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Geeta Jayanti 2023: कर्मयोग पर जानें श्रीकृष्ण के 5 उपदेश जो हैं सर्वश्रेष्ठ, हर किसी को चाहिए अपनाना

Geeta Jayanti 2023: गीता जयंती पर आप भी जानें कर्मयोग पर भगवान श्री कृष्ण के ये खास उपदेश जो आपके जीवन को बदल सकता है।

Geeta Jayanti 2023
Geeta Jayanti 2023:  धार्मिक ग्रंथों में गीता विशेष स्थान रखती है। गीता में महाभारत के समय कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच बातचीत के बारे में बताया है। गीता सनातन धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। गीता मुख्य रूप से महाभारत का का अंश है। महाभारत की रचना महर्षि देवव्यास ने की। जिसमें कुल 18 हजार श्लोक हैं। जबकि गीता में 18 अध्याय और 400 श्लोक हैं। गीता में मनुष्य की समस्या का समाधान मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माध्याय बनाकर सभी प्राणियों के लिए उपदेश दिया। गीता न सिर्फ पढ़ने के लिए है, बल्कि उसका अध्ययन कर व्यक्ति को अपने जीवन में उतारना भी चाहिए। पंचांग के अनुसार, इस साल गीता जयंती 22 दिसंबर 2023 को मनाई जाएगी। गीता जयंती मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी तिथि को मनाई जाती है। कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म के बारे में उपदेश दिए थे। तो आज इस खबर में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कर्मयोग पर दिए गए श्लोक और उपदेशों के बारे में जानेंगे। तो आइए विस्तार से जानते हैं। यह भी पढ़ें- प्रदोष व्रत पर शिव स्तुति का पाठ, महादेव का मिलेगा आशीर्वाद

भागवत गीता के श्लोक और उनके भावार्थ

गीता सुगीता कतया किमयैः शावितरैः। या वयं पनाभय मुखपाद् विनि: सृता।। भावार्थ- गीता भगवान श्री कृष्ण के वाणी के मुखारविंद से नि:सृत दिव्य वाणी है। इसमें महाभारत-पी अमृत का सार दिया गया है जिसके कर्म से पुनर्जन्म हो जाता है। अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षर समुद्भवम्‌ । तस्मात् सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥ भावार्थ- इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि सम्पूर्ण प्राणी की उत्पत्ति अन्न से होती हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है। वहीं वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म समुदाय का उत्पत्ति तो वेद से हुई है और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ है। ऐसे में सिद्ध होता है, कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित हैं। यह भी पढ़ें- घर के पवित्र 3 स्थान पर रखें तुलसी की मंजरी, सभी संकटों से मिलेगी मुक्ति लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ । ज्ञानयोगेन साङ्‍ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्‌ ॥ भावार्थ- श्री कृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं कि इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा है जो मेरे द्वारा पहले कही गई है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से है और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है। यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन । कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥ भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ है और समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वहीं व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ होता है। इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः । तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः ॥ भावार्थ- भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यज्ञ द्वारा बढ़ाए हुए देवता तुम लोगों को बिना मांगे ही इच्छित भोग देते हैं। वे कहते हैं कि जो पुरुष देवताओं द्वारा दिए हुए भोगो को दिए स्वंय भोगता है वह व्यक्ति कर्म से चोर होता है। यह भी पढ़ें- गुस्सैल प्रवृत्ति के होते हैं ये 3 राशि के लोग, अपनी हरकत से उठाते हैं नुकसान डिस्क्लेमर:यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें। 


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