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Lucknow News: ऐशबाग में ‘सिर तन से जुदा’ वाले रावण का जला पुतला, आयोजकों ने बताया बड़ा कारण

Lucknow News: देशभर में विजयदशमी (Vijaydashmi 2022) के मौके पर रावण जलाए गए। हिंदू धर्म के मुताबिक इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोग इस दिन अपने अंदर की बुराइयों को खत्म करने का प्रण लेते हैं को कुछ लोग समाज में फैली कुरीतियों को साफ करने […]

Lucknow News: देशभर में विजयदशमी (Vijaydashmi 2022) के मौके पर रावण जलाए गए। हिंदू धर्म के मुताबिक इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोग इस दिन अपने अंदर की बुराइयों को खत्म करने का प्रण लेते हैं को कुछ लोग समाज में फैली कुरीतियों को साफ करने खुद से वादा करते हैं। इसके अलावा तरह-तरह के प्रतीकों का पुतला बनाकर भी जलाते हैं। ऐसा ही एक अनोखा पुतला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जलाया गया है। अभी पढ़ें - Faridabad News: क्यूआरजी अस्पताल में सीवर साफ करते हुए बड़ा हादसा, चार सफाईकर्मचारियों की मौत

राष्ट्र विरोधी और धार्मिक कट्टरता पर वारः आयोजक

लखनऊ की सबसे पुरानी ऐशबाग रामलीला समिति ने इस साल 'राष्ट्र-विरोधी' और धार्मिक कट्टरता की थीम पर रावण का पुतला बनाया। 70 फीट ऊंचे इस पुतले पर 'सर तन से जुदा' और 'राष्ट्रद्रोह का समूल नाश' लिखा हुआ था, जिसे रावण दहन के समय अनुसार जलाया गया। रामलीला समिति के लोगों ने बताया कि उन्होंने यह विषय इसलिए चुना है, क्योंकि वे समाज से सांप्रदायिकता का पूरी तरह से खत्म करना चाहते हैं।

भाई और बेटे ने रावण को युद्ध से रोकने का प्रयास किया था

रामलीला आयोजन समिति ने रावण के भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाद का इस बार पुतला नहीं जलाने का भी फैसला किया था। समिति के अध्यक्ष और सचिव की ओर से पूर्व में बताया गया था कि कुंभकरण और मेघनाद ने रावण का श्री राम से युद्ध करने के लिए मना किया था। उन्होंने कहा था कि वह विष्णु के अवतार हैं, लेकिन रावण की हठ के कारण उन्हें युद्ध में जाना पड़ा और बाद में अपनी जान गंवानी पड़ी। अभी पढ़ें - Delhi Air Quality: दिल्ली की हवा को लगी 'रावण की नज़र', गुणवत्ता में गिरावट दर्ज़

इस बार खत्म की गई 300 साल पुरानी परंपरा

अध्यक्ष और सचिव ने बताया कि लखनऊ में 300 साल से इस परंपरा का निभाया जा रहा था। उन्होंने पांच साल पहले इसे खत्म करने के लिए समिति के अन्य सदस्यों के सामने प्रस्ताव रखा था, लेकिन 300 वर्ष पुरानी परंपरा का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। अब अध्यक्ष और सचिव ने समिति के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर एक मत से इस परंपरा को खत्म किया है। अभी पढ़ें - प्रदेश से जुड़ी खबरें यहाँ पढ़े


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