Narsingh Kavach: इस मंत्र के जप से तुरंत नष्ट होंगे शत्रु, हर जगह मिलेगी कामयाबी
Narsingh Kavach: भगवान विष्णु के सभी अवतारों में नृसिंह अवतार को सर्वाधिक उग्र तथा भयावह माना गया है। उनके स्मरण मात्र से ही दुष्टों में भय का संचार होने लगता है। विशेषकर प्रेत, पिशाच आदि दुष्ट शक्तियां उनका नाम सुनने मात्र से ही भाग जाती हैं।
कई बार कुछ लोगों को प्रेत बाधा हो जाती है। ऐसे लोगों की पीड़ा दूर करने के लिए कई प्रकार के उपाय किए जाते हैं परन्तु वे विफल हो जाते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को नृसिंह कवच का आश्रय लेना चाहिए। इस कवच के एक बार जप करने मात्र से ही व्यक्ति का समस्त भय तथा दुख नष्ट हो जाते हैं।
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कैसे करें नृसिंह कवच (Narsingh Kavach) का प्रयोग
किसी शुभ मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र पहन कर पूजा के आसन पर बैठें। सर्वप्रथम गणेशजी की वंदना करें। तत्पश्चात् अपने इष्टदेव, गुरु तथा अन्य देवी-देवताओं की स्तुति करें। अंत में भगवान नृसिंह की पूजा करें, मन ही मन उनसे अनुष्ठान करने की आज्ञा तथा आशीर्वाद लें। इसके बाद नृसिंह कवच का 108 बार पाठ करें। इस तरह कवच सिद्ध हो जाएगा।
जब भी आपका किसी प्रेत से सामना हो तो कवच का केवल एक बार उच्चारण करने मात्र से ही वह दुष्ट शक्ति भाग जाएगी। यदि शत्रु प्रबल हो और आपको अत्यधिक परेशान कर रहा हो तो भी नृसिंह कवच के प्रयोग से उसे नष्ट किया जा सकता है। इस कवचरुपी मंत्र के प्रयोग से व्यक्ति में जबरदस्त आत्मविश्वास आ जाता है। वह जहां भी जाता है, वही कामयाब होने लगता है। कवच निम्न प्रकार है-
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विनियोग:
ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यास:
श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीनृसिंह-देवतायै नमः हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये, हुं शक्तये नमः नाभौ, फट् कीलकाय नमः पादयोः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ।।१।।
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे।
नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ।।२।।
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ।।३।।
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ।।४।।
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ।।५।।
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ।।६।।
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ।।७।।
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ।।८।।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
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