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लकड़ी के छोटे से घर से व्हाइट हाउस तक का सफर, पढ़ें Abraham Lincoln की जिंदगी से जुड़े प्रेरक किस्से

Abraham Lincoln Birthday Special Memoir: आज अब्राहम लिंकन के 215वें जन्मदिन पर पढ़ें उनके जीवन संघर्ष और राष्ट्रपति बनने की रोचक गाथा...जो लकड़ी के एक छोटे से घर से शुरू हुई थी और अमेरिका के व्हाइट हाउस तक पहुंची।

First Republican President Abraham Lincoln
द‍िनेश पाठक, वर‍िष्‍ठ पत्रकार Abraham Lincoln Birthday Special Memoir: बेहद गरीब परिवार में जन्मे अब्राहम लिंकन अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते अमेरिका जैसे देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। साल 1861 में यह पद संभालने के बाद 1865 में अपनी हत्या तक वह इस पद पर बने रहे। एक संवैधानिक राष्ट्र के रूप में अमेरिका को दुनिया के सामने पेश किया और अपने देश से गुलामी प्रथा को हमेशा के लिए समाप्त किया। फेडरल सरकार की शक्तियों का विस्तार किया और अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण कर ऊंचाई तक पहुंचाया। यानी कुल मिलाकर वकील और राजनीतिज्ञ लिंकन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। अब्राहम लिंकन की जयंती पर आइए जान लेते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक, प्रेरक किस्से।  

12 फरवरी को हुआ था लिंकन का जन्म

अब्राहम लिंकन का जन्म 12 फरवरी 1809 को उस अमेरिका में हुआ था, जहां दास प्रथा का बोलबाला था। इंसानों को गुलाम बना कर रखा जाता था। तब भला किसे पता था कि बेहद गरीब परिवार में जन्मा यह बच्चा आगे चलकर देश का पहला रिपब्लिकन और अश्वेत राष्ट्रपति बनेगा। साथ ही दास प्रथा का अंत भी कर देगा। पर हकीकत में ऐसा हुआ। लिंकन का जन्म जिस परिवार हुआ, वह इतना गरीब था कि परिवार के सभी लोग लकड़ी के एक छोटे से घर में रहते थे। बाद में घर की जमीन को लेकर विवाद के चलते पूरे परिवार को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। लिंकन का बचपन काफी संघर्षपूर्ण था। वह नौ साल के थे, तभी मां ने साथ छोड़ दिया और चल बसीं। उनके पिता के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि लिंकन को पढ़ने के लिए स्कूल भेज सकें। इसलिए पेट भरने के लिए लिंकन बचपन में ही मजदूरी करने लगे। हालांकि, उनके भीतर पढ़ने का ऐसा जुनून था कि स्वध्याय करते थे और दूसरों से मांग कर किताबें पढ़ते थे। बाद में उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली तो अब्राहम लिंकन अपनी सौतेली मां के काफी करीब आ गए और उन्हें ही मां कहने लगे।

नाव बनाकर माल ढोया, लुहार बनने का किया फैसला

पढ़ाई के लिए कोई रास्ता नहीं दिख रहा था तो उन्होंने अपने पिता से बढ़ई का काम सीखा और नाव बनाकर लोगों का माल ढोने लगे। इसके बाद बचे हुए समय में लिंकन दूसरे के खेतों में काम करते थे। साल 1831 से 1832 के दौरान लिंकन ने एलिनॉयस के एक जनरल स्टोर में भी काम किया। इसी दौरान 1832 में उन्होंने एलिनॉयस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया लेकिन ब्लैक हॉक वार में उन्हें एलिनॉयस मिलिशिया का कैप्टन बना दिया गया, जिसके कारण उनकी यह मंशा पूरी नहीं हुई। वार से घर लौटने पर लिंकन ने लुहार बनने का फैसला किया पर यह परवान नहीं चढ़ा और उन्होंने एक दोस्त के साथ जनरल स्टोर शुरू कर दिया, जिस पर लाइसेंस लेकर अलकोहल और खाना भी बेचा। बाद में स्टोर घाटे में चला गया और लिंकन को अपना हिस्सा बेचना पड़ा। इसके बाद लिंकन ने पोस्टमास्टर के रूप में काम शुरू कर दिया, लेकिन किसी न किसी रूप में अपनी पढ़ाई जारी रखी। अब उन्होंने वकील बनने का फैसला किया और वह जाने-माने वकीलों से कानून की किताबें मांग कर पढ़ने लगे।

1836 में शुरू की वकालत

9 सितंबर 1836 ईस्वी को लिंकन को एलिनॉयस बार में शामिल कर लिया गया और वह स्प्रिंगफील्ड चले गए, जहां कानून की प्रैक्टिस करने लगे। साल 1838 की बात है. सात जनवरी को एक न्यूजपेपर के संपादक की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद अब्राहम लिंकन ने अपना पहला बड़ा भाषण दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी सैन्य सत्ता अमेरिका को एक देश के रूप में खत्म नहीं कर सकती है। इससे पहले 28 अप्रैल 1836 को एक अश्वेत को जिंदा जला दिया गया था।

लोगों की दिक्कतें देख राजनीति में आए

इन दोनों घटनाओं का अब्राहम लिंकन पर गहरा असर पड़ा। अपने संघर्षों से जूझते हुए लिंकन को समाज के संघर्ष तो दिख ही रहे थे, लोगों की परेशानियों से भी वह दो-चार हो रहे थे। उस दौर में अमेरिका में दास प्रथा अपने चरम पर थी और लिंकन को यह बर्दाश्त नहीं होता था। रंगभेद का भी बोलबाला था। इन सबको खत्म करने के लिए अब्राहम लिंकन ने राजनीति में जाने का फैसला कर लिया। उनकी यह राह भी आसान नहीं थी पर आखिरकार साल 1860 में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी ठोंक दी। इसमें सफलता मिलने के साथ ही यह तय हो गया था कि अमेरिका में अब दास प्रथा के लिए कोई जगह नहीं है। चार मार्च 1861 को अब्राहम लिंकन ने अमेरिका की सत्ता संभाली और सुधारों का दौर शुरू कर दिया।

लिंकन की हाजिरजवाबी का जवाब नहीं

लिंकन के जीवन में जितना संघर्ष था, वह उतना ही हाजिर-जवाब भी थे। बात राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद एक अभिनंदन समारोह की है। खुद को लिंकन का हितैषी मानने वाले एक सज्जन ने उनसे कहा कि अब तो आपके हाथ में अपने देश की सत्ता है तो फिर अपने विरोधियों को खत्म क्यों नहीं कर देते? लिंकन ने उनसे कहा कि आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। आपको यह जानकर खुशी होगी की जैसा आप कह रहे हैं, मैं बिल्कुल वैसा ही कर रहा हूं। मैं अपने सभी विरोधियों को एक-एक कर समाप्त कर रहा हूं। वह सज्जन इस पर बोले कि तब तो आनंद आ गया। इस पर लिंकन ने कहा कि आप गलत मतलब न निकालें। मैं सभी दुश्मनों के साथ शालीनता का व्यवहार कर उनसे दोस्ती करता जा रहा हूँ। इस तरह वे मेरे दोस्त बन जाएंगे और दुश्मन कोई बचेगा ही नहीं।

उस कोट के भीतर मैं भी तो रहूंगा

ऐसा ही एक और किस्सा है कि एक बार अब्राहम लिंकन कहीं जा रहे थे। तभी पीछे से किसी व्यक्ति ने तेज रफ्तार में गाड़ी भगाकर लिंकन को ओवरटेक कर दिया। वह आगे बढ़ता, उससे पहले ही लिंकन ने आवाज दी कि क्या आप मेरी हेल्प करेंगे। इस पर वह तैयार हो गया तो लिंकन ने कहा कि मेरा ओवरकोट शहर तक लेते चलिए। वह व्यक्ति इसके लिए तैयार हो गया और कहा कि शहर पहुंचकर आप अपना ओवरकोट मुझसे लेंगे कैसे? इस पर लिंकन ने कहा कि यह तो बहुत ही आसान है, उस कोट के भीतर मैं भी तो रहूंगा।

थिएटर में मारी गई थी गोली

बात 14 अप्रैल 1865 की है। अब्राहम लिंकन वाशिंगटन के फोर्ड थिएटर में अवर अमेरिकन कजन नाटक देख रहे थे. इंटरवल में उनके बॉडीगार्ड बाहर निकल गए थे। मौका देखकर रात सवा 10 बजे नाट्यकर्मी जॉन वाइक्स बूथ ने लिंकन के सिर में पीछे से गोली मार दी और भाग निकला। लिंकन को अस्पताल ले जाया गया, जहां 15 अप्रैल 1865 की सुबह उनका निधन हो गया। घटना के 10 दिन बाद ही जॉन वाइक्स बूथ को अमेरिकी सैनिकों ने मार गिराया था।


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