सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के मामले में हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट की ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणियों पर मंगलवार को कड़ी आलोचना की और कहा कि ऐसी टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के हाल के एक आदेश पर नराजगी जताई, जिसमें उसने बलात्कार के आरोपी को जमानत दे दी थी और कहा था कि महिला ने ‘खुद मुसीबत को आमंत्रित किया।’ जस्टिस बीआर गवई की अगुआई वाली बेंच ने इस टिप्पणी को बेहद असंवेदनशील बताया।
हाई कोर्ट को ऐसी टिप्पणी से बचने की दी नसीहत
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में बलात्कार के एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता ने शराब पीकर आवेदक के घर जाने के लिए सहमत होकर ‘खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया है’। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने हाई कोर्ट को अनुचित टिप्पणी से बचने की हिदायत दी और कहा कि हाई कोर्ट जज का जमानत के बारे में फैसला केस से जुड़े फैक्ट्स के आधार पर होना चाहिए। पीड़ित लड़की के खिलाफ गैरजरूरी टिप्पणी से बचना चाहिए।
जमानत के मामले में कही ये बात
बार एंड बेंच ने जस्टिस बीआर गवई के हवाले से कहा, ‘हां, जमानत दी जा सकती है, लेकिन यह क्या चर्चा है कि पीड़ित ने खुद ही मुसीबत बुलाई। जब कोई जज होता है तो उसे ऐसी टिप्पणी करते वक्त बहुत सावधान रहना चाहिए। बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट खुद ही इस मामले को देख रहा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कही ये बात
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पूर्ण न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा होते हुए दिखना भी चाहिए। एक आम व्यक्ति ऐसे आदेशों को किस तरह से देखता है, यह भी देखना होगा। इस मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत चार सप्ताह बाद करेगी। पीठ ने निर्देश दिया कि मामले को 4 सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाए। पिछले सप्ताह, सिविल सोसाइटी नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस और पीड़िता की मां ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी।
क्या है पूरा मामला?
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा हाल ही में यौन अपराध से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में दिए गए फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों को ऐसे संवेदनशील मामलों में अधिक सतर्कता और जिम्मेदारी के साथ टिप्पणियां करनी चाहिए। पहला मामला हाईकोर्ट के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें जस्टिस राम मनोहर मिश्रा ने कहा था कि एक लड़की का निजी अंग पकड़ना और उसकी पायजामा का नाड़ा तोड़ना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (दुष्कर्म) के अंतर्गत नहीं आता, बल्कि यह धारा 354(B) (महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) के तहत आता है। इस टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया और कानूनी महकमे में तीखी प्रतिक्रिया देखी गई थी।
दूसरे मामले में हाईकोर्ट ने एक बलात्कार के आरोपी को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की थी कि ‘महिला ने खुद मुसीबत को आमंत्रित किया और वह इसके लिए खुद जिम्मेदार है।’ इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने तीखी नाराजगी जताते हुए कहा कि जमानत दी जा सकती है, लेकिन इस तरह की टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए।