ध पूरे 16 दिन […]

Pitru Paksha 2022: आज से पितृ पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो गई है। आज पितृ पक्ष का पहला दिन है। पितृ पक्ष की शरुआत गणेश विसर्जन और अनंत चतुर्दशी के बाद होता है। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक चलता है। श्राद्ध पूरे 16 दिन के होते हैं। यह पर्व 25 सितंबर को समाप्त होगा। आपको बात दें कि देश में श्राद्धदेव का एकमात्र मंद‍िर है जो कुरुक्षेत्र के पास स्थित प‍िहोवा में है। इसे पृथुदक तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। मान्‍यता के मुताबिक पांडवों ने इसी जगह पर अपने सगे संबंध‍ियों का श्राद्ध और प‍िंडदान क‍िया था। यहां सरस्वती तट पर श्राद्धदेव का मंदिर है जिसमें यमराजजी की मूर्ति स्‍थाप‍ित है। बताया जाता है कि इस मंदिर की स्‍थापना महाभारत काल में ही हुई थी। इस मंदिर का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध में महात्‍मा विदुर द्वारा की जाने वाली तीर्थ यात्रा में मिलता है। अभी पढ़ें आज से पितृ पक्ष शरू, यहां जानें श्राद्ध की तारीखें और इससे जूड़ी तमाम जानकारी धार्मिक और पौराण‍िक मान्‍यताओं के मुताबिक मुताबिक प‍िहोवा तीर्थ में प‍िंडदान और श्राद्ध का खास महत्‍व है। मान्‍यता के अनुसार अगर कोई प‍िहोवा में प‍िंडदान और श्राद्ध न करे और सीधे गया चला जाए तो वहां भी उसे सबसे पहले पृथुदक बेदी की पूजा-अर्चना करनी पड़ती है। इसके बाद ही उसका श्राद्ध और प‍िंडदान स्‍वीकृत होता है। यही वजह है प‍ितृपक्ष के दौरान प‍िहोवा की धरती पर दूर-दूर से लोग आते हैं और अपने पूर्वजों का प‍िंडदान और श्राद्ध करते हैं। मान्यता के मुताबिक पितृ पक्ष के दौरान पितरों को पिंडदान कराया जाता है। कई लोग अपने घरों में ही पूजा-पाठ और खाना बनाकर पितरों को भोजन कराते हैं तो कुछ विष्णु का नगर यानी गया में जाकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। मान्यता के मुताबिक पितृ पक्ष के दौरान पितरों को पिंडदान कराया जाता है। कई लोग अपने घरों में ही पूजा-पाठ और खाना बनाकर पितरों को भोजन कराते हैं तो कुछ विष्णु का नगर यानी गया में जाकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। अभी पढ़ें शनिवार के ये उपाय खोल देंगे आपकी बंद किस्मत, दूर होंगे सारे दुर्भाग्य मान्यता के मुताबिक अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं। श्राद्ध में पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज व दान करना पुण्यकारी होता है। अगर कोई अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता या श्रद्धापूर्वक नहीं करता तो पितृ नाराज हो जाते हैं। इससे पितृ दोष लगता है। कहा जाता है कि अगर पितृ खुश है तो ईश्वर की भी आप पर कृपा होती है। पितरों को खुश करने के लिए हमें श्रद्धाभाव के साथ उनका तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज एवं दान करना चाहिए। श्राद्ध इसी श्रद्धा का प्रतीक होते हैं। हिंदू धर्म में पितृ ऋृण से मुक्ति के लिए श्राद्ध मनाया जाता है। हिंदू शास्त्रों में पिता के ऋृण को सबसे बड़ा और अहम माना गया है। पितृ ऋृण के अलावा हिन्दू धर्म में देव ऋृण और ऋषि ऋृण भी होते हैं, लेकिन पितृ ऋृण ही सबसे बड़ा ऋण है। इस ऋृण को चुकाने में कोई गलती ना हो इसीलिए इस दौरान खास नियम बरते जातें हैं। अभी पढ़ें – आज का राशिफल यहाँ पढ़ें Click Here - News 24 APP अभी download करें


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